अनोखा है बिहार के कंदाहा का सूर्य मंदिर

sun-templeदीपेश सिन्हा। बिहार के सहरसा जिला मुख्यालय से करीब 11 किमी दूर महिषी प्रखंड के कंदाहा में स्थापित मार्कण्डेयार्क सूर्य मंदिर भारत के 12 विख्यात सूर्य मंदिरों में से एक है। इसकी तुलना कोणार्क व देवार्क में स्थापित सूर्य मंदिरों से की जाती है। यहां स्थापित सूर्य प्रतिमा के माथे पर मेष राशि का चिन्ह रहने की वजह से मान्यता है कि इसे द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने स्थापित किया है। कंदाहा का सूर्य मंदिर सहरसा से करीब 20 किमी दूर महिषी प्रखंड अंतर्गत प्राचीन नाम कंचनपुर (कंदाहा) में है। अनुश्रुति है कि भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने आर्यावर्त के विभिन्न भागों में नक्षत्रों की 12 राशियों की अवधि में सूर्य मंदिरों की स्थापना की। इसमें कंदाहा का सूर्य मदिर भी शामिल था।
इस मंदिर का पुनर्निर्माण पाल वंशीय राजाओं ने कराया। एक ताम्र अभिलेख में कहा गया है कि ओइनवर वंश के राजा नरसिंह देव के आदेश पर वंशधर नामक ब्राह्मण ने 1357 में इसका निर्माण कराया था। कंचनपुर को कभी सुजालगढ़ के नाम से भी जाना जाता था।
कंदाहा सूर्य मंदिर को भावदित्य के रूप में भी जाना जाता है, लेकिन इसका प्राचीन नाम मार्कण्डेयार्क है। एक ऊंचे टीले पर बने मंदिर में काली शिला पर सूर्य की प्रतिमा है। काले पत्थर की सूर्य की प्रतिमा और चौखट पर उत्कृष्ट लिपि पर्यटकों व पुरातत्वविदों को आकर्षित करती हैं। सूर्य मंदिर के बगल में एक कूप है। कहा जाता है कि इसके पानी से स्नान करने से चर्म रोग समाप्त हो जाते हैं। इस पानी को लेने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। इस कूप से छठ मैया की मूर्ति भी मिली थी।
मंदिर के पुजारी बाबूकांत झा, हीरा झा व जवाहर झा कहते हैं कि यहां सच्चे मन से आने वाले लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसकी महत्ता उड़ीसा के जगन्नाथपुरी में स्थापित कोणार्क व हरियाणा में स्थापित देवार्क मंदिर से कम नहीं है। कई धार्मिक ग्रंथों में भी इस मंदिर की चर्चा है। इस प्राचीन मंदिर को पुरातत्व विभाग ने 1982 में सुरक्षित स्मारक घोषित किया। लेकिन, इसके बाद भी मंदिर का समुचित विकास नहीं हो पाया है। मंदिर भले ही प्रशासनिक तौर पर उपेक्षित हो, परंतु श्रद्धालुओं की आस्था कम नहीं हुई है।