आतंक के कारोबार की तपिश

chama sharmaक्षमा शर्मा। फ्रांस में आतंकी हमलों के बाद त्राहि-त्राहि मची हुई है। अब तक महफूज माने जाने वाले यूरोप में जिस तरह से आतंकवाद ने दस्तक दी है, उससे लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि क्या करें। फ्रांस में मुसलमानों की आबादी पचास लाख है। बताया गया है कि आतंकियों ने यहां सात सौ से अधिक स्लीपर सैल बना रखे हैं। आखिर ऐसा कैसे हुआ कि यूरोप के तथाकथित सभ्य समाज में रहने वालों में से पचास हजार लोग आईएस के लिए काम करने के लिए आतंकवादी बन गए। इसी हमले पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि मुसलमानों ने कभी आगे बढ़कर ऐसी घटनाओं की निंदा नहीं की।
दुनिया के नेताओं को सत्ता से उखड़वाने का काम आज तक अमेरिका करता आया है। हाल ही के वर्षों में सद्दाम हुसैन और गद्दाफी के साथ क्या किया गया। हालांकि ये दोनों अपने-अपने देशों के तानाशाह थे मगर इनको सजा देने का अधिकार अमेरिका को किसने दिया। सद्दाम हुसैन पर जिन रासायनिक हथियारों को रखने का आरोप लगाया गया, वे हथियार कहीं मिले भी नहीं। कौन नहीं जानता कि सारी लड़ाई तेल पर कब्जे को लेकर थी। अमेरिका ने आज तक सऊदी अरब से कभी कुछ क्यों नहीं कहा। जहां राजतंत्र है। दुनिया भर में आजादी का प्रखर प्रवक्ता बनने वाला अमेरिका, औरतों की स्थिति पर आंसू बहाने वाला अमेरिका हमेशा इन मसलों पर चुप्पी क्यों साधे रहता है।
अकसर अमेरिका के नेतागण लोगों की भलाई का नाटक खूब करते हैं। यकीन न हो तो जान पर्किंस की मशहूर किताब- इकानामिक हिटमैन पढ़कर देख लीजिए। अमेरिकी आर्थिक हितों की रक्षा करने वाले को हिटमैन कहा जाता है। ये कैसे तैयार किए जाते हैं, इसे पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। जान पर्किंस खुद हिटमैन रहे हैं। वे परत-दर-परत अमेरिका के व्यापारिक हितों के लिए की जाने वाली चालबाजियों का खुलासा करते हैं। कभी चैरिटी के वेश में तो कभी नेताओं की हत्या करने वाले जैकाल्स के वेश में और अंतत: सेना का हस्तक्षेप। लीबिया, इराक, अफगानिस्तान, सीरिया आदि देशों में यही सब हुआ है। फ्रांस में जब हमला हुआ तो सीरिया के राष्ट्रपति असद ने कहा भी कि अब फ्रांस को मालूम पड़ा। हम तो पांच साल से पश्चिमी ताकतों को झेल रहे हैं।
फ्रांस में जब हमला हुआ तो थिएटर के अंदर आतंकवादी अल्लाहो अकबर के नारे लगा रहे थे। अफगानिस्तान में जब रूसी फौजें घुस आई थीं तो तालिबानों के जिन्न को अमेरिका ने ही खड़ा किया था। सीनियर बुश तब इनका हौसला बढ़ाने अफगानिस्तान गए थे और उनके साथ मिलकर अल्लाहो अकबर के नारे लगाए थे। इन्हीं बुश के बेटे जूनियर बुश जब राष्ट्रपति थे तब वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला हुआ था क्योंकि सीनियर बुश ने जिन तालिबानों को बढ़ाया था, उनसे पहले ओसामा बिन लादेन जन्मा। उससे प्रेरणा लेकर उसके शिष्य मोहम्मद अता ने अमेरिका पर हमला बोल दिया। तब बुश को व्हाइट हाउस छोड़कर घंटों आसमान में लटके रहना पड़ा था। एक तरफ अमेरिका पर हमला करने के लिए ओसामा बिन लादेन को सबसे बड़ा खलनायक ठहराया जा रहा था तो दूसरी तरफ हमले वाले दिन रातोंरात लादेन के जितने भी रिश्तेदार अमेरिका में रहते थे, उन्हें सुरक्षित सऊदी अरब वापस भेज दिया गया था।
यह खुलासा जान पर्किंस ने ही किया है। बुश ने कहा था कि वे तालिबानों को दौड़ा-दौड़कर मारेंगे। अब ऐसा ही बयान फ्रांस के राष्ट्रपति ओलांद ने दिया है। इस तरह की बयानबाजी हमेशा औंधे मुंह ही गिरती है। कहा जा रहा है कि पश्चिमी ताकतें आईएस से निपटने के लिए एक हो गई हैं। कहा जाता है कि पश्चिम के बहुत से देशों खासतौर से अमेरिका की इकानामी तो चलती ही लड़ाई-झगड़ों और युद्ध से है। अगर संसार में लड़ाइयां और खून-खराबा बंद हो जाए तो अमेरिका की सारी चमक–दमक भी खत्म हो जाए। अमेरिका की हथियार लाबी इतनी तगड़ी है कि वहां खतरनाक से खतरनाक हथियार खुले बाजार में बिकते हैं। छोटे-छोटे बच्चे तक अपने बस्तों में इन हथियारों को लिए घूमते हैं।
बहुत से समाजसेवी संगठन हथियारों पर खुले बाजार में होने वाली बिक्री पर रोक की मांग कर चुके हैं। मगर कम्पनियां कभी ऐसा होने नहीं देतीं। इन अर्थव्यवस्थाओं का मुनाफा ही सबसे बड़ा ईश्वर है, चाहे वह किसी की और हजारों की जान की कीमत पर ही क्यों न हो। जिस आईएस से निपटने की कसमें खाई जा रही हैं, उसे भी बुश के बेटे ने प्रोत्साहन दिया था। इनको हथियार भी बड़ी मात्रा में मिल रहे हैं। आखिर वे कहां से आ रहे हैं। यह सप्लाई लाइन कैसे रुकेगी।
दुनिया को अपने लाभ के लिए लड़ाई की विभीषिका में झोंकना जिससे कि अपना व्यापार और लाभ बना रहे और सबसे बड़े समाजसेवी और मानवतावादी होने का ढोंग भी करना, इससे कब निजात मिलेगी। अफगानिस्तान से आप तो विदा हुए मगर आसपास के देशों को कैसी मुसीबत सौंप गए, कभी सोचा है। पश्चिम को तेल, सोना, प्लूटोनियम, यूरेनियम के साथ सस्ते मजदूर भी चाहिए। मानवता के नाम पर शरणार्थियों को अपने यहां पनाह देने का एक बड़ा कारण यह भी है।