आरक्षण: कांग्रेस बनाम डा.अम्बेडकर

s.k.dubeyशचीन्द्र कुमार दुबे
डा. भीमराव अम्बेडकर कि सलाह पर गांधीजी आराक्ष्ण कि आवश्यकता समझते हुए 10 वर्ष के लिए मान्यता प्रदान किया था। परन्तु आरक्षण एक मत कोष है जिसकी आवश्यकता नेहरूजी को थी, फलस्वरूप संबिधान कि आत्मा में मुलभूत परिवर्तन करते हुए नेहरू जी ने ऐसी सम्बिदा का प्रावधान किया जो कांग्रेस को सैदव बनाये रखने के लिए पर्याप्त है। तदुपरांत श्रीमती इंदिरागांधी-जी पिता के नियमों का पालन करते हुए अराक्षण कि अवधि को निरंतर अग्रसरित किया। अत: सन 1950 से लेकर आजतक, कुल 65 वर्ष की आयु तक, दो पीढिय़ों से निरंतर सवर्ण जाती के शिक्षा, प्रतिभा और कौशल का भक्षण करता रहा। शिक्षा, प्रतिभा और कौशल कि हत्या देश के विकाश कि हत्या है। यह 65 वर्ष कि गुलामी (अराक्षण) सवर्ण जाती के लोगो को झकझोर दिया है। और पर्याप्त है कि वे कांग्रेस मुक्त राष्ट्र बनाए।
बसपा का उदय ही सवर्ण जाती के लोगों को गाली देने के लिए हुआ है। बसपा के लोगों ने एक बार कहा कि तिलक,तराजू और तलवार आगे बोलना मानवता का हनन है। पार्टीस्तर पर यह गाली दी गई जोकि पूरे सवर्ण समुदाय को इंगित करता है। बसपा के लोगों ने दूसरी बार कहा कि चंद्रशेखर आजाद एक डकैत थे। चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रजो को गोली मारा और स्वाभिमान कि रक्षा हेतु स्वयं को गोलीमारा। यह उनका बलिदान पुरे भारत वर्ष के लोगों के लिए था, न कि सिर्फ सवर्ण लोगों के लिए था। जिस दल के लोग देश के बलिदानियों को भी गाली देते हैं, वह दल देश के लोगों का सम्मान नहीं कर सकता। ऐसे असंस्कारिय दलों कि सदस्यता स्वीकार करना अपने देश और भारतमाता को गाली देना जैसा ही है। अत: निर्वाचन के समय उनके दल को मत प्रदान करना ठीक वैसा ही है, जैसा कि मानसिंह ने उससमय देश के साथ किया। उपर्युक्त दलों कि बिबेचना से स्पस्ट होता है, कि कांग्रस और बसपा को मत देने के पहले, मतदाता को अपने पवित्र हृदय पर हाथ रख का ही, विचार करना आवश्यक है।

प्रकाशित लेख में लेखक के अपने विचार हैं।