‘किताबें वो औलाद हैं जो हमेशा जि़न्दा रहती हैं’

wazahatलखनऊ मार्च। उर्दू विकास आन्दोलन के सक्रिय प्रणेता डाॅ0 अहमद अब्बास रुदौलवी ने कहा है कि प्रो0 महमूद इलाही के लिए सबसे बड़ी श्रद्धांजलि यही होगी कि उर्दू प्रेमी अपने बच्चों को उर्दू की शिक्षा की तरफ उनका ध्यान आकृष्ट करें और उनकी मनोस्थिति के मुताबिक बाल साहित्य के प्रकाशन को प्रस्तुत करें। उन्होंने कहा कि उर्दू भाषा को नई नस्लों तक स्थानान्तरित करना हम सभी उर्दू प्रेमियों की सामूहिक जिम्मेदारी है।
डाॅ0 अब्बास कल यहां गोरखपुर विश्वविद्यालय के भूतपूर्व कुलपति एवं उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो0 महमूद इलाही की दूसरी बरसी के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के चेयरमैन पद पर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के दौरान प्रो0 इलाही ने मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के प्रख्यात समाचार-पत्र अल-हिलाल और अल-बलाग़ के अंकों का पुनः प्रकाशन करा कर पुस्तक के रूप में प्रकाशित कराया, जो आने वाली नस्लों के लिए एक दस्तावेज की हैसियत रखते हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए उर्दू मासिक ‘नया दौर’ के सम्पादक एवं मुख्यमंत्री मीडिया सेण्टर के प्रभारी डाॅ0 वज़ाहत हुसैन रिज़वी ने अपने उस्ताद महमूद इलाही को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि वो न केवल एक अज़ीम इन्सान बल्कि एक प्रिय शिक्षक भी थे। उर्दू भाषा व साहित्य में गवेषणात्मक शोध एवं आलोचना के मैदान में उनके साहित्यिक योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने प्रो0 महमूद इलाही के उस वाक्य को ‘कि किताबें वो औलाद हैं, जो हमेशा जि़न्दा रहती हैं’ के दृष्टिगत ही अपने रचनात्मक एवं सृजनात्मक का सिलसिला जारी रखे जाने पर बल दिया। डाॅ0 रिज़वी ने कहा कि उर्दू की मौजूदा हालत के लिए स्वयं उर्दू के लोग ही जिम्मेदार हैं, क्योंकि अधिकतर उर्दू शिक्षक और शायरों की औलाद उर्दू से अनभिज्ञ हैं। इसलिए हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम अपने घरों में उर्दू के विकास और उसकी तरक्की के लिए अपने बच्चों को उर्दू शिक्षा देने के साथ ही साथ उर्दू समाचार-पत्र और पत्रिकाएं अवश्य खरीदें। उन्होंने कहा कि प्रो0 महमूद इलाही ने अपने अथक प्रयास से विशेष तौर पर पूर्वांचल में उर्दू शिक्षा के विकास देने के क्रम में विभिन्न महाविद्यालयों में उर्दू के विभाग स्थापित कराए और इस प्रकार उर्दू की तरक्की के लिए उन्होंने अपनी पूरी जि़न्दगी समर्पित कर दी।
गोष्ठी का संचालन पत्रकार गुफ़रान नसीम ने अपने शोध-पत्र में प्रो0 इलाही की साहित्यिक सेवाओं का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम के संयोजक डाॅ0 सलीम अहमद ने अपने को प्रो0 इलाही का शिष्य होने पर गर्व का इज़हार करते हुए कहा कि उनकी जि़न्दगी का अस्ल उद्देश्य उर्दू भाषा और उर्दू शिक्षा को विकसित करना था।
इस अवसर पर सभा के अध्यक्ष डाॅ0 वज़ाहत हुसैन रिज़वी को उर्दू भाषा की सेवा के लिए एक प्रतीक चिन्ह और शाॅल पेश की गई। कार्यक्रम के अन्त में एक काव्य गोष्ठी का आयोजन भी किया गया, जिनके कुछ शेर प्रस्तुत हैं –
उर्दू के अलमबरदार थे महमूद इलाही
तहज़ीब का मेयार थे महमूद इलाही
मुईद रहबर
मुन्तकि़ल होके घर गया हूं मैं
ये न समझो कि मर गया हूं मैं
आमिर मुख़्तार
अभी न ख़त्म हुआ था फ़सानए हस्ती
गुरेज़ करने लगे अपने दरमियान से लोग
शाहिद कमाल
आज भी बेचैन होगी रूह उर्दू के लिए
हसरतें थीं सैकड़ों उसके दिले सदचाक में
खि़दमते इल्मो अदब में जो कि सरगर्दां रहा
सो रहा है आज वह सालार गढ़ की ख़ाक में
आज़ाद ज़मीर अंसारी
हमदर्दियों से उनकी सदा दूर ही रहें
दस्तार जिनके सर पर हो शाने पर सर न हो
नूर करनैलगंजवी
ग़ज़ल का चाँद सा मुखड़ा नज़र आता है काग़ज़ पर
ज़मीं पर रह के भी शायर महे कामिल से मिलते हैं
उस्मान आजि़म
उनके हाथों में जरस किसने दिया है यारो
जिनका मसलक है हर इक काफि़ला लूटा करना
हमसर मोहानी
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