गुजरात चुनाव के बाद फीनिक्स बनकर उभरेगी कांगे्रस

 

विशेष संवाददाता, नई दिल्ली। देश के सबसे ताकतवर राजनीतिक परिवार के वारिस राहुल गांधी की अगले कुछ हफ्तों में कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर ताजपोशी होनी है। पार्टी पर औपचारिक तौर पर पूर्ण नियंत्रण के बाद वह कुछ भी फैसले लेने के लिए आजाद होंगे और उनके सामने यह साबित करने की चुनौती होगी कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दबदबे को विश्वसनीय चुनौती दे सकते हैं। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के पोते राहुल गांधी वोटरों को और अपनी ही पार्टी में तमाम लोगों में यह भरोसा जगाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं कि उनमें नेतृत्व क्षमता है खासकर 2014 के आम चुनावों में करारी हार के बाद उनकी चुनौती बढ़ गई है। मोदी ने इस 47 साल के नेता को अयोग्य शहजादा करार दिया है और उनके इस चित्रण ने गांधी को पिछले चुनाव के बाद से ही सियासी हाशिये पर भेजने की मदद की है। पिछले चुनाव में कांग्रेस को सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन इस साल अर्थव्यवस्था लडख़ड़ा रही है और कांग्रेस के नेताओं को उम्मीद है कि मोदी के गृह राज्य गुजरात और कुछ अन्य राज्यों में आगामी चुनाव कांग्रेस के लिए 2019 के आम चुनाव से पहले पुनर्जीवन के मौके हो सकते हैं।
गांधी जल्द ही अपनी 70 साल की मां सोनिया गांधी से कांग्रेस अध्यक्ष का पद लेंगे। राहुल गांधी के करीबी सहयोगी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया कहते हैं, आपको तमाम बदलाव दिखेंगे और हर बदलाव कांग्रेस की मूल मान्यताओं की पुन:पुष्टि करेंगे। उन्होंने आगे कहा, मोदी के कामकाज के तरीकों पर हमला करने का सही वक्त आ चुका है और हम इससे नहीं चूकेंगे।कांग्रेस के भीतर लोग यह स्वीकार करते हैं कि उनके नेता कभी-कभी मोदी की बीजेपी को राजनीति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर सवाल उठाना आसान बना देते हैं।पार्टी के एक बड़े नेता ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर बताया, राहुल गांधी के साथ मुख्य समस्या यह है कि उनमें निरंतरता का अभाव है। वह अकसर कुछ रोडशोज के बाद ब्रेक ले लेते हैं और निरंतरता की यही कमी सबसे बड़ी कमी है। हालांकि कांग्रेस नेताओं का कहना है कि गांधी ने रोजगार पैदा करने में असफल रहने को लेकर मोदी सरकार को घेर रहे हैं और पार्टी ने हाल के कुछ उप-चुनावों में जीत हासिल की है।