गुमनामी के अंधकार में खोयी हुयी है आरण्यक गुफा

himachal-Pradeshजगदलपुर (आरएनएस)। पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण तोकापाल की आरण्यक गुफा की अनदेखी 24 सालों से हो रही है। आम पर्यटक वहां तक पहुंच सके इसके लिए न तो वन विभाग काम कर रहा है और न ही छग पर्यटन विभाग यहां सुविधांए मुहैया करवाकर इसे प्रचारित करवा रहा है। इसलिए यह भू-गर्भीय गुफा उपेक्षित पड़ी है।
वर्ष 1991 में बस्तर कोच समिती के सदस्य मनीष गुप्ता, डॉ. सुरेश तिवारी, रूद्रनारायण पानीग्राही, डॉ. मरकाम और सेमसन आदि ने इस गुफा की खोज की थी। तोकापाल से 12 किमी दूर मादरकोंटा नामक गांव की पहाड़ी पर स्थित आरण्यक गुफा को देखने तत्कालीन कलेक्टर कुछ मीडिया कर्मियों के साथ पहुंचे थे। समिति के सदस्य गुफा के भीतर करीब 10 घंटे तक रहकर तथा गुफा का सर्वक्षण कर सैलानियों के लिए मार्ग सुनिश्चित किये थे। वहीं गुफा के भीतर प्रवेश कर लोग अंदर सुंदर संरचनाओं को देख सके इसके लिए पत्रकारों ने गुफा के लिए लोहे की कई छोटी बड़ी सीढिय़ा बनवाई थीं। किंतु स्थानीय पंचायत के सीढिय़ंा लगाने नहीं दिया इसलिए हजारों रूपये की सीढिय़ां खराब हो गई। समाचार पत्रों मेंं लगातार आरण्यक गुफा की खबरे प्रकाशित होने के बाद भी वन विभाग ने कोटमसर, दण्डकगुफा और कैलाश गुफा की तरह आरण्यक गुफा के लिए कोई योजना नहीं बनाई और न ही गुफा तक का मार्ग साफ करवाया। वर्ष 2000 में छग बनने के बाद पर्यटन मंडल ने आरण्यक गुफा की तरफ ध्यान नहीं दिया। प्रकृति प्रेमियों ने बस्तर विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष व केशलूर विधायक बैदूराम को भी इस गुफा के विकास हेतु प्रोजेक्ट तैयार करवाने का आग्रह किया था, पर अब तक किसी भी तरह का काम नहीं हो सका। कोटमसर गुफा और तीरथगढ़ जलप्रपात के पास होने के कारण कांघाराउ से भी आरण्यक गुफा के लिए मार्ग और सीढिय़ां की मांग की गई थी, परंतु उद्यान विभाग ने आरण्य गुफा को उद्यान क्षेत्र से बाहर बताकर किसी भी तरह का कार्य करने से इंकार कर दिया था।
जगदलपुर वन वित्त के सीसीएफ एमटी नंदी ने बताया कि उन्होंने आरण्यक गुफा के संदर्भ में जानकारी प्राप्त की है तथा चित्रकोट वन परिक्षेत्र के अधिकारियों से गुफा क्षेत्र का अवलोकन करने के बाद प्रोजेक्ट तैयार करेंगे, ताकि लोग बस्तर की एक और गुफा का रोमांच देख सकें।