छलिया है कोरोना: फिर बदल रहा है प्रारूप

डेस्क। कोरोना वायरस के जरिए फैलनेवाला ताजा संक्रमण जिसे हम सभी सार्स कोविड-19 के रूप में जानते हैं, लगातार अपने प्रारूप में बदलाव कर रहा है। जब किसी वायरस में लगातार इस तरह के बदलाव होते रहते हैं तो इसके संक्रमण को रोकने के लिए वैक्सीन और दवाएं बनाना खासा मुश्किल हो जाता है। भौगोलिक क्षेत्र, जलवायु आदि में परिवर्तन के साथ ही कोरोना वायरस में भी लगातार म्यूटेशन (बदलाव) होते रहे। अभी तक इसकी 8 स्ट्रेन्स के बारे में ही पुख्ता जानकारी है। किसी भी ऑर्गेनिज़म में म्यूटेशन होना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसे कोई भी ऑर्गेनिज़म खुद ना तो शुरू कर सकता है और ना ही रोक सकता है। यदि वायरस में होनेवाले ये बदलाव उसकी लाइफ के लिए सकारात्मक होते हैं तो उस वायरस की वह स्ट्रेन जीवित रहती है और आगे बढ़ती रहती है। यानी अधिक से अधिक संक्रमण फैलाती है। जबकि अगर म्यूटेशन के बाद बनी स्ट्रेन माहौल के हिसाब से सर्वाइव ना कर पाए तो वह कुछ ही समय में खत्म हो जाती है। किसी वायरस में म्यूटेशन होने का यह अर्थ बिल्कुल नहीं होता है कि वह और अधिक जानलेवा (लीथल) होता जा रहा है। इसलिए इसके म्यूटेशन से डरने की जरूरत नहीं होती है। इस म्यूटेशन के कारण सबसे अधिक दिक्कत इस तरह के वायरस के लिए टीका तैयार करने के दौरान होती है। क्योंकि हर जगह की जलवायु अलग तरह की होती है, उसके हिसाब से दुनियाभर के लिए एक ऐसी वैक्सीन तैयार करना, जो हर जगह कारगर हो, यह अपने आपमें एक बड़ी चुनौती है। हाल ही एक स्टडी में कोरोना के बारे में एक नई जानकारी सामने आई है। सार्स कोविड-19 वायरस को कमजोर करने का काम इंसान के शरीर की जो सेल्स करती हैं, वह एक तरह के प्रोटीन से निर्मित होती हैं। ताजा जानकारी में यह बात सामने आई है कि कोरोना वायरस इंसान के शरीर में प्रवेश करने के बाद काफी हद तक इस प्रोटीन के अनुसार रिऐक्शन करता है। मतलब, अलग-अलग इंसानों के शरीर में पहुंचकर कोरोना वायरस अलग तरह से रिऐक्ट कर रहा है। इस अलग-अलग रिऐक्शन का संबंध उस प्रोटीन से हो सकता है, जो हमारे शरीर में इसे मारने का काम करता है। क्योंकि यह वायरस उस प्रोटीन से ही दिशा-निर्देश भी लेता है। यानी वह प्रोटीन कैसे काम कर रहा है, उसी के अनुसार इस वायरस का रिऐक्शन निर्धारित होता है। यह स्टडी हाल ही ब्रिटेन की बॉथ यूनिवर्सिटी द्वारा की गई है और मॉलिक्यूलर बायॉलजी ऐंड इवॉल्यूशन नामक जर्नल में प्रकाशित हुई है। शोध से जुड़े एक्सपट्र्स का कहना है कि कोरोना के साथ ही उन्होंने ऐसे 6 हजार से अधिक ऑर्गेनिज़म्स पर स्टडी की है, जिनमें म्यूटेशन हुआ है।