छात्रों को देशभक्ति के रंग में रंगा जाए

sanjay tसंजय त्रिपाठी। छात्रों में इन्फेक्शन फैल रहा है, रोकने के लिए ऑपरेशन जरूरी यह बात दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टीस प्रतिभा रानी ने जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी ( जेएनयू ) के छात्र नेता कन्हैया की गिरफ्तारी के 19 दिन बाद 6 महीने की अंतरिम जमानत की फैसला सुनाते हुए कहा । इस फैसले में उन्होंने कई ऐसी तल्खी टिप्पणी की हैं जो एक बार फिर छात्र राजनीति और उच्च शिक्षा परिसरों में राजनीति से मुक्ति पर मंथन करने पर विवश कर दिया है । इसी संदर्भ में राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रद्रोह का मुद्दा भी अहम बन गया है । राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रद्रोह की परिभाषा कई तरह से व्यक्त तो किया जा सकता है , और आज के प्रसंग में इसका अर्थ जो भी अपने अनुसार गढा जाए लेकिन इस बात से कोई भी देशवासी सहमत नहीं हो सकता कि देश को टुकड़े – टुकड़े करने और आतंकवादियों का समर्थन करने वाले नारे लगाना देश हित में सही है । जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी ( जेएनयू ) भारत के टॉप संस्थनों में तो है ही , इसका नाम दुनियाभर के अच्छे विश्वविधालयों में भी शुमार किया जाता है । दो विदेशी प्रधानमंत्री समेत दर्जनों नेता , नौकरशाह और अन्य क्षेत्रों में चर्चित नाम देनेवाला संस्थान है । लेकिन आज यह संस्थान देशद्रोह और देशभक्ति का आंखड़ा बना हुआ है । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर यहां देशद्रोह जैसे कार्यो को अंजाम दिया जा रहा है । हालांकि हाईकोर्ट की जस्टीस ने अपने फैसले की टिप्पणी में यह भी उल्लेख किया है कि ‘ याचिकाकर्ता की अपनी विचारधारा हो सकती है । हर व्यक्ति को इसे मानने का अधिकार है , पर संविधान की सीमा में । भारत विभिन्नता में एकता का उदाहरण है । हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है , पर संविधान की धारा 19 ( 2 ) के तहत पाबंदिया भी है। इसका उल्लेख करने के पीछे मेरा मकसद ‘ अभिव्यक्ति की आजादी पर छिड़ी बहस से है । कई विशेषज्ञ , शिक्षाविद् और हमारे पत्रकार साथी अभिव्यक्ति की आजादी Ó के नाम पर कन्हैया और उसके साथियों के कार्य को वैचारिक मतभेद मानते हुए सही ठहरा रहे हैं । लेकिन क्या भारत के टुकड़े – टुकड़े करने तथा अफजल जिसे देश की सुप्रीम कोर्ट ने ही फांसी की सजा सुनाई के समर्थन में नारेबाजी करना अभिव्यक्ति की आजादी है । इस मूलभूत अधिकार का दुरूपयोग कर अपने देश को तो क्या किसी भी परिवार को भी अपशब्द नहीं कहा जा सकता ।
9 फरवरी को जेएनयू में जो कुछ भी हुआ इसे देश की संप्रभूता के लिए घातक ही कहा जा सकता है । जो नारे वहां लगाये गए वह देश हित में कतई उचित नहीं कहे जा सकते , चाहे आपके विचार जिस स्तर की भी हो । इस तरह के राष्ट्रविरोधी नारों की उपेक्षा करना भविष्य में खतरनाक ही होगा । आज देश के एक हिस्सा श्रीनगर में आये दिन पाकिस्तानी झंडा लहराने , देश विरोधी नारे व सैनिकों पर पत्थराव जैसे कारनामें रोज होते रहते हैं । उन्हें न तो भारत के प्रति और न इसके संविधान व कानून के प्रति कोई सम्मान है । वे पाकिस्तान से होनवाले आतंकवाद और हर तरह के हिंसा के समर्थक हैं । ऐसे हालात में देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसी चिंगारी फैलने लगेगी तो देश के संविधान और कानून का क्या होगा ? अफजल गुरू को देश का सुप्रीम कोर्ट ने फांसी पर लटकाया था , इस तरह तो न्यायवीदों पर अंगूली उठाने का काम किया जा रहा है । उसे पूरी न्यायिक प्रक्रीया से गुजरने के बाद और उसके द्वारा खुद के बचाव के लिए कानून और संविधान के तहत उपलब्ध सारे साक्ष्य अजमाने के बाद उसे फांसी दी गई । ऐसे में अफजल गुरू के फांसी पर प्रश्नचिन्ह कैसे लगाया जा सकता है ।
हमेशा से युवाओं की सोच सरकार व व्यवस्था से अलग होती है । यह होनी भी चाहिए , लेकिन युवाओं को यह भी ध्यान रखना होगा कि राष्ट्र सर्वोपरी है । राष्ट्रसे हम हैं , हमसे राष्ट्र नहीं है । राष्ट्र पर कुठाराघात अवाम बर्दाश्त नहीं कर पाता , चाहे वह सरकार द्वारा की जाए या किसी और के द्वारा । सरकारी नीतियों व कार्यव्यवस्था को लेकर युवाओं व सरकार में वैचारिक मतभेद तो हो सकते हैं , लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देशद्रोह के अपराध को कानून से अलग नहीं किया जा सकता । सभी स्वतंत्रताओं की अपनी सीमा है और कोई भी स्वतंत्रता निरपेक्ष नही है । यह कोई तानाशाही विचार नहीं , बल्कि लोकतंत्र का मूलतत्व है । एक तरफ देश के सैनिक रक्षा और सुरक्षा के लिए रोज बलिदान दे रहे हैं , वैसे हालात में हमारा कर्तव्य सैनिकों का मनोबल बढ़ाना है । यदि देशवासी स्वतंत्रता के नाम पर ऐसे कार्य करें , जो देश के लिए शर्मनाक हो और देश के बाहर हमारे शत्रुओं को प्रोत्साहित करें तो इससे सेनिकों का मनोबल बढऩे के वजाय कमजोर होगा ।
हमेशा से सरकार और युवाओं की सोच में द्वंद रहा है । अधिकांश युवा इंटरमीडियट और ग्रेजुएशन तक इन द्वंदों के मंथन में इलझ जाते हैं । खासतौर से उच्च शिक्षण के युवाओं को इन द्वंदों से संघर्ष करते देखा जा सकता है । उच्च शिक्षण संस्थानों को राजनीति से अलग करना भी उचित नहीं कहा जा सकता क्योंकि यही वह जगह होता है जहां से वक्ता , विद्वान और विचारक का मार्ग खुलता है । वाकपटूता की कसौटी का कसाव होता है । ऐसे में उच्च शिक्षण संस्थानों से राजनीति को अलग तो नहीं करना चाहिए लेकिन ऐसी व्यवस्था जरूर करनी चाहिए जिससे पच्शिम में भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान ( एफटीआईआई ) , हैदराबाद यूनविर्सिटी और जेएनयू जैसे हालात पैदा न हो पाए । यूनिवर्सिटियों में राष्ट्र के धरोहर गढे जाते हैं , ऐसे में उनके अंदर देशहित की भावना जगाने की प्रेरणा का पाठ पढ़ाना चाहिए । तभी देश का विकास और इसकी रक्षा संभव हो पायेगी । देश के राजनेता युवाओं पर दोषारोपण करने के वजाय अपनी राजनीतिक स्वार्थ भी त्यागे तभी राष्ट्र की अस्मिता को बचाया जा सकता है । जेपी आंदोलन युवाओं के प्रबल विरोध का ही एक रूप था , लेकिन उसकी परिणिती पर जरा ध्यान दीजिए । उस आंदोलन में जो भी युवा प्रखर हिस्सेदारी किए वे आज सबसे ज्यादा मलाई काट रहे है , लेकिन देश के आवाम को क्या मिला । युवा अवस्था और उसकी लहर भी पानी का बुलबुला ही कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगा, क्योंकि उम्र ढलने के साथ ही यह स्वत: ही पानी में विलिन हो जाता है , पर अपना बहुत प्रभाव भी छोड़ जाता है । खासतौर से ऐसे समय में अधिकांश युवाओं का झुकाव वामपंथी विचार धारा के तरफ ही होता है , उन्हें लगता है कि हमें उतनी आजादी नहीं मिल रही है , जितना मिलना चाहिए । असमानता और संघर्ष भी इसकी उपज का मुख्य कारण होता है । उस समय सभी सरकारी नीतियों में खामियां ही खामियां दिखाई देती है और स्वंय से उसमें परिवर्तन की घारणा प्रबल होती है । लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में वामपंथियों के हश्र का मिसाल पश्चिम बंगाल और केरल में स्पष्ट दिखाई दे रहा है । ऐसे समय में पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के धारणा पर अमल करना होगा क्योंकि वे कहते ‘ छोकरे हैं बोलने दीजिए Ó । देश के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्रों को देशभक्ति की सीख देने की अपील की है । ऐसी स्थिति में हम सब का यह दायिव्त बनता है कि आनेवाली पीढ़ी में मातृभूमि के प्रति लगाव पैदा करें , ताकि लोागों में अपने देश और समाज के प्रति प्यार हो । राजनीतिक स्पर्धा में राजनेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस दिन देश और मातृभूमि के प्रति आमजन में लगाव खत्म हो जायेगा , उस दिन देश को एक बार फिर गुलाम होने से कोई नहीं बचा सकता ।

संजय त्रिपाठी
वरिष्ठ पत्रकार
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