जीवन को संवारती है छोटी-छोटी बातें

lalit garg
 ललित गर्ग
एक आदमी ने बबूल का पौधा लगाया और बड़ी लगन से उसकी देखभाल की। लोगों ने उसे कंटीले पौधे पर इतनी मेहनत करते देखकर कहा, ‘‘यह तुम क्या कर रहे हो?’’ उस आदमी ने उत्तर दिया, ‘‘इस पौधे पर इतने बढि़या फल आयेंगे कि तुम देखते रह जाओगे।‘‘ लोगों ने उसे समझाया कि तुम पागल हो। कहीं बबूल के पेड़ पर आम लग सकते हैं? पर उस आदमी के समझ में नहीं आया। रोज उत्सुकता से देखता कि अब उस पर आम लगेंगे, अब लगेंगे, लेकिन आम लगने कहां थे, जो लगते।
संसार में अधिकांश व्यक्ति उसी अज्ञानी की भांति हैं। वे बीज दुख के बोते हैं और सोचते हैं कि फसल सुख की काटेंगे। यह कदापि संभव नहीं है। इसी से कहावत है-‘‘जैसा बोओगे, वैसा काटोगे।’’ यदि आप सपने ही नहीं देखोंगे तो उन्हें साकार कैसे करोंगे। यदि आप अपने अंदर खुद को भरोसा दिलाएं कि आपके पास वह सब हो सकता है, जो आप चाहते हैं तो आखिरकार आपके पास वह सब होगा, जो आप चाहते हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आप अपने जीवन में कुछ नया करने की और उड़ान भरने की तैयारी करें। फ्रांकोइस गाॅटर ने कहा-‘‘फूल अपने आप खिलते हैं-हम बस उसमें थोड़ा पानी डाल सकते हैं।’’ इसी तरह, हर व्यक्ति आखिरकार अपनी क्षमता और अपनी नियति के अनुसार काम करता है। हमें तो बस उन्हें कुछ नया करने, सपने बुनने और उन्हें साकार करने की तत्परता दिखानी होगी। रिश्तों में ऊर्जा भरनी होगी।
वर्तमान विकासशील युग में जीवन में विकास के अवसर खूब मिले हैं, पर खुशी घटी है, सुख घटा है, संतुष्टी घटी है। सुख की कल्पना हम सब करते हैं लेकिन सुखी होना आज के जीवन की एक चुनौती बन गया है। पति-पत्नी के जन्म-जन्मांतरों के रिश्तों को आज एक जन्म तक निभाना भी भारी लगने लगा है। मिट्टी के घरौंदो की तरह घर बनाते ही मिटाने के लिए पैर अदालत के कटघरे में पहुंच जाते हैं, तलाक मांगने के लिए। सास-बहू के रिश्तों में कड़वाहट घुलने लगी है। किशोर होते बच्चों में मां-बाप से अलगाव साफ नजर आ रहा है। बुजुर्ग अकेलेपन व उदासी के माहौल में जी रहे हैं। युवा पीढ़ी को तो बड़े लोगों की दखलअंदाजी से शिकायतें है। और बड़ों को युवा पीढ़ी के तौर तरीके रास नहीं आते, दोष किसका है? बदलते हुए युग का, वातावरण का, परिस्थितियों का या व्यक्ति की समझ का। मेरा मानना है सबका अपना-अपना रोल है। युग के प्रवाह को रोका नहीं जा सकता, वातावरण के प्रभाव पर पर्दा नहीं डाला जा सकता, परिस्थितियों में आमूल-चूल परिवर्तन तो किया जा सकता है। ना ही दूसरों को बदलने का ठेका लिया जा सकता है। पर हमारी स्वयं की समझ को बढ़ाने से जीवन में खुशियों को लाया जा सकता है। अंग्रेजी में एक कहावत है पूरी दुनिया में गलीचा बिछाने की बजाय खुद के पैरों में चप्पल पहने से रास्ता अपने आप सुगम बन जाता है।
खुशी हमें उपहार के रूप में नहीं मिलती, इसके लिए हमें प्रयत्न करना पड़ता है। सुख हमारे प्रयत्नों का बाई प्रोडेक्ट है। सुख पाना मानव का स्वभाव है, जब आप दूसरों को सुख देते हैं, तो निश्चित रूप से आपको सुख और संतोष मिलने लगता है। रिश्तों में हम सभी से गलतियां होती हैं, कभी-कभी हम बहुत नजदीक रिश्ते वाले लोगों के साथ लापरवाह हो जाते हैं। इससे मायूसी और नाराजगी बढ़ती है। धीरे-धीरे दूरियां बढ़ती जाती है। समझदारी इसी में है करीबी रिश्तों के प्रति संवेदनशील बनें। केवल अपनी भावनाओं को ऊंचा स्थान दे, वह स्वार्थी होता है। स्वार्थी होने की कीमत चुकानी ही पड़ती है। दूसरों की भावना के प्रति उदार बनें। उदार होने का मतलब है आप किसी के कहे बिना भी उनकी भावनाओं को समझें। उसके बारे में सोचें, विचारें। इससे आपके जीने का अंदाज बदल जायेगा। जैसा कि श्री श्री रविशंकर ने कहा है-‘‘मानव जीवन एक महान और दुर्लभ उपहार है और इस धरती के सभी लोगों को अपने जीवन के द्वारा अपनी मानवीयता की पूर्ण क्षमता प्रदर्शित करने का मौका मिलना चाहिए।’’ हम इस महत्वपूर्ण कार्य को तभी पूरा कर सकते हैं, यदि हम दूसरों की मदद करें। दूसरों की मदद करते हुए वास्तव में हम अपनी ही मदद करते हैं। किसी ने बहुत ठीक कहा है-‘‘मैं एक दोस्त ढूंढने गया, लेकिन वहां किसी को नहीं पाया। मैं दोस्त बनने गया और पाया कि वहां कई दोस्त थे।’’
मजबूत रिश्ते परफेक्ट होने की वजह से नहीं बनते, बल्कि एक-दूसरे की परवाह करने से बनते हैं। समूह में रहना है तो केवल मैं या केवल तुम का कोई स्थान नहीं होता। मेरी दूसरों को जरूरत है तो दूसरों की जरूरत मुझे भी है। मैं और तुम दोनों के सामंजस्य से ही जीवन संगीतमय बनता है।
सेवा एक ऐसी भाषा है, जिसे बहरे सुन सकते हैं, अंधे देख सकते हैं। सेवा की भावना किसी को अपना बना लेने का ‘वशीकरण मंत्र’ है। बुजुर्गों को संयत रहने, समय के साथ चलने, इच्छाओं को काबू में रखने की नसीहतें नहीं दें, नसीहतों की सौगात नहीं दें, सेवा की तरावट दें। आपका जीवन उपयोगी बन जायेगा। देना और लेना हमारी सांस की लय की तरह स्वाभाविक होता है-अंदर और बाहर, बार-बार यही क्रम। दुनिया की सभी प्रमुख परम्पराओं में देना एक अभिन्न अवधारणा है। जैसा कि सेंट फ्रांसिस ने कहा-‘‘हम देने में ही प्राप्त करते हैं।’’ हम ब्रह्माण्ड को बताते हैं कि सेवा और परोपकार सिर्फ ऊर्जा है और हम सिर्फ उस ऊर्जा के माध्यम हैं। इसलिए हम जितनी इस भावना को जीते हैं, उतना ही हमें मिलता है-जीवन को खुशहाल बनाना इतना ही सरल है।
क्या कभी किसी को कोई हाथी काटता है? पर मच्छर हममें से बहुत से लोगों को काटते हैं। तात्पर्य यह है कि छोटी-छोटी बातें ही रिश्तों को काटती हैं यदि उनमें कड़वाहट के डंक हो। मीठी बोली बोलने से जीभ को कोई तकलीफ नहीं होती ना ही कुछ खर्च होता है, पर हासिल बहुत ज्यादा होता है। वाणी का मिठास रिश्तों में रस घोलता है।
चांद से पूछा तुम इतने हसीन क्यों हो? चांद ने कहा-ये तो तुम्हारी नजर का जादू है वरना मुझमें भी दाग है। जब व्यक्ति का नजरिया सकारात्मक होता है तो खूबियां नजर आती हैं, कमियां अपने आप नजरअंदाज हो जाती हैं। व्यक्ति की जब दृष्टि बदलती है तो दृश्य भी बदल जाता है। चिंतन जब विधायक हो जाता है तो व्यक्ति में धैर्य आ ही जाता है, वह झुंझलाता नहीं, उलझता नहीं, प्रतिकूल परिस्थिति को भी अनुकूल बना लेता है।
हथौड़े ने ताले से कहा-मेरी भारी भरकम चोट तुम्हें खोलने में असमर्थ है फिर यह छोटी-सी चाबी तुम्हें कैसे खोल लेती है? ताले ने हथौड़े से कहा-अंतर टटोलने वाला क्या नहीं खोल सकता? विनम्रता वह चाबी है जो जीवन के उन बंद तालों को खोलती है, जिसे अहंकार नहीं खोल सकता। विनम्रता हमारे नैतिक चरित्र का हिस्सा है। घर वालों के साथ विनम्र व्यवहार करना उतना ही जरूरी है जितना की बाहर वालों के साथ करना। ईश्वर ने हमें जीवन में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए बनाया है और उसने हमें काबिलियत, अंतर्दृष्टि, प्रतिभा, बुद्धि और ऐसा करने के लिए अपनी अलौकिक शक्तियां दी हैं। हमारे पास ईश्वर-प्रदत्त अपनी नियति को पूरा करने के लिए हर जरूरी चीज मौजूद है। जरूरत है कि हम उसकी तैयारी करें।
  अपनी बात को इतना न खींचें कि बात बिगड़ जाये। आग्रह की पकड़ जब ढीली पड़ती है तो चिंतन स्वस्थ होने लगता है। तब व्यक्ति सोचता है-आसमान केवल उतना ही नहीं जितना मुझे दिखाई देता है। मेरी नजरों से परे भी बहुत बड़ा आसमान है। डिजरायली ने एक बार कहा था-‘‘जीवन बहुत छोटा है और हमें संतोषी नहीं होना चाहिए।’’
 प्रत्येक व्यक्ति के मन में सफलता की आकांक्षा होती है। वह सफल और सार्थक जीवन जीना चाहता है। कोई भी निरर्थक और विफल जीवन जीना पसंद नहीं करता। किन्तु सफल जीवन जीने के लिए कितना प्रयत्न और पुरुषार्थ करना पड़ता है। इसकी यदि तैयारी हो तो सफलता निश्चित मिल सकती है। यदि वह तैयारी नहीं है तो सफलता की आकांक्षा को छोड़कर मिट्टी जैसी अवस्था में रहना होगा। विश्व के उन लोगों का इतिहास पढ़ो जिन्होंने अपने प्रयत्न से मानव के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश की है। हर युग में ऐसे व्यक्ति हुए हैं। कोई भी समय ऐसे लोगों से वंचित नहीं रहा। उनकी राह आसान नहीं थी। सफलता उन्हें तुरंत नहीं मिली। बहुत परिश्रम किया, कष्ट सहे, तब जाकर मेहनत सफल हुई, एक बदलाव आया। स्वामी विवेकानन्द का कथन है कि हम जैसा बोते हैं, वैसा काटते हैं। हम अपने भाग्य के निर्माता स्वयं हैं। हम अपने भाग्य का निर्माण स्वयं करते हैं।
सफलता और सार्थक जीवन जीने के लिए मन का नियंत्रण बहुत जरूरी है। जो व्यक्ति मन पर नियंत्रण करना नहीं जानता, वह सफलता का जीवन जी नहीं सकता। अमेरिकी प्रखर वक्ता अर्ल नाइटिंगेल ने लिखा है, ‘एक अजीब सच यह है कि हम वैसे ही बन जाते हैं, जैसा कि हम ज्यादातर समय सोचते रहते हैं।’ अर्ले ने जब यह शब्द लिखे थे तब तक वैज्ञानिक यह नहीं जानते थे कि हमारा दिमाग क्या कर सकता है। अर्ल सही थे। आप अपने शरीर की आदतों को बदलने की कोशिश से उसे नहीं बदल सकते। केवल सोचने के तरीके और उसे देख पाने की नई आदतों के तरीके विकसित करके आप इसे बदल सकते हैं। घड़ा अपने अमृत जल से प्यासे प्राणियों की प्यास को बुझाता है इसके लिये घड़ा बनने की जो प्रक्रिया है, वह खुदाई से लेकर आग तपने तक की प्रक्रिया है। मिट्टी से सीधे ही घड़ा नहीं बन सकता। उसके लिए निर्धारित विधि का अनुसरण करना होगा। यही प्रक्रिया मनुष्य जीवन की सफलता एवं सार्थकता पर  भी लागू होती है। यह सीधी बात नहीं है, इसमें काफी सहना पड़ता है। सहते-सहते एक स्थिति ऐसी आती है, तब जीवन की सफलता और सार्थकता की अनुभूति होने लगती है। व्यक्ति सोचता है-जीवन सफल हो गया, मैं धन्य हो गया। डिजरायली ने इसीलिये कहा है कि मनुष्य के लिए जीवन में सफलता का रहस्य हर आने वाले अवसर के लिए तैयार रहना है।