नकदी मुक्त अर्थव्यवस्था की सीमाएं

new-curभरत झुनझुनवाला। हमारी अर्थव्यवस्था को सरकार शीघ्रातिशीघ्र डिजिटल इकोनॉमी की ओर ले जाना चाहती है। नकद लेनदेन पर टैक्स आरोपित करने की योजना है। सरकार की सोच है कि नकद लेनदेन कम होने से समानान्तर यानी ब्लैक इकोनॉमी पर बंदिश लगेगी। परन्तु तमाम विकसित देश डिजिटल इकोनॉमी को कई दशक पूर्व अपना चुके हैं। वहां भी नकद का उपयोग ब्लैक इकोनॉमी में जारी है। बैंक आफ इंग्लैंड की 2015 की क्वार्टरली रिव्यू में छपे एक पर्चे में कहा गया है कि बैंक द्वारा छापे गये नोटों में से आधे ही लेनदेन के लिये उपयोग किये जाते हैं। शेष या तो विदेशों में हैं अथवा शैडो यानी काली इकोनॉमी द्वारा उपयोग में लाये जा रहे हैं।
इस अध्ययन से स्पष्ट है कि विकसित देशों में काले धन के संग्रह एवं लेनदेन के लिये नकद का उपयोग जारी रहता है। संभव है कि छोटे दुकानदारों द्वारा कच्चे पर्चे पर बिक्री करने में कुछ कमी आए। परन्तु इसमें संदेह है। कच्चे पर्चे में खरीद करने में टैक्स की भारी बचत होती है। इस बचत को हासिल करने को व्यापारी नकद कारोबार को जारी रखेंगे। इस संभावना के फलीभूत होने का संकेत भी इंग्लैंड से मिलता है।
पेमेंट.काम द्वारा बनाये गये ग्लोबल कैश इंडेक्स के अनुसार वर्ष 2014 में इंग्लैंड के उपभोक्ताओं द्वारा 48 प्रतिशत लेनदेन नकद में किये गये। 24 प्रतिशत डेबिट कार्ड द्वारा किये गये। शेष ऑनलाइन अथवा अन्य डिजिटल माध्यम से किये गये। इस अध्ययन से पता चलता है कि विकसित देशों में नकद लेनदेन जीवित तथा सुदृढ़ है तथा छोटी रकम के लेनदेन के लिये लोग नकद को ही पसन्द करते हैं। यदि विकसित देशों में लगभग आधे लेनदेन नकद में किये जा रहे हैं तो भारत में इससे ज्यादा ही होंगे, चूंकि अपने देश में नकद कारोबार से टैक्स की बचत होती है।
टैक्स की चोरी को छोड़ दें तो भी लोगों द्वारा नकद लेनदेन कम ही किये जाते हैं। ब्रिटिश सरकार द्वारा कराये गये दूसरे अध्ययन में नकद को पसंद किये जाने का पहला कारण बताया गया है कि यह सस्ता पड़ता है। बैंक को डेबिट कार्ड जारी करने के लिये वार्षिक फीस नहीं देनी होती। दूसरा कारण कि छोटी रकम के लेनदेन को नकद में करना आसान होता है। तीसरा कारण कि नकद के लेनदेन से लोगों के लिये अपने बजट को मैनेज करना आसान रहता है। पर्स में देखकर तुरन्त समझ आ जाता है कि अभी और कितनी गुंजाइश है। डिजिटल इकोनॉमी में अपने बजट को मैनेज करने के लिये अलग से रिकार्ड रखना होगा कि कब कितना पेमेंट किया है और आगे कितना किया जा सकता है।
यही बात अपने देश में भी लागू होती है। आम आदमी द्वारा किये गये छोटे-छोटे लेनदेन को नकद में करना सस्ता पड़ता है। डिजिटल पेमेंट में तीन छुपे हुए खर्च होते हैं। उपभोक्ता को मोबाइल फोन खरीदना होता है। फोन का उपयोग बात करने के लिये किया जाये तो भी खर्च का एक अंश डिजिटल पेमेंट के लिये किया गया माना जायेगा। दूसरा खर्च पेमेंट पोर्टल के पास जमा कराई गयी रकम पर ब्याज के नुकसान का है। आप पोर्टल के पास 5,000 रु. जमा कराते हैं, जिससे आप जरूरत पर पेमेंट कर सकें। इस रकम पर पोर्टल द्वारा ब्याज कमाया जाता है। यदि यह रकम आपके बैंक खाते में रहती तो ब्याज आपको मिलता। तीसरा खर्च आपके समय का होता है। डिजिटल पेमेंट में सामने वाले से पूछकर उसका नंबर अपने मोबाइल में डालना होता है। पेमेंट करने के बाद रुककर दुकानदार से पूछना होता है कि उसके खाते में रकम पहुंची या नहीं। ग्राहक तथा दुकानदार दोनों का समय इसमें खराब होता है। कभी-कभी गलत नम्बर पर पैसा ट्रान्सफर हो जाये तो मुसीबत होती है।
एक गणित के अनुसार एक सामान्य उपभोक्ता द्वारा साल में 1 लाख का पेमेन्ट करने में इन मदों पर कुल 500 रु. का खर्च वहन किया जायेगा। अत: छोटे उपभोक्ता के लिये डिजिटल पेमेन्ट हानिप्रद है। लेकिन रिजर्व बैंक को नकदी नोट उपलब्ध कराने की बचत हो जाती है। इसी 1 लाख के लेनदेन को नोट उपलब्ध कराने का खर्च रिजर्व बैंक को वहन करना होगा। एक गणित के अनुसार नकदी नोट उपलब्ध कराने का खर्च 3 रुपये आता है। अत: छोटी रकम के लेनदेन करने में डिजिटल पेमेंट में सामान्य उपभोक्ता को 500 रु. का नुकसान और रिजर्व बैंक को 3 रु. का लाभ होता है। अर्थव्यवस्था को 497 रु. का नुकसान होता है।
बड़े कारोबारी द्वारा डिजिटल पेमेंट करने में परिस्थिति बदल जाती है। इनके द्वारा 10 करोड़ रु. का डिजिटल पेमेंट किया जाये तो भी मोबाइल आदि का खर्च 500 रु. ही आयेगा, चूंकि डिजिटल पेमेंट में 10 रु. अथवा 10 करोड़ रु. ट्रान्सफर करने में खर्च बराबर आता है। लेकिन 10 करोड़ के नकदी नोट उपलब्ध कराने में रिजर्व बैंक को 3,000 रु. का खर्च वहन करना होगा, चूंकि इस लेनदेन के लिये ज्यादा संख्या में नोट उपलब्ध कराने होंगे। अत: डिजिटल पेमेंट से बड़े कारोबारी को 500 रु. का नुकसान और रिजर्व बैंक को 3,000 रु. का लाभ होगा। अर्थव्यवस्था को 2,500 रु. का लाभ होगा।
लेनदेन के डिजिटल होने से यदि टैक्स की वसूली बढ़ गयी तो यह हानि कुछ कम हो जायेगी। वर्तमान में यह एक खुला प्रश्न है कि डिजिटल इकोनॉमी से टैक्स वसूली बढ़ेगी या नहीं। कहावत है कि ताले शरीफों के लिये लगाये जाते हैं। चोर तो ताले को खोलना जानता ही है। इसी प्रकार कच्चे पर्चे पर कारोबार करने वाले व्यापारियों के लिये डिजिटल इकोनॉमी के प्रभावी होने में संशय है। उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि डिजिटल पेमेंट छोटी रकम के लिये हानिप्रद और बड़ी रकम के लिये लाभप्रद है। यही कारण है कि इंग्लैंड में सामान्य उपभोक्ताओं द्वारा 48 प्रतिशत लेनदेन नकद में किया जा रहा है।
इस पृष्ठभूमि में हम डिजिटल इकोनॉमी की उपयुक्तता को समझ सकते हैं। बड़े तथा सफेद धन के लेनदेन के लिये डिजिटल इकोनॉमी उपयुक्त है जैसा कि ऊपर बड़े कारोबारी के सम्बंध में बताया गया है। छोटे लेनदेन के लिये डिजिटल इकोनॉमी हानिप्रद है। डिजिटल लेनदेन अपनाने के बावजूद काले धन के लिये नकद का उपयोग जारी रहता है। अत: सामान्य लेनदेन के लिये हम डिजिटल इकोनॉमी अपनाकर अपने को गड्ढे में डालेंगे। एक लाख का जो लेनदेन मात्र 3 रु.में किया जा सकता है, उसे सम्पन्न करने के लिये हम 500 रु. खर्च करेंगे।
काले धंधे के लिये नकद का उपयोग भी जारी रहेगा। भविष्य में विद्वान उपभोक्ता को अपने विवेक से समझ आ जायेगा कि छोटी रकम के लिये डिजिटल लेनदेन उसके लिये घाटे का सौदा है और डिजिटल इकोनॉमी स्वत: सिमट जायेगी।