पड़ोस में महाबाजार: सभी देशों के लिए सिंगल मार्केट

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एशिया में यूरोपीय संघ जैसे ही एक नए आर्थिक ब्लॉक बनना बहुत बड़ी घटना है। हमें इसका फायदा उठाना चाहिए और इससे संभावित नुकसान की भरपाई के उपाय पहले से सोचकर रखने चाहिए। आसियान (दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का संगठन) ने आसियान इकनॉमिक कम्युनिटी (एईसी) नाम से एक क्षेत्रीय आर्थिक ब्लॉक बनाने की घोषणा की है। इसमें ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं।
एईसी इन सभी देशों के लिए पूरी तरह खुला हुआ एक ऐसा सिंगल मार्केट होगा, जिसमें पूंजी, सामान और स्किल्ड लेबर की बेरोकटोक आवाजाही होगी। जाहिर है, इससे इनके बीच की कारोबारी दीवारें ढह जाएंगी और इस बेहद प्रतिस्पद्र्धी आर्थिक जोन में मुक्त व्यापार को गति मिलेगी। इस क्षेत्र में 62 करोड़ लोग रहते हैं। इसकी दोगुनी आबादी वाले भारत के लगभग दो ट्रिलियन के बरक्स एईसी की कुल जीडीपी 2.57 ट्रिलियन डॉलर है। एशियाई व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि आसियान देशों की राय चीन से ज्यादा भारत की तरफ झुकी हुई है और एईसी बनाकर वे इन दोनों देशों की आपसी होड़ का फायदा उठाना चाहते हैं।
यूरोपीय संघ की सफलता के बाद से क्षेत्रीय ताकतों के बीच मिलकर तिजारत करने की प्रवृत्ति बढ़ी है। एक होकर चलने से यूरोपीय संघ के देशों को एक-दूसरे के संसाधनों का लाभ मिल रहा है और अमेरिका पर उनकी निर्भरता कम हुई है। अन्य देशों को भी अलग-अलग यूरोपीय मुल्कों से समझौते करने के बजाय इक_ा ईयू से डील करने में आसानी होती है। इसी रास्ते पर बढ़ते हुए आसियान के लिए एईसी का गठन इसलिए संभव हुआ क्योंकि उनमें गैर व्यापारिक मामलों में सहमति पहले से बनी हुई है। एईसी की स्थापना पर हस्ताक्षर के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वहां मौजूद थे। भारत के लिए इस ब्लॉक में काफी संभावनाएं हैं।
आसियान देश मिल-जुल कर सालाना 176 अरब डॉलर से भी ज्यादा की सेवाएं आयात करते हैं, जिसका बड़ा हिस्सा हमारी आईटी कंपनियों के हिस्से आ सकता है। आसियान शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया कि भारतीय अर्थव्यस्था तेजी से आगे बढ़ रही है और उनकी सरकार निवेश संबंधी मामलों में रास्ते आसान कर रही है। मोदी अपनी जगह सही हैं पर बाहर से फायदा तभी मिलेगा जब हमारी अंदरूनी तैयारी दुरुस्त होगी।
अभी तो दक्षिण भारत में कॉफी, काली मिर्च और पाम ऑयल से जुड़े किसान आसियान से होने वाले सस्ते आयात की मार झेल रहे हैं, जिसका कोई इलाज हम अब तक नहीं ढूंढ पाए हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था की अपनी कई कमजोरियों के चलते भारतीय कंपनियां सुस्त पड़ी हैं। आयात-निर्यात, दोनों लगातार कम हो रहे हैं। एफडीआई के नियम कुछ ढीले जरूर हुए हैं पर उन्हें अमल में लाने वाली कार्यसंस्कृति नहीं बदली। अगर हम पड़ोस के बाजार से मुनाफे की उम्मीद रखते हैं तो सबसे पहले हमें अपना घर संभालना होगा।