पर्यटकोंं के लिए खास है रणथंभोर का किला

ranthamजयपुर। वीरभूमी के इन्हीं वीर सपूतों में से एक थे राजा हम्मीर हट। जिन्होंने रणथंभोर को खास पहचान दिलाई। रणथंभोर का किला उन्हीं की गौरवगाथा का जीता जागत नमूना है। अपनी वीरता और स्वाभिमान के दम पर उन्होंने मरते दम तक किले पर मुगलों का अधिकार नहीं होने दिया। इस किले का वैभव रणथंभोर की शान है। यहां का जंगल और ऊंचे पहाड़ों के अदभुत नजारे यहां आने वाले पर्यटकों के लिए खास है। वर्तमान में वाइल्ड लाइफ सेंचुरी बने चुका रणथंभोर का जंगल पर्यटकों को सहज ही आकर्षित करता है। यहां बाद्यों की चहल-कदमी और किला देखना पर्यटकों के लिए खास आकर्षण रहता है। अगर आप भी जंगल और ऐतिहासिक स्थलों की सैर करना पसंद करते हैं तो यह जगह आपके लिए बहुत ही खास है।किले के दर्शनीय स्थलरणथंभोर किले में मुख्य रूप से त्रिनेत्र गणेश का प्रसिद्ध मंदिर है, जहां पूरे साल दूर-दूर से भक्तों का अवागमन लगा रहता है। भाद्रपद माह में यहां गणेश चतुर्थी का पांच दिवसीय विशाल मेला भरता है। इसमें लाखों की तादाद में लोग आते हैं। किले से संबंधित प्रमुख ऐतिहासिक स्थानों में नौलखा दरवाजा, हाथीपोल, गणेशपोल, सुरजपोल और त्रिपोलिया प्रमुख प्रवेश द्वार है। किले तक पहुंचने के लिए कई उतार-चढाव, संकरे व फिसलन वाले रास्ते तय करने के साथ नौलखा, हाथीपोल, गणेशपोल और त्रिपोलिया द्वार पार करना पड़ता है। इस किले में हम्मीर महल, सुपारी महल, हम्मीर कचहरी, बादल महल, जबरा-भंवरा, 32 खम्बों की छतरी, रनिहाड़ तालाब, महादेव की छतरी, गणेश मंदिर, चामुंडा मंदिर, ब्रह्मा मंदिर, शिव मंदिर, जैन मंदिर, पीर सहरुद्दीन की दरगाह, सामंतो की हवेलियां तत्कालीन स्थापत्य कला के अनूठे प्रतीक है। राणा सांगा की रानी कर्मवती द्वारा शुरू की गई अधूरी छतरी भी दर्शनीय है। दुर्ग का मुख्य आकर्षण हम्मीर महल है जो देश के सबसे प्राचीन राजप्रसादों में से एक है। यहां एक पहाड़ी पर राजा हम्मीर के घोड़े के पद चिन्हं आज भी उकरे हुए हैं। इसके बारे में किवंदती है कि राजा को लेकर घोड़े ने मात्र तीन छलांग में पहाड़ी को पार कर लिया था। इस किले का निर्माण कब हुआ कहा नहीं जा सकता लेकिन ज्यादातर इतिहासकार इस दुर्ग का निर्माण चौहान राजा रणथंबन देव द्वारा 944 में निर्मित मानते हैं। इस किले का अधिकांश निर्माण कार्य चौहान राजाओं के शासन काल में ही हुआ है। दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज चौहान के समय भी यह किला मौजूद था और चौहानों के ही नियंत्रण में था।इन शासकों का रहा अधिकार1192 में तराइन के युद्ध में मुहम्मद गौरी से हारने के बाद दिल्ली की सत्ता पर पृथ्वीराज चौहान से छिन गई। फिर उनके पुत्र गोविन्द राज ने रणथंभोर को अपनी राजधानी बनाया। गोविन्द राज के अलावा वाल्हण देव, प्रहलादन, वीरनारायण, वाग्भट्ट, नाहर देव, जैमेत्र सिंह, हम्मीरदेव, महाराणा कुम्भा, राणा सांगा, शेरशाह सुरी, अल्लाऊदीन खिलजी, राव सुरजन हाड़ा और मुगलों के अलावा आमेर के राजाओं आदि का समय-समय पर नियंत्रण रहा लेकिन यह दुर्ग सबसे ज्यादा प्रसिद्ध राजा हम्मीर देव (1282-1301) के शासन काल मे रही। हम्मीरदेव का 19 वर्षो का शासन इस दुर्ग का स्वर्णिम युग था। हम्मीर देव चौहान ने 17 युद्ध किए जिनमें 13 मे उन्हें विजय प्राप्त हुई। करीब एक शताब्दी तक ये दुर्ग चितौड़ के महाराणाओ के अधिकार मे भी रहा। खानवा युद्ध मे घायल राणा सांगा को इलाज के लिए इसी दुर्ग मे लाया गया था। मुगलों के हमलों में भी अजेय रहा दुर्गरणथंभोर दुर्ग पर मुगलों के आक्रमणों की भी लम्बी दास्तान रही है। इतिहासकारों के अनुसार मुगल आक्रमणों की शुरूआत कुतुबुद्दीन ऐवक से हुई और बादशाह अकबर तक चलती रही। मुहम्मद गौरी व चौहानो के बीच इस दुर्ग की प्रभुसत्ता के लिए 1209 मे युद्ध हुआ। इसके बाद 1226 मे इल्तुतमीश, 1236 मे रजिया सुल्तान, 1248-58 मे बलबन, 1290-1292 मे जलालुद्दीन खिल्जी, 1301 मे अलाऊद्दीन खिलजी, 1325 मे फिऱोजशाह तुगलक, 1489 मे मालवा के मुहम्म्द खिलजी, 1429 मे महाराणा कुम्भा, 1530 मे गुजरात के बहादुर शाह, 1543 मे शेरशाह सुरी ने आक्रमण किए। 1569 मे इस दुर्ग पर बादशाह अकबर ने आक्रमण कर आमेर के राजाओ के माध्यम से तत्कालीन शासक राव सुरजन हाड़ा से सन्धि कर ली।राजाओं का बना शिकार गाहकई ऐतिहासिक घटनाओं व हम्मीरदेव चौहान के हठ और शौर्य के प्रतीक इस दुर्ग का जीर्णोद्धार जयपुर के राजा पृथ्वी सिंह और सवाई जगत सिंह ने कराया। महाराजा मान सिंह ने इस दुर्ग को शिकारगाह के रुप मे परिवर्तित कराया। आजादी के बाद यह दुर्ग सरकार के अधीन हो गया जो 1964 के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के नियंत्रण में है।विश्व धरोहर बन चुका है किलारणथंभौर का ऐतिहासिक किला अब विश्व धरोहर बन चुका है। यूनेस्को ने 21 जून 2013 को इसे पहाड़ी किलों की श्रेणी में श्रेष्ठ मानते हुए विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया। समुद्रतल से करीब 481 मीटर ऊंचाई और लगभग 12 किमी के क्षेत्र में बने इस किले की स्थापत्य शैली अपने आप में नायाब है। किले के तीन तरफ गहरी खाईयां किले को अजेय बनाए रही है।