पीएम मोदी का पिटा हुआ फैसला

mahatma-gandhi-narendra-modiप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवंबर की शाम किए गए नोटबंदी के ऐलान को सौ दिन पूरे हो चुके हैं। प्रधानमंत्री का वादा था कि इस फैसले से उपजी परेशानियां 50 दिन में समाप्त हो जाएंगी। मगर सौ दिन पूरे होने के बाद भी नोटों से जुड़ी लोगों की दिक्कतें खत्म नहीं हुई हैं। नवीनतम आंकड़े (जो 20 जनवरी 2017 तक के ही हैं) बताते हैं कि लोगों के पास करंसी पिछले साल के मुकाबले 40 फीसदी कम है। एटीएम के सामने खड़ी लंबी कतारें अब नहीं दिख रहीं, लेकिन ये पूरी तरह खत्म भी नहीं हुई हैं। कई एटीएम में कैश नदारद है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी हालात चिंताजनक हैं। अखबारी रिपोर्टों के मुताबिक नमूने के तौर पर किए गए सर्वे में पूर्वी दिल्ली के अशोक नगर इलाके में 30 फीसदी एटीएम खराब पाए गए, जबकि साउथ दिल्ली के पॉश इलाके साकेत में 70 फीसदी एटीएम कैशलेस मिले।
जाहिर है, देश के दूर-दराज के इलाकों में भी स्थितियां कुछ खास अच्छी नहीं होंगी। नोटबंदी को अपनी असाधारण उपलब्धि बताने के लिए खुद सरकार ने जो पैमाने बनाए थे, उन पर भी उसके दावे बुरी तरह पिट चुके हैं। कहा गया था कि नोटबंदी ने फर्जी नोटों का कारोबार ठप कर दिया है और पाकिस्तान में इस धंधे से जुड़े लोग आत्महत्याएं कर रहे हैं। हकीकत यह है कि पहले फोटोकॉपी से बनाए गए 2000 के जाली नोटों के कई मामले पकड़े गए, फिर अभी बांग्लादेश से आ रहे दो हजार के नकली नोटों के कई जखीरे पकड़े जा चुके हैं। ये नोट इतनी सावधानी से छापे गए बताए जाते हैं कि आम लोगों के लिए इन्हें पहचानना मुश्किल है। यानी फर्जी नोटों का नेटवर्क अभी पहले से भी ज्यादा उत्साह के साथ सक्रिय हो गया है। ऐसा होना स्वाभाविक है।
पांच सौ और हजार के नोटों के बजाय अब दो हजार के नोटों ने उसके संभावित प्रॉफिट मार्जिन को कई गुना बढ़ा दिया है। कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों पर रोक के दावे भी वैसे ही खोखले साबित हुए हैं। इधर न केवल आतंकी गतिविधियां बढ़ी हैं बल्कि आतंकवादियों को मिलने वाला स्थानीय जनसमर्थन भी चिंताजनक रूप लेता जा रहा है। इसी वजह से आर्मी चीफ को यह धमकी देनी पड़ी कि आतंकियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई में बाधा डालने वालों को उन्हीं में शामिल मानकर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। बहरहाल, इन बेतुके पैमानों को एक तरफ रख दें तो नोटबंदी की कामयाबी नापने की सिर्फ एक ही वास्तविक कसौटी हो सकती है- काले धन का खात्मा। लेकिन इस बारे में न तो सरकार कोई सूचना दे रही है, न रिजर्व बैंक। नोट जमा करने की मियाद बीतने के डेढ़ महीने बाद भी रिजर्व बैंक यह नहीं बता सका है कि रद्द नोटों की शक्ल में कितना धन बैंकों में वापस लौटा। ऐसे में कोई कैसे कह सकता है कि नोटबंदी के फैसले ने आम लोगों, सामान्य कारोबारियों और पूरी अर्थव्यवस्था को मुसीबतों के भंवर में डालने के अलावा अगर कुछ अच्छा किया है तो क्या, और कितना?