पुरातत्व की लापरवाही से बेतरतीब पड़ी हैं बहुमूल्य संपदाएं

bustarजगदलपुर (आरएनएस)। बस्तर में यत्र-तत्र तथा पेड़ों के नीचे प्राचीन मूर्तियां उपेक्षित पड़ी हैं। ये मूर्तियां कलात्मक होने के साथ ही नल, नाग तथा चालुक्य शासकों के समय की कलाशैली से परिचित करवाती हैं। इन पुरातात्विक मूर्तियों को सहेजने का प्रयास पुरातात्विक विभाग द्वारा कभी नहीं किया गया। इसलिए दर्जनों पुरानी मूर्तियां गायब हो चुकी हैं। बस्तर के विभिन्न ग्रामों में उपेक्षित तथा बिखरी पड़ी मूर्तियों और पुरातात्विक स्थलों को सहेेजने पुरातत्व विभाग तथा राज्य सरकार के द्वारा कोई भी कारगर प्रयास नहीं किये जा रहे हैं और न ही पुरातात्विक महत्व के स्थलों को संवर्धित करने का कोई भी प्रोजेक्ट विभाग के पास है। बस्तर में बिखरी पड़ी कई मूर्तियों को ग्रामीणों ने ही सहेज कर रखा है। पुजारीपारा के गंगादई मंदिर परिसर में ये मूर्तियां रखी हुई हैं, किन्तु प्राचीन मंदिरों के स्तंभ व अन्य पत्थरों को पेड़ों के नीचे फेंक दिया गया है। इसके अलावा तालाबों में भी अतिक्रमण हो रहा है। 1908 में ठाकुर केदार नाथ सिंह द्वारा रचित बस्तर भूषण के अनुसार बस्तर में 47 तालाब थे। जल प्रबंधन के हिसाब से तत्कालीन राजाओं ने यह तालाब बनवाया था। वर्तमान में बस्तर ग्राम में केवल 13-14 तालाब ही बचे हैं तथा 32 तालाबों में अतिक्रमण हो चुका है। बताया जाता है कि रियासतकालीन इन तालाबों में अब बस्तर के तथाकथित सम्पन्न व प्रभावशाली लोगों का कब्जा है। वे तालाबों को खेतों में बदल चुके हैं। जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर स्थित ग्राम बस्तर यहां के राजाओं की राजधानी रही है। वहीं 10 वीं से लेकर 13 वीं शताब्दी की कई दुर्लभ प्रतिमाएं यहां के 22 पाराओं में बिखरी पड़ी है। अधिकांश मूर्तियों की चोरी हो चुकी है। अभी भी पुजारीपारा, भाटीपारा तथा भालूपारा में कई मूर्तियां उपेक्षित पड़ी है, जिनकी ग्रामीण पूजा कर रहे हैं।
बस्तर के अंतिम शासक राजा दलपत देव रहे। 1713 में रक्षपाल देव यहां के राजा थे। उनकी मृत्यु के बाद दलपत देव के मामा ने यहां शासन किया। वर्ष 1721-22 में दलपत देव राजा बने और 1772 तक शासन किया। उन्होंने भी बस्तर में कुछ देवालय और तालाबों का निर्माण करवाकर जगदलपुर को अपनी राजधानी बनाया। उन्होंने इंद्रावती नदी के तट पर बसे जगतूगुड़ा ग्राम को जगतू माहरा से खरीदने के बाद इसे अपनी राजधानी बनाया था तथा जगदलपुर का सबसे बड़ा तालाब दलपत सागर अपने नाम पर खुदवाया था। इसके अलावा गंगामुण्डा सहित पूरे जगदलपुर में अनेक मंदिरों तथा तालाबों का निर्माण करवाया।