बसंत पंचमी पर करें सरस्वती को प्रसन्न

basant

फीचर डेस्क। हिन्दू धर्म में रीती रिवाज़ के साथ बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। इस बार यह त्यौहार एक फरवरी को मनाया जा रहा है। बसंत पंचमी को माघ पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। बसन्त पंचमी पर देवी सरस्वती की पूजा होती है। देवी सरस्वती को ज्ञान और विद्या की देवी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि ये देवी मूर्ख को भी विद्वान् बना सकती हैं। धर्मग्रंथों और पुराणों में इनके रूप-रंग को शुक्लवर्णा और श्वेत वस्त्रधारिणी बताया गया है, जो वीणावादन के लिए तत्पर और श्वेत कमल पुष्प आसीन रहती हैं। बसंत पंचमी की पूजा का मुहूर्त 6.49 से 12.33 तक है। पूजा की अवधि पांच घंटे तिरालिस मिनट है। पंचमी तिथि की शुरुआत एक फरवरी को 3.41 बजे से दो फरवरी को 2.20 तक रहेगा।
देवी सरस्वती हैं तो एक लेकिन इनके अनेकों नाम हैं। इनकी पूजा न सिर्फ भारत में ही अपितु नेपाल, इण्डोनेशिया, बर्मा (म्यांमार), चीन, थाइलैण्ड, जापान और अन्य देशों में भी होती है। देवी सरस्वती को बर्मा (म्यांमार) में थुयथदी, सूरस्सती और तिपिटक मेदा , चीन में बियानचाइत्यान,जापान में बेंजाइतेन और थाईलैण्ड में सुरसवदी के नाम से जाना जाता है। जापान की लोकप्रिय देवी बेंजाइतेन को हिंदू देवी सरस्वती का जापानी संस्करण कहा जाता है। इस देवी के नाम पर जापान में कई मंदिर हैं।
हिन्दू धर्म में पूजा का महत्व सदियों से है। सरस्वती पूजा का महत्व न सिर्फ भारत में है बल्कि विदोशों में भी इनकी पूजा की जाती है। दुनिया के लगभग हर देश में ज्ञान की देवी और देवताओं परिकल्पना की गई है। जर्मनी में स्नोत्र को ज्ञान, सदाचार और आत्मनियंत्रण की देवी माना गया है। वहीं फ्रांस, स्पेन, इंगलैंड, बेल्जियम, ऑस्ट्रिया सहित कई यूरोपीय देशों में ज्ञान और शिल्प की देवी के रूप में मिनर्वा का स्मरण किया जाता है। उसे कताई-बुनाई, संगीत, चिकित्सा शास्त्र और गणित सहित रोजमर्रा के कार्यों में निपुणता की देवी माना गया है।
पूजन के पश्चात देवी को इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं सरस्वतयै समर्पयामि मंत्र से नैवैद्य अर्पित करें। मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र: इदं शर्करा घृत समायुक्तं नैवेद्यं ऊं सरस्वतयै समर्पयामि बालें। प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें। इदं आचमनयं ऊं सरस्वतयै नम:। इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं सरस्वतयै समर्पयामि। अब एक फूल लेकर सरस्वती देवी पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं सरस्वतयै नम:। इसके बाद एक फूल लेकर उसमें चंदन और अक्षत लगाकर किताब कॉपी पर रख दें।
पूजन के पश्चात् सरस्वती माता के नाम से हवन करें। इसके लिए भूमि को स्वच्छ करके एक हवन कुण्ड बनाएं। आम की अग्नि प्रज्वलित करें। हवन में सर्वप्रथम ऊं गं गणपतये नम: स्वाहा मंत्र से गणेश जी एवं ऊं नवग्रह नम: स्वाहा मंत्र से नवग्रह का हवन करें, तत्पश्चात् सरस्वती माता के मंत्र ? सरस्वतयै नम: स्वहा से 108 बार हवन करें। हवन का भभूत माथे पर लगाएं। श्रद्धापूर्वक प्रसाद ग्रहण करें इसके बाद सभी में वितरित करें।