बिग बी हुए 74 साल के: बधाई के लिए फैंस ने लगायी लाइन

Amitabh-Bachchan_Birthdayफीचर डेस्क। बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन आज 74 साल के हो गए। इस उम्र का आधा से ज्यादा वक्त हिंदी सिनेमा के नाम कर चुके मेगास्टार के लिए उपलब्धियों का एक और साल ख़त्म हो गया। दुनिया बधाइयों के गीत गा रही है , घर के बाहर फैन्स का मेला लगा है और बच्चन हैं कि जीवन की आपाधापी में भी बस आने वाले वक़्त से नजऱें मिला कर यही कह रहे हैं  हम जहां खड़े हो जाते हैं, लाईन वहीं से शुरू होती है। हिंदी सिनेमा के इस लीविंग लीजेंड ने बीते दशकों में जिन बुलंदियों को अपने कद से भी छोटा कर दिया है, वो अनगिनत है। अमिताभ बच्चन किस शखि़्सयत नाम है ये हर दौर का बच्चा, बूढ़ा और जवान पूरी तरह से जान चुका है। फिर वो चाहे बिग की पहली फिल्म सात हिंदुस्तानी से पहले की कहानी हो, संकट से गुजरे दौर की या एक साधारण से इंसान के महानायक बनने की। वैसे तो अमिताभ बच्चन को आज ये किसी से कहने की जरूरत नहीं कि मेरे साथ आओ मेरे दोस्तों एक किस्सा सुनो. , फिर भी जन्मदिन के बहाने ही सही उनके चाहने वालों को बीते दिनों की यादों के पन्ने पलटने में कोई हजऱ् नहीं है। गंगा किनारे से समंदर किनारे तक का अमिताभ बच्चन का ये सफऱ किसी आम आदमी की तरह ही है। साहित्यकार पिता डाक्टर हरिवंश राय बच्चन के घर पैदा हुए लेकिन नौकरी मेडिकल रिप्रेजेंटिटिव की भी करनी पड़ी।
बचपन से ही थियेटर का शौक़ था लेकिन रेडियो के लिए उनकी आवाज़ तक ठुकरा दी गई। साठ के दशक में जब अमीन सयानी रेडियो पर सितारों की जवानियां नाम का शो करते थे तब अमिताभ कई बार स्टूडियो गए लेकिन सयानी ने अमिताभ से मिलने का भी समय नहीं निकाला। पर बाबूजी का ये मुन्ना कहां मानने वाला था। ये तो सिर्फ उस संघर्ष का बिगुल था जिसकी गूंज आज भी सुनाई देती है। वैसे भी बच्चन का नाम बचपन में इंकलाब ही रखा गया था। बाद में जाने माने कवि सुमित्रानंदन पंत ने अमिताभ रखने दिया। नाम भी ऐसा जो आज 74 साल बाद भी उतना ही सार्थक है – कभी न मिटने वाली आभा
नौकरी बच्चन के बस की बात नहीं थी. मंजिल सिर्फ सिनेमा की एक सतरंगी दुनिया थी, जिसका पहला कदम 16 फरवरी 1969 को मुंबई में पड़ा। फिल्मकार ख़्वाजा अहमद अब्बास सात हिंदुस्तानी की कास्टिंग कर रहे थे और उनके एक हिंदुस्तानी की कमी छह फुट से ज़्यादा लंबे, दुबले-पलते अमिताभ बच्चन ने पूरी कर दी। सात हिन्दुस्तानी में काम के लिए पाँच हजार रुपए मिले थे और जलाल आगा की कंपनी भी आवाज देने के बदले 50 रूपये हर दिन के देती थी। स्ट्रगलिंग के दिनों का गुज़ारा हो जाता था। कभी छत नसीब होती कभी मुंबई की गिरगांव चौपाटी का एक बेंच। दरअसल ये माँ तेजी बच्चन का ही एक सपना था जो अमिताभ को कला की दुनिया का चमकता सितारा बना देखना चाहती थीं।और जब पहली बार दीवार में अमिताभ की मौत को पर्दे पर देखा था फूट-फूट कर रो भी पड़ी थी। खुद रंगमंच की कलाकार थीं पर शायद बेटे के अभिनय को भी सच मान बैठीं। वो आमतौर पर बच्चन की शूटिंग का हिस्सा कभी नहीं होती थीं, हालांकि यश चोपड़ा की रिक्वेस्ट के बाद कभी कभी की शूटिंग देखने कश्मीर जरूर गईं। कला की दुनिया में सफतला का माँ का सपना बच्चन ने साकार कर दिया। उन ऊंचाइयों को भी छू लिया, जिसके सपने भी बहुत कम लोगों को ही आते हैं।