बिहार के बाद अन्य राज्यों पर लालू की नजर

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पटना। आरजेडी चीफ लालू यादव अब अपनी पार्टी का विस्तार दूसरे प्रदेशों में करने की जुगत में हैं। उनकी पूरी कवायद राजद को राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता दिलाने की है। ऐसा करके वह अपनी पार्टी की पुरानी प्रतिष्ठा वापस लाना चाहते हैं। राजद को पांच साल पहले तक राष्ट्रीय दल की मान्यता थी, लेकिन बाद में लोकसभा चुनाव और कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन के कारण उसका यह दर्जा छिन गया था।
राजद प्रमुख को इसका कसक अभी तक है। यही कारण है कि बिहार में पार्टी की कमान वह अपने सुपुत्र एवं उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के हाथों में सौंपकर खुद को बाहर की राजनीति में लगाना चाहते हैं। बिहार में सरकार बनाने के बाद उन्होंने कहा भी था कि नीतीश कुमार राजपाट चलाएंगे और वह लालटेन लेकर देशभर में भाजपा के खिलाफ अलख जगाएंगे।
जाहिर है, राजद के सांगठनिक चुनाव के बाद लालू के अभियान की शुरुआत बनारस से होगी। इसकी वजह है कि 2017 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं। लालू अपनी जड़ उत्तर प्रदेश में जमाने की कोशिश में हैं, किंतु वहां सबसे बड़ी चुनौती उन्हें समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव से मिलने वाली है। यूपी में सपा की सरकार है तथा मुलायम से लालू की रिश्तेदारी भी है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि दोनों नेताओं के पैंतरे क्या होंगे। वैसे महागठबंधन से नाता तोड़कर और बिहार में प्रत्याशी उतारकर मुलायम ने लालू के यूपी पहुंचने का रास्ता आसान कर दिया है।
लालू की पहली कोशिश होगी कि मुलायम की पार्टी के साथ तालमेल कर लिया जाए। अगर बात नहीं बनी तो अपने दम पर प्रत्याशी उतारने की पूरी तैयारी है। प्रदेश अध्यक्ष अशोक सिंह के नेतृत्व में बिहार से सटे जिले बलिया, बनारस, गाजीपुर, गोरखपुर और आजमगढ़ में पहले से ही सक्रिय संगठन को और धार देने की जरूरत है। विस्तार के एजेंडे में झारखंड और मणिपुर सबसे ऊपर हैं। राज्य बंटवारे के बाद झारखंड में राजद का अच्छा जनाधार था। एक साल पहले तक वहां राजद के पांच विधायक थे। यहां तक कि झामुमो की सरकार में राजद की भागीदारी भी थी। हालांकि 2014 के विधानसभा चुनाव में राजद का झारखंड में सुपड़ा साफ हो गया। लालू इसे पचा नहीं पा रहे हैं और वहां का फीडबैक खुद ले रहे हैं।
राजद को राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता मणिपुर में बेहतर प्रदर्शन के बाद ही मिली थी। 2008 के विधानसभा चुनाव में राजद की मणिपुर में पांच सीटों पर जीत हुई थी। हालांकि बाद में सारे विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया। नगालैंड और केरला में भी संगठन का अच्छा विस्तार है। लालू की नजर महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे राज्यों पर भी है, जहां बिहारी वोटरों की संख्या अच्छी है। दिल्ली में 2009 के विधानसभा चुनाव में एक सीट जीतकर राजद ने खाता भी खोला था।