भ्रस्ट राजनेता और असहाय नागरिक

s.k.dubey

एस.के.दुबे। हमारा देश पृथ्वी के ऊपर भौगोलिक परिस्थितियों एव जलवायु संसाधन के प्राकृतिक बरदान से एक स्मृध देश है। परंतु भ्रस्ट राजनेताओ के कारण यहाँ के मतदाता निरंतर असहाय की परिस्थिति मे रहते हुए अपनी दिनचर्या की आवस्यकताओं को पूरा करने मे असमर्थ है। धनार्जन हर ब्यक्ति की आवश्यकता एव उद्देस्य है। परंतु योग्यता के अनुशार कार्यो का न होना, उचित साधन की कमी, उचित वितरण प्रणाली का न होना, न्यायोचित कार्याओ के न होने आदि से धन की कमी निरंतर बनी रहती है।
कोई भी माननीय बनने के पहले उसकी एक निश्चित धनराशि होती है। परंतु बनने के बाद 1 से 5 वर्ष या 5से 10 वर्ष के अंतराल मे उसकी और उसके परिवार जनो की धनराशियों मे बृद्धि इस प्रकार होती है, जैसे तूफानी हवाओ की गति। हमारे देश मे ऐसा कोई कानून नहीं बनाया गया कि हर एक वर्ष बाद उनकी धनराशियों का आकलन निस्पक्षीय तुलनात्मक तरीके से किया जाय। यदि आकलन किया जाय और अनियमता मिलने पर उन्हे पदच्युत करदिया जाय न कि अदालत भेजा जाय तो भ्रस्ट्टाचार मे कमी आजाय।
राजनेता जन सेवक या जन राजा: राजनेताओं की योग्यता मे उनकी धन शक्ति का आकलन आवश्यक है, यदि उनकी ब्यक्तिगत धन शक्ति 5 करोड़ से ज़्यादा है तो उन्हे बढ़त धन को अपने क्षेत्र के मतदाताओं मे वितरित करने के लिए या राज खजाने मे जमा करने के लीए कानून बनाया जाय। यदि वे ऐसा नहीं करते है तो वे जन राजा है। अंतत: उन्हे अयोग्य घोषित किया जाय। ऐसा करने से भ्रस्ट्टाचार को कम किया जसकाता है।