यहां लाश के चारों ओर थिरकती हैं बार बालाएं

bar danser in kashi

फीचर डेस्क। जब भी श्मशान का जिक्र आता है मन में उदासी और भय का साया नजर आने लगता है। कोई भी मनुष्य अपनी इच्छा से श्मशान जाना नहीं चाहता। क्योंकि श्मशान तो सिर्फ मुर्दों के लिए ही होता है, वहां मुर्दों को जलाने का काम होता है। वहीं जब यह पता चले कि श्मशान में डांस होगा और लाश के चारों ओर लड़कियां थिरकेंगी तो चैंकना लाजमी हो जाता है। लेकिन यह सच है। यह श्मशान दुनिया का इकलौता श्मशान है जहां चिता की आग कभी ठंडी नहीं होती। जहां लाशों का आना और चिता का जलना कभी नहीं थमता। जिक्र हो रहा है धर्म नगरी काशी में मणिकर्णिका घाट का जिसके बारे में जो इसलिए मशहूर है कि यहां दाह संस्कार होने पर सीधे मोक्ष मिलता है। लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है जहां साल में एक बार एक साथ चिता और महफिल दोनों का ही गवाह बनता है यह श्मशान घाट। चैत्र नवरात्रि अष्टमी को इस घाट पर मस्ती में सराबोर एक चैंका देने वाली महफिल सजती है। एक ऐसी महफिल जो जितना डराती है उससे कहीं ज्यादा हैरान करती है। साल में एक बार यह अनोखी रात आती है। चैत्र नवरात्र के आठवें दिन की रात जब श्मशान पर एक साथ चिताएं भी जलती हैं और घुंघरुओं और तेज संगीत के बीच कदम भी थिरकते हैं। इनके लिए जीते जी मोक्ष पाने की मोहलत बस यही एक रात देता है। इस दिन श्मशान के बगल में मौजूद शिव मंदिर में शहर की तमाम नगरवधुएं इकट्ठा होती हैं और फिर भगवान के सामने जी भरके नाचती हैं। यहां आने वाली तमाम नगरवधुएं अपने आपको बेहद खुशनसीब मानती हैं। चिताओं के करीब नाच रहीं लड़कियां शहर की बदनाम गलियों की नगर वधु होती हैं। कल की नगरवधु यानी आज की तवायफ। पर इन्हें ना तो यहां जबरन लाया जाता है ना ही इन्हें इन्हे पैसों के दम पर बुलाया जाता है। काशी के जिस मणिकर्णिका घाट पर मौत के बाद मोक्ष की तलाश में मुर्दों को लाया जाता है वहीं पर ये तमाम नगरवधुएं जीते जी मोक्ष हासिल करने आती हैं। वो मोक्ष जो इन्हें अगले जन्म में नगरवधू ना बनने का यकीन दिलाता है। इन्हें यकीन है कि अगर इस एक रात ये जी भरके यूं ही नाचेंगी तो फिर अगले जन्म में इन्हें नगरवधू का कलंक नहीं झेलना पड़ेगा।
जानकारों की माने तो इसके पीछे एक बेहद पुरानी परंपरा है। श्मशान के सन्नाटे के बीच नगरवधुओं के डांस की परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है। मान्यताओं के मुताबिक आज से सैकड़ों साल पहले राजा मान सिंह द्वारा बनाए गए बाबा मशान नाथ के दरबार में कार्यक्रम पेश करने के लिए उस समय के जाने-माने नर्तकियों और कलाकारों को बुलाया गया था, लेकिन चूंकि ये मंदिर श्मशान घाट के बीचों बीच मौजूद था, लिहाजा तब के चोटी के तमाम कलाकारों ने यहां आकर अपने कला का जौहर दिखाने से इनकार कर दिया था। लेकिन चूंकि राजा ने डांस के इस कार्यक्रम का ऐलान पूरे शहर में करवा दिया था, लिहाजा वो अपनी बात से पीछे नहीं हट सकते थे। लेकिन बात यहीं रुकी पड़ी थी कि श्मशान के बीच डांस करने आखिर आए तो आए कौन। इसी उधेड़बुन में वक्त तेजी से गुजर रहा था। लेकिन किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। जब किसी को कोई उपाय नहीं सूझा तो फैसला ये लिया गया कि शहर की बदनाम गलियों में रहने वाली नगरवधुओं को इस मंदिर में डांस करने के लिए बुलाया जाए। उपाय काम कर गया और नगरवधुओं ने यहां आकर इस महाश्मशान के बीच डांस करने का न्योता स्वीकार कर लिया। ये परंपरा बस तभी से चली आ रही है।
स्थानीय लोगों के अनुसार गुजरते वक्त के साथ जब नगरवधुओं ने अपना चोला बदला तो एक बार फिर से इस परंपरा के रास्ते में रोड़े आ गए और आज की तारीख में इस परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए बाकायदा मुंबई की बारगर्ल तक को बुलाया जाता है। यही नहीं परंपरा किसी भी कीमत पर छूटने ना पाए, इसका भी खास ख्याल रखा जाता है और इसके लिए साल के इस बेहद खास दिन तमाम इंतजाम किए जाते हैं। इस आयोजन को ज्यादा से ज्यादा सफल बनाने के लिए पुलिस-प्रशासन के नुमाइंदे बाकायदा इस महफिल का हिस्सा बनते हैं।