यूपी: कद्दावरों को गढ़ बचाने की चुनौती

चुनाव डेस्क। लोकसभा की चुनावी बिसात पर पार्टियों ने मोहरे सजा दिए हैं। उम्मीदवार पूरी मुस्तैदी से मैदान में डट कर चुनावी बाजी मारने को बेताब हैं। कई उम्मीदवार ऐसे हैं जिनके लिए यह चुनाव अहम है। किसी के लिए विरासत बचाने की चुनौती है तो किसी पर रिकार्ड बनाने की…। यह तो समय बताएगा कि कौन किस कसौटी पर खरा उतरता है, लेकिन चुनावी बयार में नेता अपना पूरा दम दिखाने को बेताब हैं।

मैनपुरी: मुलायम के रिकॉर्ड पर लगी नजर
सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के लिए अगर कहा जाए तो जहां गए वहां के मतदाताओं ने उन्हें अपनाने से परहेज नहीं किया। मुलायम फिर मैनपुरी से मैदान में हैं। मुलायम ने इस सीट पर पहली बार 1996 में जीत दर्ज की। इसके बाद 2004, 2009 और 2014 में यहां से व आजमगढ़ से एक साथ जीते। बाद में उन्होंने मैनपुरी को छोड़ दिया। उपचुनाव में उनके भतीजे अक्षय यादव जीते। मुलायम फिर मैनपुरी से गठबंधन के उम्मीदवार हैं। इसलिए उनके रिकार्ड पर सभी की नजर है।

लखनऊ: भाजपा के गढ़ पर सभी की निगाहें
अगर कहा जाए कि लखनऊ भाजपा का गढ़ है तो इसमें शक नहीं होना चाहिए। अटल बिहारी वाजपेयी ने इस सीट पर 1991 में पहली बार जीत दर्ज की। इसके बाद यह सीट भाजपा की हो गई। अटल के बाद लालजी टंडन और फिर राजनाथ सिंह…। वह दूसरी बार लखनऊ से मैदान में हैं। गठबंधन ने उनके खिलाफ शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा को मैदान में उतारा है। गठबंधन द्वारा फल्मिी तडक़ा लगाने के बाद लड़ाई रोचक होने से सभी की नजर इस सीट पर स्वाभाविक है।

कन्नौज: ससुर के बाद अब बहू की बारी
कन्नौज संसदीय सीट सपा की परंपरागत सीट मानी जाती रही है। समाजवादी पार्टी के प्रदीप कुमार यादव ने इस सीट पर सबसे पहले 1998 में जीत दर्ज की थी। इसके बाद 1999 के उपचुनाव में मुलायम सिंह यादव मैदान में उतरे तो उनके सिर जीत का सेहरा बंधा। मुलायम के बाद तीन बार उनके पुत्र अखिलेश यादव और दो बार बहू डिंपल यादव जीत दर्ज कर चुकी हैं। इस बार वह तीसरी बार मैदान में है। सपा के लिए यह प्रतष्ठिा वाली सीट मानी जा रही है।

बरेली: बड़ी लकीर खींचने की तैयारी
बरेली लोकसभा सीट से सबसे अधिक जीत का रिकार्ड संतोष गंगवार के नाम अब तक रहा है। वर्ष 1989, 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 तक उन्होंने सात बार लगातार जीत दर्ज की। वर्ष 2009 में उन्हें कांग्रेस के प्रवीण सिंह ऐरन के हाथों हार का सामना करना पड़ा, लेकिन इसके ठीक पांच साल बाद 2014 में फिर जीत का परचम लहरा दिया। भाजपा ने एक बार फिर उन पर वश्विास जताते हुए मैदान में उतारा है। अब उनके सामने जीत की बड़ी लकीर खींचने की चुनौती है।

मेरठ: इस बार हैट्रिक का मौका
मेरठ लोकसभा सीट पश्चिमी यूपी की प्रमुख सीटों में एक मानी जाती रही है। अगर चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो यह सीट भाजपा के प्रभाव वाली रही है। दो बार 1999 और 2004 के चुनावों को छोड़ दिया जाए तो 1991 से भाजपा का इस पर कब्जा रहा है। बात अगर 2009 और 2014 की करें तो लगातार दो बार से यहां से राजेंद्र अग्रवाल जीतते आए हैं। भाजपा इस बार फिर उन्हें उम्मीदवार बनाया है। अगर वह चुनाव जीतते हैं तो यह उनकी हैट्रिक होगी।

रामपुर: रोचक मुकाबला
जयप्रदा समाजवादी पार्टी का टिकट लेकर 2004 में रामपुर पहुंचीं और पहली बार जीत दर्ज की। रामपुर मो. आजम खां की राजनीतिक धरती है। वह वहीं से राजनीति करते आ रहे हैं। उनका और जयाप्रदा के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। उनके न चाहने पर भी मुलायम ने 2009 में जयाप्रदा को वहां से टिकट दिया था। जयाप्रदा इस बार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं। उनका मुकाबला उनके धुर विरोधी मो. आजम खां से है। वह सपा से उम्मीदवार हैं। ऐसे में रामपुर का चुनावी मुकाबला काफी रोचक होना तय माना जा रहा है।