यूपी, बिहार से ज्यादा जातिवाद है मोदी के गुजरात में

डॉ.आर.एस.विश्वकर्मा, सुरेन्द्र नगर। मौलिक क्रान्ति मीडिया गु्रप व पोल स्टार्ट कम्युनिकेशन ग्रुप ने जाम नगर, पोरबंदर, बोताड़, भावनगर, अमरेली, नर्मदा, नवसारी, वलसाड़, डांग, जूनागढ़, गिरसोमनाथ, भरूच, सूरत में मतदाताओं से सम्पर्क करते हुए जब सुरेन्द्र नगर पहुॅचा तो वहां का जातीय दबदबा देखकर आश्चर्य में पड़ गया। वहां आज भी ठाकुरों की दलितों पर सामन्तशाही चल रही है, जैसा कि दो दशक पूर्व उत्तर प्रदेश, बिहार में ठाकुरों, भूमिहारों की सामन्तशाही चल रही थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गृह प्रदेश गुजरात में उत्तर प्रदेश, बिहार से भी कही ज्यादा जातिवाद है। सुरेन्द्र नगर के कांपाडा, भोजपुरा, बानसीना, देपरा जैसे बड़े गांवों में जनसम्पर्क कर मतदाताओं का मूड भॉपने का प्रयास किया गया तो वहां जातिवाद की नई तस्वीर उभरकर सामने आयी। दलित परिवार के लोगों ने यह बताया कि क्षत्रिय लोगों का अभी आदेश नहीं आया है। उनका जो आदेश आता है, उसे मानना ही पड़ता है। कोई दलित क्षत्रियों के आदेश के बिना वोट नहीं डालता। वहीं कोली मछुआरा समाज के मतदाताओं ने साफ तौर पर कहा कि हम इस बार कांग्रेस को ही वोट देंगे। कांग्रेस ने सुरेन्द्र नगर की पांच विधान सभा सीटों में से तीन कोली को दिया है। क्या दलित समाज की भांति कोली, मछुआरा, निषाद भी क्षत्रियों के फरमान पर वोट डालते हैं, इस पर शैलेश भाई खारवा, चन्दू भाई कोली, के साथ सावित्री बेन ने एक स्वर से कहा-जो कोली-खरवा से खार खाया, उसकी खैर नहीं। मच्छी की तरह काट डालेंगे। हम सागर पुत्र हैं, जो निषाद राज व एकलव्य के वंशज हैं, क्षत्रियों के गुलाम नहीं। कोलीवाड़ों के कोली मछुआरों में भाजपा के प्रति काफी नाराजगी दिखी। उनका कहना था कि भाजपा सरकार में तो सागर किनारा छीन कर मछुआरों को बेदखल कर दिया। गुजरात की 182 में से 89 विधान सभा क्षेत्रों में 9 दिसम्बर को मतदान होना है, जो कच्छ, सुरेन्द्र नगर, सूरत, वलसाड़, भरूच, तापी, डांग, नवसारी, पोरबंदर, जूनागढ़, गिरसोमनाथ, देवभूमि द्वारिका, जामनगर, अमरेली, भावनगर, बोताड़, राजकोट, मोरवी, नर्मदा जिले के हैं। दांग, तापी, नर्मदा, वलसाड़ की एक दर्जन से अधिक सीटों पर एकलव्य वंशीय बताने वाले भील आदिवासियों की संख्या अधिक है। कच्छ-सौराष्ट्र व दक्षिणी गुजरात के इन जिलों में सबसे अधिक संख्या कोली, मछुआरों व लेउआ पटेल की है। कच्छ-सौराष्ट्र की 54 विधान सभा क्षेत्रों में से 28 पर पाटीदार ;लेउआ पटेलद्ध, 6 पर कड़वा पटेल, पंाच-पांच पर क्षत्रिय, मुसलमान, वैश्य, 32 पर कोली मछुआरा व लगभग एक दर्जन सोटों पर मेर व ठाकोर ओ0बी0सी0 का वर्चस्व है। दक्षिणी गुजरात की 35 सीटों में से 13 पर लेउआ पटेल, 13-14 पर आदिवासी, 17-18 पर कोली, 1-1 पर दलित व मुसलमान का वर्चस्व है। 13 सीटों पर तो कोलियों का काफी दबदबा है।
गुजरात विधान सभा चुनाव 2017 में जातिवादी राजनीति का जोर है। न हिन्दुत्व न विकास, हर जगह जातिवाद का ही असर दिख रहा है। अल्पेश-हार्दिक-जिग्नेश की तिकड़ी ने कांग्रेस व भाजपा को परेशानी में तो डाला ही है, सामाजिक न्याय के प्रति पिछड़ों-आदिवासियों में आई जागरूकता भी परेशान करने वाली है। कोली समाज भाजपा से काफी नाराज दिखा। उसका आरोप है कि 2001 से आज तक भाजपा ने कोलियों को कैबिनेट मंत्री तक नहीं बनाया, जब कि कोली समाज ही भाजपा का खेवनहार रहा है। भाजपा ने रविवार को अपने सभी 182 उम्मीदवारों का नाम जारी कर दिया, पर कांग्रेस एक दर्जन से अधिक उम्मीदवार का नाम ही नहीं तय कर पायी। अल्पेश व हार्दिक की काट के लिए भाजपा ने सामाजिक सन्तुलन बनाने का पूरा ध्यान रखा। ठाकोर व पाटीदार टिकट पाने में आगे रहे।
पिछले चुनाव में जहां भाजपा से 45 पाटीदार उम्मीदवार थे, वहीं इस बार 52 पाटीदार उम्मीदवारी पायें हैं। 39 प्रतिशत से अधिक आबादी वाले ओ0बी0सी0 जिसमें 52 जातियां व इनकी 146 उप जातियां शामिल हैं, को भाजपा से 61 टिकट मिला है। 12 दलित, 28 आदिवासी, 13 क्षत्रिय व 9 ब्राह्मण भाजपा उम्मीदवार बनने में सफल हुये हैं। वैश्य व अन्य सर्वण जातियों को इस बार मात्र 7 टिकट ही दिया गया है। भाजपा के टिकट वितरण पर प्रतिक्रिया स्वरूप पिछड़ा विभाग सामाजिक न्याय चिन्तक लौटन राम निषाद का कहना था कि उत्तर प्रदेश में लोक सभा चुनाव व विधान सभा चुनाव के बाद अमितशाह गुजरात चुनाव में निषाद फार्मूला अपनाने को मजबूर हुये हैं। भाजपा ने लोक सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से 25 सीटें पिछड़ों को दिया था। वहीं विधान सभा की 403 सीटों में से अपने हिस्से की 384 सीटों में से 139 पिछड़ों व अति पिछड़ों को उम्मीदवार बनाया था। गुजरात में लगभग 18 प्रतिशत आदिवासी, 30 उपजातियों में विभक्त दलित 7 प्रतिशत ही है। सबसे अधिक संख्या लगभग 25 प्रतिशत कोली मछुआरा समाज की है। ठाकोर की आबादी महज 3 प्रतिशत है। सोमेश्वर मिस्त्री व दिलीप कोली से जब अल्पेश के नेतृत्व की स्वीकार्यता के बारे में पूछा गया तो स्पष्ट तोर पर कहा कि ठाकोर के अलावा अल्पेश को अन्य पिछड़ा अपने नेता स्वीकार नहीं कर सकता। भले ही ठाकोर जाति ओ0बी0सी0 में है, पर यह ठाकुरों/क्षत्रियों के ही चरित्र की जाति है। आदिवासी समाज के चीमन भाई बसावा ने कहा कि कोलियों के बाद सबसे अधिक लगभग 18 प्रतिशत आदिवासी हैं। एक बार आदिवासी को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुॅचने का अवसर मिला। कोली मछुआरा प्रदीप भाई माछी ने कहा कि कांग्रेस व भाजपा दोनों ने कोली समाज को राजनीतिक रूप से पीछे करने का ही काम किया।