यूपी में भी महागठबंधन की तैयारी

up map 2योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ। बिहार में मिली जबरदस्त कामयाबी के बाद अब उत्तर प्रदेश में भी महागठबंधन का प्रयोग दोहराने की तैयारी शुरू होती दिख रही है। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता और प्रदेश सरकार के कद्दावर कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने इसके संकेत दे दिए है। जिस तरह महागठबंधन की एकजुटता से बिहार में एनडीए को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। उसके बाद से अब उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी समेत गैर भाजपा दलों को लगता है कि सबके एकजुट होने के बाद ही उत्तर प्रदेश में भाजपा के कमल को खिलने से रोका जा सकता है। प्रदेश में साढ़े तीन साल से ज्यादा का कार्यकाल पूरा कर चुकी समाजवादी पार्टी को लगता है कि आगामी चुनाव में संभवत: इस बार उसे काफी संघर्ष के दौर से गुजरना पड़ सकता है इसलिए वह गैरभाजपा दलों को इकट्ठा करके उन्हे एक झंडे के नीचे लाकर भाजपा के साथ बसपा के खिलाफ सशक्त विकल्प पेशकर सकती है। इस एकजुटता में सपा के अलावा जेडीयू,राजद,कांग्रेस के अलावा कई छोटे दल भी सा प्रदायिकता रोकने के नाम पर इस महागठबंधन में शामिल हो सकते है। जबकि बहुजन समाज पार्टी बिना किसी तालमेल के अकेले दम पर चुनाव लडऩे की तैयारी कर रही है। बिहार के चुनाव नतीजों से यूपी में भाजपा,सपा सरीखें दलों को खासी निराशा हांथ लगी है तो बसपा और कांग्रेस जैसे दलों को मानों कुछ संजीवनी मिली है। यूपी में भाजपा संगठन में कुछेक दिनों मे नेतृत्व परिवर्तन होने जा रहा है जबकि कांग्रेस में भी प्रदेश प्रभारी और अध्यक्ष सहित तेजतर्रार को नेतृत्व सौंपने की तैयारी है। यूपी कांग्रेस में प्रदेश प्रभारी मधूसूदन मिस्त्री और प्रदेशाध्यक्ष डा.निर्मल खत्री की अगुवाई में लोकसभा और उसके बाद विधानसभा के जितने भी उपचुनाव हुए उसमें कांग्रेस का प्रदर्शन काफी शर्मनाक रहा। इससे सबक लेते हुए क ांग्रेस ने अब अकेले दमखम दिखाने के बजाए फिलवक्त ऐसे दलों को साथ लेकर या उनके साथ चलने का निर्णय लिया जिससे एनडीए को सत्ता में आने से रोका जा सके। हालांकि विधानसभा चुनाव में अभी डेढ़ साल का वक्त बाकी है लेकिन गठबंधन या महागठबंधन हो लेकर सियासी दलों में गुणाभाग अभी से शुरू हो गया है। इस बार चुनाव में दलों में यदि गठबंधन होता है तो यूपी में यह कोई नया प्रयोग नहीं है। यहां चुनाव के पहले और बाद दोनों में गठबंधन होते रहे है। यूपी में सपा का 1993 में सपा-बसपा का चुनावी गठबंधन हो चुका है। दोनों ने मिलकर सरकार बनाई लेकिन यह सरकार दो साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई। उसके बाद बसपा ने भाजपा के साथ मिलकर तीन बार सरकार बनाई जबकि
1996 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने कांग्रेस से मिलकर चुनाव लड़ा। जबकि भाजपा रालोद ने मिलकर चुनाव लड़ा बाद में दोनों की राहे जुदा हो गई। बदले राजनीतिक परिवेश और बिहार के चुनाव नतीजों को देखते हुए उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से गठबंधन की राजनीति को लेकर नफा-नुकसान का गुणाभाग शुरू हो गया है। इन दलों में अकेली बसपा ही है जो बिना किसी तालमेल के अकेले दम पर चुनाव लडऩे की हामी भर रही है। जबकि भाजपा को लगता है कि दिल्ली,बिहार के बाद अब उसे यहां किसी सशक्त साथी की जरूरत है। पंचायत चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन बसपा से बेहतर नहीं रहा है। माना जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनावों में इस बार लड़ाई त्रिकोणात्मक होगी। यदि पंचायत चुनावों को आधार मानकर आकलन और राजनीतिक पंडितों के पूर्वानुमान पर यकीन किया जाए तो कोई हैरानी नहीं है कि बसपा बड़ी ताकत के रूप में उभरेगी। रही बात कांग्रेस की तो उसके सामने सबसे पहली चुनौती मु य लड़ाई मे ंशामिल होने की है। पिछले ढाई दशकों से हाशिए पर पड़ी कांग्रेस ने इतने वर्षो में गठबंधन की राजनीति से लेकर समर्थन देने की राजनीति की लेकिन वह आज भी चौथी पायदान पर ही है। लोकसभा के 2014 के चुनाव में मात्र दो सीटे पाने के बाद उसे लगता है जबतक वह किसी बड़े एलायंस में शामिल नहीं होगी तब तक उद्वार नहीं होने वाला है। बिहार में ठीकठाक प्रदर्शन के बाद उसे भी यहां किसी से गठबंधन करने में कोई गुरेज होगा इसकी संभावना काफी कम ही है।