यूपी में राजनीतिक असहिष्णुता की शिकार हैं, 17 अतिपिछड़ी जातियां: लौटन राम

lautam ram

लखनऊ। राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव एवं समाजवादी पार्टी के नेता चौधरी लौटन राम निषाद ने कहा है कि उप्र में 17 अतिपिछड़ी जातियां राजनीतिक असहिष्णुता की शिकार हो रही हैं। उन्होंने कहा कि इन जातियों को 2004 से उन्हें अनुसूचित जाति में शामिल करने की बातें हो रहीं हैं परन्तु 11 वर्षों बाद भी इन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं मिल पाया है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इण्डिया की कुर्सी पर बैठे नव सवर्ण दलित वर्ग के सामन्ती मंत्री व आरजीआई की नकारात्मक सोच के कारण 17 अतिपिछड़ी जातियों के आरक्षण मामले को लटकाया जा रहा है। ऐसे में इन जातियों का अनुसूचित जाति में शामिल होना मुश्किल है। निषाद ने कहा कि 17 अतिपिछड़ी जातियों को केन्द्र द्वारा अनुसूचित जाति में शामिल करना मुश्किल दिख रहा है। उन्होंने प्रदेश सरकार से मांग की है कि मांझी, मल्लाह, केवट को मझवार जाति, गोडिय़ा, धुरिया, कहार, रायकवार, धीमर को गोड़ जाति, भर, राजभर को पासी, तड़माली की पर्यायवाची के रूप में परिभाषित करते हुए केन्द्र सरकार को विधि सम्मत प्रस्ताव केन्द्र को भेजने की मांग की है। निषाद ने कहा कि 17 प्रतिशत जनसंख्या वाला अतिपिछड़ा वर्ग सामाजिक अन्याय व राजनीतिक उपेक्षा का शिकार हो रहा है। उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रीत्व काल में निषाद, मल्लाह, केवट, बिन्द, धीवर आदि मछुआरा जातियों को मत्स्य पालन, बालू मौरंग खनन का पट्टा देने का शासनादेश जारी किया गया था और मछुआरा जातियों को इसका आर्थिक लाभ भी मिला था। परन्तु वर्तमान में मत्स्य पालन पट्टा की लगान प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष 10 हजार से अधिक करने व श्रेणी.3 के तालाबों का पट्टा निरस्त करने से मछुआरा जातियां बेकारी व भुखमरी की स्थिति में पहुॅच गयी है। उन्होंने प्रदेश सरकार से 1994.95 के मत्स्य पालन पट्टा व बालू खनन पट्टा के शासनादेश को लागू करने व श्रेणी.3 के तालाबों की बहाली करने की मांग किया है।