योगी सरकार ने दो लोकसभा सीटें गंवायी: नाकामी से हारी भाजपा

लखनऊ । उत्तर प्रदेश की योगी सरकार 19 मार्च को एक साल पूरा करेगी। लेकिन एक साल पूरा करने के पहले ही दो लोकसभा सीटें गंवा दी है। गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा को बसपा के समर्थन से मिली जीत और भाजपा की हार से अति पिछड़े और अति दलित मतदाताओं की अहमियत पार्टी को फिर से समझ में आ गई है। राज्य में लगभग 54 प्रतिशत पिछड़़ों में 34 प्रतिशत अति पिछड़ा और 21 प्रतिशत दलितों में 10 प्रतिशत अति दलित है। गोरखपुर में निषाद व फूलपुर में कुर्मी-पटेल समुदाय के वोट न मिलने से हुई हार से पार्टी भौचक्क है। जबकि कुर्मी-पटेल समुदाय की पहली पसंद भाजपा बन गई थी। दोनों लोकसभा सीटों की विधानसभा सीटों पर 2017 में भाजपा को कामयाबी मिली थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का सहयोगी दलों के साथ 42 प्रतिशत वोट था तो बसपा व सपा का 22-22 प्रतिशत। उपचुनाव में बसपा ने सपा को समर्थन देकर जीत दिला दी है। सपा महासचिव रामगोपाल यादव ने सपा की जीत में बीएसपी के गठबंधन और बसपा कार्याकर्जाओं की मेहनत का बड़ा योगदान बताया है। राजनीतिक विश्लेषक ज्ञानेंद्र शर्मा का कहना है कि वोट ट्रांसफर करने की क्षमता सिर्फ बसपा में है। जिसका लाभ सपा को मिला है। लेकिन बड़ा सवाल है कि सपा अपने वोट बसपा को ट्रांसफर कर सकेगी। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-सपा के गठबंधन में वोट ट्रांसफर न होने से दोनों की कारारी हार हुई थी।उप्र के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने कहा कि ‘हमें उम्मीद नहीं थी कि बसपा के वोट सपा प्रत्याशी को इस तरह ट्रांसफर होंगे। 2019 के लिए सपा, बसपा और कांग्रेस के गठबंधन को ध्यान में रखते हुए रणनीति तैयार की जाएगी।’  शर्मा के मुताबिक उप्र में भाजपा के खिलाफ 18 प्रतिशत अल्पसंख्यक, 11 प्रतिशत जाटव और 10 प्रतिशत यादव को माना जाए तो यह आंकड़ा 39 प्रतिशत तक पहुंचता है। यादव सपा का और जाटव बसपा का आधार वोट है। 2014 व 2017 में भाजपा को लगभग 42 प्रतिशत मत मिले थे। भाजपा ने गैर यादव पिछड़ों और जाटव को छोड़ कर बाकी दलितों पर दांव लगाया था। उसे कामयाबी मिली थी। लेकिन यदि सपा-बसपा के साथ कांग्रेस भी आ जाती है, तो यह प्रतिशत 45 तक पहुंच जाता है। लेकिन बसपा को छोड़ कर किसी दूसरे दल के वोट के ट्रांसफर को लेकर हमेशा संशय रहेगा। यही स्थिति भाजपा के फायदे में हो सकती है।  भाजपा को यह सबक मिल गया है कि उसे कामयाबी के लिए उसी फार्मूले को अपनाना होगा, जिसका प्रयोग 2014 व 2017 के चुनाव में किया था। सत्ता में आने के बाद पार्टी सवर्णो को महत्व देती नजर आने लगी थी। 2014 लोकसभा में बीजेपी ने 42.63 फीसदी वोट के साथ 71 सीट जीती थी, सहयोगी अपना दल 2.12 फीसदी वोट के साथ 2 सीट जीती थी। सपा को 22.35 फीसदी वोट के साथ 5 सीटें मिली थीं। बसपा 19.77 फीसदी वोट पाने के बाद भी एक भी सीट नही जीत सकी। कांग्रेस 7.55 फीसदी मत के साथ राहुल गांधी व सोनिया गांधी को अमेठी रायबरेली की 2 सीट जीत सकी। यह आंकड़ा 2017 के विधानसभा चुनाव में थोड़ा बदला। बसपा का वोट बढ़ कर 22 फीसदी हो गया। सपा 21 प्रतिशत रह गई। कांग्रेस का वोट भी घटा था।