रहस्यमयी मंदिर: खजाने की रखवाली करता है पंचमुखी नाग

डेस्क। आइये आज हम आपको देश के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताते हैं जिसमें खजानों का अनंत भंडार है। पद्मनाभ मंदिर में बताया जाता है कि तकरीबन दो लाख करोड़ रुपये की संपत्ति है। 9 साल पहले जब मंदिर के तहखाने खोले गए थे, तब लाखों करोड़ के खजानों को देखकर देश ही नहीं दुनिया भर के लोगों की हैरानी का ठिकाना नहीं रहा था। देश का सबसे अमीर मंदिर माने जाने वाले पद्मनाभ का निर्माण कब हुआ था, इसकी ठीक-ठीक जानकारी किसी को नहीं है। इतिहासकार बताते हैं कि यह मंदिर लगभग 5 हजार साल पुराना है। धर्मशास्त्र के विद्वान बताते हैं कि जब मानव सभ्यता कलियुग में पहुंची थी, तभी इस मंदिर का निर्माण कराया गया था। हालांकि, मंदिर की संरचना को देखकर कहा जाता है कि इसकी स्थापना सोलहवीं सदी में त्रावणकोर के राजाओं ने की थी। साल 1750 में महाराज मार्तंड वर्मा ने खुद को पद्मनाभ मंदिर का दास घोषित कर दिया था। इसके साथ ही पूरा राजघराना मंदिर से जुड़ गया और उसकी सेवा में जुट गया। बताया जाता है कि राजा मार्तंड ने अपनी सारी संपत्ति मंदिर को दान कर दी थी। शाही घराने के अधीन एक ट्रस्ट आज भी मंदिर की देखरेख करता है। त्रावणकोर राजपरिवार के सदस्य खुद को पद्मनाभस्वामी का दास कहते हैं। वे भगवान की संपत्ति से एक भी पैसा न लेने को संकल्पबद्ध हैं। मंदिर से बाहर निकलते वक्त राजपरिवार के सदस्य पैरों में लगी रेत साफ कर देते हैं। वे पद्मनाभस्वामी से संबंधित रेत का एक कण भी घर नहीं ले जाते। पद्मनाभ मंदिर में 6 तहखाने हैं। सात सदस्यीय टीम अब तक मंदिर के पांच तहखाने खोल चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने छठा तहखाना खोलने पर रोक लगा दी है। अब तक खोले जा चुके तहखानों से दो लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का खजाना बरामद हो चुका है। यह केंद्रीय शिक्षा बजट और राज्य बजटों से भी ज्यादा है। बताया जाता है कि त्रावणकोर के महाराज ने बेशकीमती खजाने को इस मंदिर के तहखाने और मोटी दीवारों के पीछे छुपाया था। इसके बाद हजारों सालों तक किसी ने इन दरवाजों को खोलने की हिम्मत नहीं की। इस तरह से बाद में इसे शापित माना जाने लगा। कथाओं के अनुसार, एक बार खजाने की खोज करते हुए किसी ने 7वें दरवाजे को खोलने की कोशिश की, लेकिन कहते हैं कि जहरीले सांपों के काटने से सबकी मौत हो गई। मंदिर में भारी मात्रा में खजाने की मौजूदगी ज्ञात है। मलयाली कवि उल्लूर एस. परमेश्वर द्वारा संग्रहीत ‘प्रधानपेट्टा मथिलकोम’ दस्तावेजों में इसका जिक्र है। दस्तावेजों में गुप्त कमरों का उल्लेख है, जिनसे अब खजाना निकाला जा रहा है। त्रावणकोर 1949 में ही भारतीय संघ में शामिल हो गया था, लेकिन मंदिर का प्रबंधन अब भी राजपरिवार के लोगों के पास है। प्राचीनकाल में त्रावणकोर की सीमाएं कन्याकुमारी से एर्नाकुलम स्थित अलुवा तक फैली थीं। उस वक्त केरल की राजधानी पद्मनाभपुरम (अब तमिलनाडु में) थी। बाद में तिरुअनंतपुरम को इसकी राजधानी बना दिया गया।