लॉकडाउन की अंतहीन त्रासदी

डा. शैलेन्द्र मिश्र। कोराना नाम की चीन जनित वैश्विक बीमारी से यू तो पूरा विश्व त्राहिमाम कर रहा हैं लेकिन भारत की त्रासदी अलग हट के रही पहले तथाकथित एक अल्प्सन्ख्यक समुदाय ने इससे बचने के उपाय को सरसरी तौर पर खारिज कर दिया और बाद मे इसके संक्रमण को बढ़ाने मे निर्णायक भूमिका का निर्वहन किया उसके बाद लाकडाऊन 3.0 से प्रवासी श्रमिको का पलायन भारत के मानस पटल पर ऐसी भयावह चित्र अंकित कर दिया जो हर भारतीय की वेदना को अन्दर से उद्वलित कर दिया आखिर ऐसी कौन सी परिस्थिति बनी की लोग पैदल ही 1000-1500 किमी . चल पड़े इस पर गम्भीर चिन्तन किया जाना चाहिए ताकि भविष्य मे इससे सबक ले सके. इसका संक्षिप्त मे सीधा उत्तर हैं विश्वास की कमी, ये अविश्वाश प्रवासियो के मन मे एकाएक नही आया वो देश काल परिस्थिति के आधार पर धीरे धीरे आया कारण चाहे उनके नियोक्ताओ का उनके प्रति बेरुखी या सरकार की घोषित योजनाओ मे पारदर्शिता का स्पष्टता के साथ अभाव। कमोबेश प्रभावित तो बेचारे प्रवासी श्रमिक हुए। किसी ने प्रवास के दौरान दुर्घटना से, किसी ने भूख से,किसी ने थक कर अपने प्राण त्याग दिये। अगर सरकार को लाकडाऊन करना ही था तो उसका एक आधार बनाकर करते लेकिन ऐसा नही किया गया और यहा एक बात और विचारनीय है कि प्रथम दो चरण मे मजदूरो का पलायन ना के बराबर रहा और जब इनमे अविश्वास आया तो तृतीय चरण मे प्रारम्भ हुआ। मीडिया का रोल अजीब रहा कभी तबलीगी जमात या उसके मुखिया पर भारतीय जनता को भटकाता रहा जो आजतक सरकार, प्रेस व जनता के लिये अभूज पहेली बना हुआ है लेकिन देश,प्रदेश व अधिकारी बार-बार ये भूल जाते है ये पब्लिक है जो सब जानती है और उचित समय पर माकूल जबाब भी बखूबी से देती है।