सदमे में बोरियां-तिजोरियां

currencyशमीम शर्मा। न तो मोदी ने तैयारी की और न किसी को करने दी। एकदम ही खड़का कर दिया। मन की बात तो मोदी जी हर सप्ताह करते रहे पर मन में क्या उथल-पुथल हो रही थी, उसकी किसी को भनक भी नहीं लगने दी। इसी चक्कर में सारा देश नोटों में लटपट हो गया। दबे पड़े खजानों को ठिकाने लगाने में बड़ों-बड़ों का सिर चकरा गया। बोरियां और तिजोरियां खाली करने में नानी याद आ गई।
आम आदमी को अपने टोटे पर पहली बार गर्व हुआ। न किसी का लेना एक, न देना दो। कई उलटबासियां सत्य सिद्ध होती प्रतीत हुईं। सन्तों ने ऐलान किया था कि एक दिन शरीर चला जायेगा, माया यहीं रह जायेगी। पर आज माया चली गई, शरीर तो यहीं का यहीं है। घरों में छोटी-छोटी गुल्लकों के मालिक बच्चे भी मैनेजर बन बैठे और ब्रेड-सब्जी खरीदने के लिये बीस-तीस रुपये भी यूं गरूर से देने लगे जैसे कोई बेटी का बाप प्लॉट दे रहा हो। जिन लोगों ने बरसों से उधार लिये पैसे कभी लौटाने की नहीं सोची थी, वे भी स्वयं रकम लौटाने की पहल करने लगे। बिजली के पुराने बिलों का धड़ाधड़ भुगतान होने लगा। साहूकारों ने अपनी मोटी-मोटी रकमों पर मोटा ब्याज लेने की बजाय भारी ब्याज दे-देकर अपनी माया खपाई। अब तक के इतिहास में पांच सौ के नोट की कीमत पांच सौ थी और हजार की हजार। पहली बार नोट भी डिस्काउंट पर बिके। ऐसी सेल कभी देखी-सुनी नहीं थी। बैंकों में अपनी ही जमा राशि से दो हजार रुपये निकलवाकर लोग ऐसी खुशी में घर लौट रहे थे कि मानो दरबार में शानदार नृत्य दिखाने पर किसी नर्तकी को बादशाह ने अपने गले का हार इनाम में दे दिया हो।
आजकल आधार कार्ड के बिना भी गुजारा नहीं और उधार कार्ड के बिना भी। नोटों पर गिरी गाज से तो लोग धीरे-धीरे बाहर निकल रहे हैं पर आगे होने वाले हमलों की आशंका से ग्रस्त हैं। ज़मीन-जायदाद और जेवरों की अब खैर नहीं है। बड़े-बूढ़े तो यहां तक कह रहे हैं कि पत्नी घर की लक्ष्मी है तो गर्ल फ्रैंड को काला धन माना जायेगा। बेहतर यही है कि अपने काले धन की समय रहते जानकारी दे दें। जीजा कह रहा है कि घरवाली के नाम पर ढाई लाख जमा करवाने की छूट है तो साली के नाम पर सवा लाख तो बनते ही हैं, क्योंकि वो आधी घरवाली जो है।