योगेश श्रीवास्तव,
लखनऊ। मिशन 2017 के लिए अब यूपी में समाजवादी पार्टी के बिना महागठबंधन की तैयारी है। कांग्रेस को साथ लेकर बनने वाले इस महागठबंधन के सूत्रधार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और रालोद के मुखिया अजित सिंह होंगे। इस मुद्दे को लेकर दोनों नेताओं की दिल्ली में बैठक भी हो चुकी है। किसी दूसरे राज्य के क्षेत्रीय दल और उसके नेता की महागठबंधन के जरिए सक्रियता कोई पहली घटना नहीं है इससे पहले बिहार के ही लालू और मुलायम को लेकर नेशनल लोकतांत्रिक मोर्चे का गठन कर चुके है। बदले राजनीतिक परिवेश में अब बिहार के सीएम और जेडीयू के वरिष्ठ नेता नीतीश कुमार रालोद के मुखिया अजित सिंह को साथ लेकर महागठबंधन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बसपा भाजपा समेत सपा को आंखे दिखाने की तैयारी में है। एक दो बार को छोड़कर अजीत सिंह हमेशा कभी भाजपा तो कभी सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़े। दल बनाने, मोर्चे और गठबंधनों में शामिल होने का अजीत सिंह का पुराना इतिहास है। इस बार उनका गठबंधन किसी दूसरे राज्य के क्षेत्रीय दल और उसके मुखिया से हो रहा है। उत्तर प्रदेश में अजीत सिंह सभी दलों का साथ आजमा चुके है और कई दलों के लिए अप्रांसगिक भी हो गए है। 2014 के लोकसभा चुनाव जिस तरह यूपी में बसपा का सफाया हुआ उसी गति को रालोद भी प्राप्त हुआ। पिता-पुत्र दोनों का पराजय का सामना करना पड़ा। लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त की भरपाई के लिए अब अजीत सिंह कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते। इसीलिए उन्होंने समय रहते जेडीयू से मिलकर महागठबंधन में शामिल होने की तैयारी कर ली है। हालांकि बिहार के किसी नेता के साथ यूपी में बनने वाला यह कोई पहला मोर्चा नहीं है इससे पहले 1997-98 में सपा के प्रमुख मुलायम सिंह यादव और राजद के मुखिया लालू यादव ने मिलकर नेशनल लोकतांत्रिक मोर्चा का गठन किया था। हालांकि इस मोर्चे ने आकार लेने से पहले दम तोड़ दिया। उत्तर प्रदेश में पिछले तीन दशकों में जितने भी गैर भाजपा गैर कांग्रेस दलों के खिलाफ जितने भी मोर्चे या गठबंधन बने उनकी ध्ुारी मुलायम सिंह यादव ही बने। लेकिन इस साल बिहार के चुनाव में मुलायम सिंह यादव के चुनाव के दौरान ही महागठबंधन से अलग होने के बाद अब जो महागठबंधन बनने की शुरूआत है उसमें मुलायम सिंह यादव को किनारे रखा जा रहा है। जिस हिसाब से सपा प्रमुख की कांग्रेस के प्रति तल्खी है उसकों देखते हुए महागठबंधन में शामिल बाक ी दलों को लगता है कि कांग्रेस को साथ लिए बिना यूपी का क्या कहीं भी एनडीए के खिलाफ जंग जीतना आसान नहीं है। रालोद की ही तरह यूपी के आधादर्जन से ज्यादा क ई ऐसे दल है कि जो ऐसे किसी भी गठबंधन में शामिल होने के लिए खासे उतावले है। रालोद के नेशनल जनता दल, राष्टवादी कांग्रेस पार्टी और कई अन्य दलों की क्षेत्रीय इकाइयां महागठबंधन में शामिल होकर चुनाव मैदान में पहुंच अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहती है। जेडीयू की मंशा यह है भी कि बिहार से लगे जो यूपी के पूर्वीे जिले है उनमें दस्तक दी जा सकती है। इस महागठबंधन से दोनों ही दल अपना-अपना राजनीतिक फायदा देख रहे है। राजनीतिक जानकारों की माने तो गैर भाजपा दलों को साथ लेकर बनने वाले ऐसा कोई भी मोर्चा भाजपा बसपा के साथ-साथ सपा के लिए मुशिकले खड़ी कर सकता है। बिहार मेें चुनाव के दौरान महागठबंधन की राह में कांटे बोने की गरज से सपा ने ऐनटाइम एनसीपी के अलावा पप्पू यादव और पीएसंगमा की पार्टी को लेकर एक मोर्चा बनाया था लेकिन उसका खाता ही नहीं खुल पाया। बिहार में महागठबंधन की जीत के बाद से उत्तर प्रदेश में इसी तरह का प्रयोग दोहराने को लेकर रालोद अन्य दलों की अपेक्षा ज्यादा उत्साहित है। जानकार कहते है कि यदि यह महागठबंधन निर्णायक भूमिका में आया तो किसी भी दल और गठबंधन के लिए जरूरी और मजबूरी दोनों बन सकता है।