सरेंडर किया तो नक्सली बनेंगे करोड़पति

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रांची से अपूर्व तिवारी । झारखंड सरकार ने नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने के लिए सुधारात्मक प्रयास शुरू कर दिए हैं। राज्य सरकार ने बड़े नक्सलियों को सरेंडर करने पर एक करोड़ रुपए देने का ऐलान किया है। पहले यह राशि 25 लाख रुपए थी। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने यह रकम बढ़ा कर एक करोड़ कर दिया है। मीटिंग में नक्सलियों से जुड़े अन्य 22 प्रस्तावों को भी मंजूर किया गया। बता दें कि झारखंड के 24 जिलों में से 22 में नक्सलियों का आतंक है। इसे ध्यान में रखते हुए ओपन जेल का कॉन्सेप्ट सामने आया है। सरकार ओपन जेल में भी सुविधाएं बढ़ा रही है। झारखंड की राजधानी रांची से सटे हजारीबाग जिले में स्थित ओपन जेल की शुरुआत 19 नवंबर, 2013 को यहां के तत्कालीन सीएम हेमंत सोरेन ने की थी। उस समय यहां 25 कैदियों को रखा गया था, जिनमें 18 नक्सली थे। हालांकि, अभी यहां आठ नक्सली बचे हैं। अन्य दस को कोर्ट से जमानत मिल चुकी है। इस जेल में सौ कॉटेज हैं, जहां कैदी अपनी फैमिली के साथ रहते हैं। फिलहाल, 92 कॉटेज खाली हैं। शुरू में जिन 18 नक्सलियों ने सरेंडर किया था, उनमें से नौ को अपनी फैमिली के साथ रहने की इजाजत मिली थी। जेल के निर्माण में तीन करोड़ रुपए की लागत आई थी। यह जेल 24 एकड़ में फैला हुआ है। इनमें से पांच एकड़ जमीन का उपयोग कैदियों के लिए वोकेशनल एम्प्लायमेंट और खेती करने के लिए किया जाता है। जेल की हर कॉटेज में एक बेड रूम, बालकनी, किचन, बाथरूम, टॉयलेट और एक छोटा कोर्टयार्ड है। झारखंड बिजली बोर्ड ने ओपन जेल में 200 केवीए का ट्रांसर्फमर लगाया है, जिससे हमेशा यहां बिजली रहती है। जेल में एक मेडिकल सेंटर भी है, जिसमें डॉक्टर, कम्पाउंडर और पैरा मेडिकल स्टाफ शामिल हैं। यहां पर कैदियों को स्वरोजगार के साथ-साथ वोकेशनल ट्रेनिंग और मुफ्त में एजुकेशन दी जाती है। जेल में झारक्राफ्ट की ओर से तीस वीविंग मशीनें लगाई गई हैं। ये सोलर पावर से चलती हैं। इसका उपयोग सिल्क और जूट से सामग्री तैयार करने में होता है। इस जेल के लिए एक एनजीओ नवभारत जागृति केंद्र ने पांच टीवी सेट और ओपन जेल लाइब्रेरी के लिए महान लेखकों की 150 किताबें भी दी है। ओपन जेल में रहने वाले सौ कैदी जेल से बाहर जाने के लिए आजाद हैं। ये शहर में कहीं भी घूम सकते हैं। काम कर सकते हैं। लेकिन जेल के पंद्रह किलोमीटर की रेडियस से ये बाहर नहीं जा सकते। सुबह सात बजे के बाद कैदी यहां से बाहर जा सकते हैं, लेकिन शाम पांच बजे तक इन्हें किसी भी हाल में वापस आ जाना है। शाम में रोज इनकी गिनती होती है। यहां हर कैदी को तीन हजार रुपए प्रतिमाह स्टाइपेंड के रूप में दिया जाता है। यहां वर्तमान में ढाई से तीन करोड़ का निर्माण कार्य चल रहा है। कोआ उत्पादन के लिए तीन से चार हजार पौधे लगाये गए हैं। डेयरी फॉर्म खोलने की तैयारी चल रही है। पूरे परिसर में 100 सोलर लाइट लगे हुए हैं। पूरे परिसर को गांव का लुक दिया गया है, ताकि यहां रहने वाले कैदियों को गांव का अनुभव हो। इस जेल में सबसे हार्डकोर नक्सली मार्शल टूटी है। रांची के बुंडू व तमाड़ में सक्रिय रहे भाकपा माओवादी की नक्सली टूटी ने वर्ष 2010 के अगस्त में पुलिस के सामने सरेंडर किया था।