सरोगेसी का बढ़ता व्यवसायीकरण

Surrogate-Motherhoodकुलिंदर सिंह यादव। हाल के ही कुछ दिन पूर्व केंद्र सरकार द्वारा किराए की कोख का व्यवसाय के रूप में इस्तेमाल तथा विदेशी दंपत्तियों के लिए भारत में इसके उपयोग पर रोक लगाने का निर्णयलिया है सेरोगेसी का व्यवसाय भारत में पिछले कुछ वर्षों में अपनी जड़ें जमा चुका है निरंतर चर्चा में रहने के उपरांत पहली बार इस पर रोक लगाने केलिए कदम उठाए गए हैं इस व्यवसाय की तीव्र विस्तारीकरण इसके दुरुपयोग के मामले तथा इससे जुड़े कानूनी समस्याओं के कारण समाज मेंअराजकता को पांव पसारने से रोकने के लिए यह फैसला दूरगामी महत्व का प्रतीत होता है कुछ समाज सेवकों का तर्क यह भी है कि इस व्यवसाय परपूर्ण रोक लगाने की वजाए इसके बढ़ते कारोबार को विनियमित करने का प्रयास करना चाहिए समग्रता यह मुद्दा किसी अंतिम निष्कर्ष पर पहुचनेसे पहले संतुलित नज़रिया अपनाने के माँग पर बल देता है केंद्र सरकार द्वारा अपना सेरोगेसी को प्रतिबंधित करने का विचार उच्चतम न्यायालय में इस मामले में चल रही है एक सुनवाई के दौरान सार्वजनिक किया गया यह मामला सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता जय श्रीवाड के सेरोगेसी के व्यवसाईकरण पर प्रतिबंध लगाने के लिए दायर की गई जनहित याचिका के माध्यम से पहुंचा उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय विधि एव न्याय मंत्रालय स्वास्थ्य एव परिवार कल्याण मंत्रालय इंडियन कॉउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च को इस मामले में नोटिस जारी कर के जवाब मांगा इसके जवाब में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि वह यूपीय सरकार द्वारा लागू इस योजना को जिसके द्वारा विदेशी दंपत्तियों के लिए सेरोगेसी के दरवाजे खोले गए थे उनको वापस लेती है भारत में सेरोगेसी द्वारा पहले बच्चे का जन्म 1994 में हुआ था उस समय सेरोगेसी का व्यवसाईकरण नहीं हुआ था लेकिन अब इसके व्यवसायीकरण के साथ इसके विश्वसनीय आंकड़े भी उपलब्ध हैं जो भारत में सेरोगेसी का वार्षिक कारोबार 450 मिलियन डॉलर तक बताते हैं भारत में सेरोगेसी के बढ़ते व्यवसाय की पृष्ठभूमि के कारणों पर जाने पर हमें भारत इसका केंद्र क्यों बना है इसकी जानकारी मिलती है खासकर विदेशियों के लिए भारत में सेरोगेसी का इस्तेमाल लाभकर रहता है इसके पीछे के कारणों में पहला महत्वपूर्ण कारण यह है कि सिंगापुर जर्मनी नार्वे ईटली जैसे देशों में सेरोगेसी पूर्णता प्रतिबंधित है ऐसे में इन देशों के निसंतान दंपत्तियों के लिए भारत एक उत्तम विकल्प है भारत के लचीले कानून जिसमें व्यवसायिक सेरोगेसी के लिए अभी तक विनियामक कानून नहीं है ऐसे में सेरोगेसी के लिए विदेशी दंपत्तियों को आसानी से फर्टिलिटी वीजा मिल जाता है जिससे विदेशी दंपत्ति आसानी से आईवीएफ प्रक्रिया पूरा करके साथ ही सेरोगेट मदर का चयन कर वापस चले जाते हैं अपने देश से ही हुए सेरोगेट मदर पर नियंत्रण रखते हैं दंपति को बच्चे को ले जाने के लिए वीजा आसानी से उपलब्ध हो जाता है इस व्यवसाय में सेरोगेट माता को 4 से 6 लाख रुपये की मोटी रकम प्राप्त होती है इस प्रक्रिया का सकारात्मक पक्ष देखा जाए तो यह समाज हित में आवश्यक है और इस पर रोक लगाना तर्कसंगत नहीं है लेकिन व्यवहार में इसका नकारात्मक पक्ष समाज में अशिक्षित गरीब महिलाओं का शोषण कर रहा है जिसमें निजी प्रजनन क्लीनिको के द्वारा गरीब महिलाओं की गरीबी दूर करने का सपना दिखा कर अपनी कोख किराए पर देने को मना लिया जाता है आश्चर्यचकित करने वाला तथ्य है यह है कि भारत में इस समय हजार से भी ज्यादा आईवीएफ क्लीनिक में से मात्र 104 ही भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा मान्यता प्राप्त हैं स्पष्ट है कि इससे सरोगेसी के दुरुपयोग की पुष्टि होती है ये तथ्य न्यायालय में सुनवाई के दौरान दिखाए गए इसके दुरुपयोग से महिलाओं को स्वास्थ्य मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है रिपोर्ट में एक महिला का उल्लेख किया गया था जो 5 बार सरोगेट मदर रही साथ ही उसकी चार अपनी संताने भी हैं ऐसी स्थिति में उस महिला को किस मानसिक तनाव से गुजरना पड़ा होगा इसका सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है समय के साथ-साथ सेरोगेसी से संबंधित अनेक विवाद चर्चा में रहे हैं जिनमें 2008 में भारत में बेबी मांझी का मामला काफी महत्वपूर्ण रहा था जिसमें बच्ची के पिता द्वारा उसको अपने घर जापान ले जाने का मिलता था जिस में उच्चतम न्यायालय ने कहा था की भारतीय कानून में नवजात बच्चो की देखभाल का काम माता का होता है सेरोगेसी से जुड़े एक अन्य मामले का भी सुप्रीम कोर्ट ने उल्लेख किया जिसमें जर्मन दंपति ने सेरोगेसी के लिए गुजराती महिला को चुना बाद में जर्मन दंपति बच्चे को लेने आए तो गुजरात हाईकोर्ट ने ले जाने पर रोक लगा दी क्योंकि बच्चों का जन्म गुजरात में हुआ था इससे वह भारतीय नागरिक हैं बाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मामला पेचीदा होने पर बच्चों को जर्मनी भेज दिया लेकिन स्वयं उच्चतम न्यायालय द्वारा केंद्र सरकार से सवाल किया की सेरोगेसी से पैदा हुई उन बच्चों की नागरिकता क्या होगी जिनके माता पिता भी विदेशी हैं लेकिन जन्मदात्री मां भारतीय हैं सेरोगेसी के मामले में समस्या तब तक नहीं होगी जब तक बच्चा अपने लिए भारतीय नागरिकता की मांग नहीं करता है लेकिन विदेशी नागरिकता के साथ यदि किसी खास कारणों से वह भारत की नागरिकता मांगता है तो समस्या हो सकती है क्योंकि कानूनी प्रावधान इस विषय पर मौन है भारतीय संविधान कहता है कि यदि जन्म देने वाली मां भारतीय है तो बच्चे भी भारतीय होंगे लेकिन जब जैविक मां विदेशी हो और वच्चा सब वयस्क होकर भारतीय नागरिकता की मांग करें तो संविधान मौन है उपरोक्त विसंगतियों को देखते हुए अतिशीघ्र एक नियामक बनाने की आवश्यकता है ताकि ऐसे मामलों में पारदर्शिता लाई जा सकें और आधुनिक तकनीक से निसंतान दंपत्तियों को संतान का सुख दिया जा सके यहां यह भी ध्यान देना होगा कि धन के लालच में आकर गरीब महिलाएं इसका शिकार ना बने इसमें ऐसा कानून आवश्यक है जिससे स्वेच्छा से कोख किराए पर दी जा सके परंतु व्यवसायीकरण ना हो सके।