हास्य -व्यंग्य: लाइफ विथ मास्क

शरद कुमार वर्मा। मैंने अपनी घरवाली से कहा कि अजी सुनती हो चलो अब लिपस्टिक खरीदने का खर्चा कम हो गया। उसने चौंककर पूछा ,वह कैसे ?मैंने अपना तर्क देते हुये अपनी पत्नी से कहा कि अब घर से बाहर जाते समय तुम्हारा आधा चेहरा तो मास्क से ढका रहेगा द्य ऐसे में तुम्हारा बिना लिपस्टिक लगाये काम चल सकता है द्य साथ ही यदि तुम केवल आधे फेस पर फ्रेशियल करो तो वह खर्चा भी आधा हो जायेगा। मेरी इस मजाकिया बातों को सुनकर श्रीमती जी उखड़ पड़ी ,बोलीं तो क्या तुम सोचते हो मैंअपना मेकअप लिपस्टिक और क्रीम -पाउडर बाहर वालों को दिखाने के लिये लगाती हूँ तुम्हारे लिये नहीं। उसका यह अंबुजा सीमेंट की तरह सॉलिड उत्तर सुनकर मैं निरुत्तर हो गया। अब इस मास्कवादी जीवन में जब एक इंसान दूसरे इंसान से मास्क लगाकर सोशल डिस्टेंस को ध्यान में रखते हुये दूर से बातें करेगा तो यह पता नहीं चलेगा कि हमारी बातों का अगले पर क्या प्रभाव पड़ रहा है द्य यानि कि मास्क से आधा मुँह ढके होने के कारण हमारी बात सुनने वाली पार्टी के चेहरे के भाव का अभाव रहेगा। अपनी माशूका से अपने इश्क का इजहार करते समय प्रेमी को यह मालूम नहीं पड़ेगा कि जिस मोहतरमा से वह अपने दिल की बात कह रहे हैं वह आपकी बात सुनकर मास्क के अंदर गुस्से से दाँत किटकिटा रही है या मुस्करा रही है । ऐसे में गलतफहमी का शिकार होने से जूते पडऩे की संभावना है। रुख से जरा नकाब हटा दो मेरे हुजूर .. गीत लिखने वाले को क्या पता था कि नकाब हटाने पर जुर्माना हो सकता है द्य बात जो भी हो लेकिन मास्क के चलन ने उधार लेने वालों की भी सहूलियत हो गई। हमारे परिचित गुप्ता जी नुक्क्ड़ की परचून की दुकान से अक्सर उधार सामान खरीदते थे एक दिन वही दुकानदार उन्ही मास्क और अंगोछा मुँह पर लपेटे गुप्ता जी से पूछ रहा था कि क्या बात है आजकल गुप्ता जी नजर नहीं आते वह कहीं किसी दूसरे शहर में लॉकडाउन में फंसे हैं क्या?यह सुनकर नकाब पीछे आधे छिपे गुप्ता जी की बांछे खिल रही थीं । सोच रहे थे भला हो इस मास्क का , इस कडक़ी में उधार रफा दफा हो गया।
मास्क लगाकर बोलना उसी तरह है जैसे मुँह में पान दबाकर बोलना द्य आपकी आधी बात मास्क के अंदर और आधी मास्क के बाहर द्य ऐसे अपनी बात को समझाने के लिये इशारों का सहारा लेना पड़ता है। हमारे इशारे न समझ पाने पर लोग कह उठेंगे तौबा तुम्हारे ये इशारे। कुछ लोग अपने मास्क को नाक पर न रखकर मुँह पर रखते हैं द्य वह इस इंतजार में रहते है कि जैसे ही सामने कोरोना आता दिखेगा मास्क झट से नाक पर लगा लेंगे जान है तो जहान है पहले कहते थे निकलो न बेनकाब जमाना खराब है अब कहना है निकलो न बेनकाब बाहर कोरोना जनाब है।