पार्टी में गुटबाजी तेज: गायब हो गया शाह का शाही अंदाज

amit shah1लखनऊ। बिहार चुनाव में करारी हार के बाद उत्तर प्रदेश में अभी से भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की राजनीतिक समझ और काबिलियत पर सवाल उठाए जाने लगे हैं। पार्टी के भीतर पुरानी गुटबाजी नए जोर के साथ सिर उठा रही है जिसका असर जारी पंचायत चुनावों में साफ दिखाई दे रहा है। भाजपा नेताओं का कहना है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो दो साल बाद उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के टिकट बांटने के वक्त तक सिरफुटौवल का नजारा होगा। अमित शाह, सुशील मोदी और राजनाथ सिंह बीते लोकसभा चुनाव से ऐन पहले अमित शाह को उत्तर प्रदेश का पार्टी प्रभारी बनाया गया था।
राम जन्मभूमि आंदोलन के नेताओं में एक पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री स्वामी चिन्मयानंद का कहना है, अनुभवहीन नेताओं और गैर-जिम्मेदार बयानबाजी के कारण हमें ऐसे राज्य में भी हारना पड़ा जहां जीत की संभावना ज्यादा थी। पिछले लोकसभा चुनाव के बाद से अनुभवी कार्यकर्ताओं और पुराने नेताओं की उपेक्षा हुई है। कार्यकर्ताओं में अमित शाह को जुमलेबाज के उपनाम से जाना जाने लगा है हालांकि यह बात कोई ऑन रिकार्ड नहीं कहना चाहता क्योंकि सत्ताधारी पार्टी में सबको अपने कामों और राजनीतिक भविष्य की चिंता है। उन्होंने मोदी के कालाधन वापस लाने के वायदे को चुनावी जुमला कहा था जबकि खुद कार्यकर्ताओं को यकीन था कि मोदी इस दिशा में गंभीर प्रयास करेंगे।
गुटबाजी का आलम यह है कि हाल में हुए जिला पंचायत चुनावों में कम से कम पांच सौ जगहों पर पार्टी के तीन या अधिक उम्मीदवार एक दूसरे के खिलाफ खड़े हुए और हारे। अंदरूनी झगड़ों के कारण डेढ़ सौ से दो सौ जगहों पर पार्टी उम्मीदवार ही नहीं तय कर पाई। रास्ता निकाला गया कि जो भी जीतेगा पार्टी उसे अपना मान लेगी। अमित शाह की अवहेलना का एक और प्रमाण यह है कि भड़काऊ बयान देकर सरकार की किरकिरी कराने वाले सांसद साक्षी महाराज, विधायक संगीत सोम और मंत्री महेश शर्मा को उन्होंने फटकारा था लेकिन इसके बावजूद वे बयानबाजी कर रहे हैं। विरोधियों का कहना है कि शाह की फटकार सिर्फ दिखाने के लिए थी, वास्तव में इन नेताओं को धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए अगले विधानसभा चुनाव तक माहौल गरमाए रखने के लिए कहा गया है।