भारत में सामाजिक न्याय की दिशा व दशा

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कुलिन्दर सिंह यादव। सामाजिक न्याय का आशय  सामाजिक आर्थिक समानता प्राप्त करना ताकि देश की पूरी जनसंख्या राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ी हो दूसरे शब्दों में सामाजिक न्याय का आशय  हैं। समाज के सभी वर्गों को आगे बढऩे के समानअवसर मिले इसका मुख्य उद्देश्य मानव संसाधन विकास है जो डाक्टर अमरत्व सेन की संकल्पना पर आधारित है। उनके अनुसार पूँजी का आशय  मुद्रा से नहीं होता है क्योंकि मानव पूँजी सर्वश्रेष्ठ होती है वहीं मुद्रा पूँजी का सृजनकरती है। अत: मानव पूंजी में निवेश करना अथवा सामाजिक क्षेत्रों में निवेश करना मानव संसाधन विकास कहाजाता है ताकि  प्रति व्यक्ति योगदान में वृद्धि हो सके सामाजिक न्याय प्राप्त करने के दो मुख्य मार्ग हैं एक हैं नरमपंथीतथा दूसरा गरम पंथी मार्ग है। गरम पंथी विचारधाराओं में उन वर्गों का विश्वास बना है जो राष्ट्र की मुख्यधारा सेअलग थलग रह जाते हैं वह आधारभूत संसाधनों से वंचित होते हैं। क्योंकि राष्ट्रीय नियोजन में उनकी समस्याएं बनी रहती हैं ऐसे जनमानस असंतोष व आक्रोश के शिकार होते हैं जो अंतोगत्वा जन आंदोलन का रुप लेता है और यदि शांतिपूर्ण जन आंदोलन के विरुद्ध सरकार सैन्य  कार्यवाही करती है तो  यह आंदोलन हिंसक हो जाता है जिसका ज्वलंत  उदाहरण भारत में नक्सलवाद और माओवाद है नक्सलवादी और माओवादी भी सामाजिक आर्थिक समानता की मांग करते हैं  लेकिन उनकी मांग करने की शैली हिंसक है। वे रक्त क्रांति में विश्वास करने लगे हैं परिणामत: सरकार और नक्सलवादियों की बीच अंधा युद्ध होता है। यह अंधा युद्ध किसलिए कहा जाता है क्योंकि एक और सरकार का तर्क है कि वे  सुरक्षाकर्मियों सुरक्षा कर्मियों की हत्या करते हैं जिससे उनके विरुद्ध सैनिक कार्यवाही होती हैं दूसरी ओर नक्सलवादियों का तर्क यह है की   सुरक्षाकर्मी निर्दोषों की हत्या करते हैं जिससे उनके स्वजनों हो हथियार उठाने के लिए विवश होना पड़ता  है दोनों की तर्क  अपनी जगह सही है लेकिन ऐसे तर्कों से समाधान नहीं निकलता क्योंकि बातचीत एकमात्र रास्ता है और हाल के महीनों में सैन्य  कार्यवाही  तेज की गई है। जिसका उद्देश्य है नक्सलियों व माओवादियों पर दबाव तैयार करना ताकि वे हिंसा का मार्ग छोड़ सकें और बातचीत के माध्यम से शांति व विकास का रास्ता अपना अपनाएं  सरकार के ऐसे प्रयासों के सकारात्मक परिणाम आने लगे हैं क्योंकि नक्सलवादी व माओवादी  छेत्रों में संरचना विकास में तेजी आई है जिससे सरकार के साथ साथ उद्योगों ने भी अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन किया है नरमपंथी विचारधाराओं में राज्य की भूमिका प्रबल  होती है जिससे कल्याणकारी योजनाएं संरक्षण सब्सिडी दक्षता विकास  वित्त पोषण उद्मिता का विकास किया जा रहा है किन्तु  नरमपंथी विचारधाराओं के समक्ष आज भारत में कई चुनौतियां है जिसमें भुखमरी गरीबी बेरोजगारी निरक्षरता स्वास्थ्य स्वच्छता का अभाव महत्वपूर्ण चुनौतियां है अत:  इन्ही चुनौतियों के अनुसार कई कल्याणकारी योजनाओं को  कार्यांवित किया जा रहा है जो वर्तमान बजट के महत्वपूर्ण प्रावधान भी  है यह योजनाएं चुनौतियों के अनुसार इस प्रकार हैं  इन चुनौतियों में भुखमरी देश के लिए अभिशाप है राष्ट्रीय सर्वेक्षण संगठन के अंग अनुसार देश के 40 फीसदी लोग बिना भोजन के सोने को विवश  हैं वहीं दूसरी ओर देश मैं 40त्न भोज्य  सामग्री बर्बाद होती है इसलिए खाद्य सामग्रियों की बर्बादी रोक जाये तो भुखमरी की समस्या से सरलता से निपटा जा सकता है  दूसरे शब्दों में खाद्य  सामग्रियों का प्रबंधन अधिनियम बनाना चाहिए ताकि भंडारण व्यवस्था वितरण व परिवहन व्यवस्था में न्यूनतम बर्बादी हो सके ऐसे बर्बादीयों के विरुद्ध जुर्माने की व्यवस्था होनी चाहिए जिस पर सभी विधिवेत्ता व अर्थशास्त्री एकमत हैं इसी  संदर्भ में खाद्य सुरक्षा अधिनियम बनाया गया है जिसमें शहरी जनसंख्या का प्रचार 50फीसदी ग्रामीण जनसंख्या का 75फीसदी प्रतिशत देश की कुल जनसंख्या का 67फीसदी सम्मिलित किया गया है इस जनसंख्या का पहचान का दायित्व राज्य सरकारों को दिया गया है लेकिन मानकों के ऊपर विवाद के कारण दो वर्ष  होने के बाद भी ऐसी जनसंख्या की पहचान नहीं हो सकी है  कुछ राज्यों व्  केंद्र शासित प्रदेशों ने अभी तक खाद्य सुरक्षा अधिनियम को  लागू करना जरूरी नहीं समझा है जबकि यह सामाजिक न्याय की दिशा में यह  एक सराहनीय कदम है इसके अंतर्गत वयस्क व्यक्ति को क्रमश तीन रुपए दो  रुपए तथा एक रुपए कि दर से  से चावल गेहूँ  व अन्य खाद्यान्न 5 किलोग्राम की सीमा तक प्रतिमाह   उपलब्ध कराए जाएंगे यह सब्सिडी 130000 करोड़ का भार है जिसका वहन संघ सरकार कर रही है फिर भी राज्य सरकार मानवों के अभाव में उक्त  जनसंख्या की पहचान नहीं कर सकी  हैं अत: संघ  व राज्य सरकारो  को मिलकर यथाशीघ्र एक राष्ट्रीय मानक सुनिश्चित करना चाहिए खाद्य  सुरक्षा अथवा  नगद नगद सब्सिडी  के हस्तांतरण के लिए  बैंक खाते का होना अनिवार्य थाजिसके लिए क्क्र कि सरकार में स्वाभिमान योजना बनाई थी किंतु यह कार्यांवित नहीं हो सकी 2014 में  नवगठितसरकार ने सामाजिक न्याय की दिशा में जनधन योजना की घोषणा की है इस  योजना के अंतर्गत 28 अगस्त 2014को 1 दिन में भारतीय बैंक प्रणाली के 77000 शाखाओं में 1.5 करोड़ बैंक खाते खोलकर सामाजिक न्याय की दिशामें इतिहास रचा है  इस दिशा में 2014-15 में 7.5 बैंक खाता खोलने का लक्ष्य रखा गया है बैंक खातों की उपलब्धताके द्वारा लघुवित्य को सरलता से स्थानांतरित किया जा सकता है इस प्रकार सरकारी आवंटनो में न्यूनतम दुरुपयोगकी संभावना होगी प्रत्येक खाताधारकों शून्य  से खाता खोलने का अधिकार है यदि वह 6 महीने अपने खाते में अतिलघु संचालन भी तो उन्हें 5000 ओवरड्राफ्ट निकालने की अनुमति होगी ताकि वे आकस्मिक समस्याओं की पूर्तिकरें कर सकें प्रत्येक खाताधारकों एक लाख रूपए दुर्घटना बीमा और 30000 की जीवन बीमा उपलब्ध होगीजिसका प्रीमियम  सरकार अदा  करेगी लेकिन दूसरी और बचत दर में भारी वृद्धि होगी जिससे सरकार को निवेश केलिए पूंजी मिलेगी और उसका नाम आम व्यक्ति तक पहुंचेगा आज देखा जा रहा है कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम के बाद भी भुखमरी के कगार पर पढ़े लोगों की पहचान नहीं हो पाई जिसके कारण यहां अधिनियम कागजो में सिमटा हुआ है अत: अर्थशास्त्रियों का मत यह  है कि संबंधित व्यक्तियों की तुरंत पहचान  हो और वे व्यक्ति जिनके पास परिवहन की व्यवस्था नहीं है उनके  लिए सचल दस्ते  के द्वारा आपूर्ति की व्यवस्था की जाए इसके लिए राज्य सरकारों दलगत भावनाओं से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में सोचने की जरूरत है जिससे गौरवशाली भारत का निर्माण हो सके।