ग्लोबल संकट से निपटने की रणनीति

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डॉ.भरत झुनझुनवाला ।
पिछले माह में विश्व अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदल गयी है। पहले ग्रीस का संकट आया। उस देश ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से लिये डेढ़ अरब डालर के ऋण का रिपेमेंट नहीं किया। आने वाले समय में लगभग दस अरब डालर के ऋण का रिपेमेंट होना है। फिलहाल ग्रीस तथा यूरोपीय यूनियन के बीच समझौता हो गया है। यह समझौता टिकाऊ होगा, इसमें संशय है। पिछले माह ही चीन के शेयर बाजार में भारी गिरावट आयी है। पिछले एक साल में चीन के शेयर बाजार में ढाई गुणा वृद्धि हुई थी। पिछले माह इसमें 30 प्रतिशत की गिरावट आयी है। इस गिरावट के बावजूद चीन का शेयर बाजार पिछले वर्ष की तुलना में 75 प्रतिशत ऊंचा है। परन्तु निवेशकों को भय है कि गिरावट का दौर जारी रहेगा।
इन दोनों संकटों की जड़ में विकसित देशों की शिथिल पड़ती अर्थव्यवस्थायें हैं। विकसित देशों के समूह में अमेरिका, यूरोप तथा जापान शामिल हैं। इस सम्पूर्ण समूह को देखें तो इनकी अर्थव्यवस्थायें शिथिल हैं। हां, अमेरिका तथा जर्मनी अभी भी सुदृढ़ हैं। इन दो देशों की इस सुदृढ़ता से भ्रमित नहीं होना चाहिये। वर्तमान समय में यह कहना कठिन है कि ग्रीस तथा चीन का उभरता संकट सम्पूर्ण वैश्विक अर्थव्यवस्था को अपनी गिरफ्त में ले लेगा अथवा इन दो देशों तक सीमित रह जायेगा। बहरहाल इतना स्पष्ट है कि विश्व अर्थव्यवस्था में सब कुछ ठीक नहीं है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने हाल में विश्व अर्थव्यवस्था की विकास दर का अनुमान 3.5 प्रतिशत से घटाकर 3.3 प्रतिशत कर दिया है। इस मामूली कटौती को गम्भीरता से लेना चाहिये, जैसे गंभीर मरीज के ब्लडप्रेशर में हल्की गिरावट भी बहुत मायने रखती है।
पिछले दो दशक में चीन ने भारी मात्रा में विदेशी निवेश को आकर्षित किया है और विकसित देशों को उतनी ही मात्रा में मैन्यूफैक्चर्ड माल का निर्यात किया है। विकसित देशों के समूह में गहराती मंदी के कारण चीन की यह रणनीति आज फेल है। चीन की कम्पनियों की बिक्री एवं लाभ शिथिल हैं। फलस्वरूप चीन का शेयर बाजार टूट रहा है। मोदी सरकार चीन की इसी असफल नीति को लागू कर रही है। सरकार का प्रयास है कि मेक इन इंडिया प्रोग्राम की छत्रछाया में विदेशी कम्पनियों को भारत में कम्पनियां लगाने को मनायें और उनके द्वारा उत्पादित माल का निर्यात करें, जैसा चीन ने किया है।
विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाएं मंदी में चल रही हैं। इन्हीं से आशा की जा रही है कि वे भारत को उबारेंगी। पिछले छह माह में विदेशी निवेश में वृद्धि नहीं हुई है जबकि निर्यात में गिरावट जारी है। ऐसे में विकसित देशों की बीमार अर्थव्यवस्था के पीछे भागने के स्थान पर मोदी सरकार को अंतर्मुखी पॉलिसी लागू करनी चाहिये।
मोदी की आंतरिक आर्थिक नीति घातक है। सरकार का दबाव निवेश बढ़ाने पर है, जैसे किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी में ऑटोमेटिक सुलजर लूम लगाकर कपड़े का उत्पादन किया जाये। सही है कि इससे उत्पादित कपड़े का दाम न्यून होगा। उपभोक्ता को सस्ता कपड़ा मिल जायेगा। परन्तु दुकान में टंगा सस्ता कपड़ा किस काम का जब जेब में पैसा ही न हो? ऑटोमेटिक लूम द्वारा कपड़े का उत्पादन करने से श्रमिकों की जरूरत कम ही पड़ेगी। 20 पावर लूम का काम एक सुलजर लूम कर देता है। पावरलूम में लगे 20 श्रमिक बेरोजगार हो जायेंगे। इनकी क्रय शक्ति घटेगी और बाजार में कपड़े की मांग घटेगी। कई दुकानदारों के अनुसार पिछले साल की तुलना में बिक्री 20 प्रतिशत कम हो रही है। प्रापर्टी मार्केट का तो ज्यादा ही खस्ता हाल है। दाम 30 प्रतिशत टूट चुके हैं।
इस गिरावट के तीन कारण हैं। पहला कारण निर्यातों में ठहराव है। इसके कारण कम्पनियां माल को घरेलू मार्केट में ठेल रही हैं और दाम टूट रहे हैं। यद्यपि होल सेलर तथा रिटेलर द्वारा बढ़े मार्जिन वसूल करने से दाम भी साथ-साथ बढ़ रहे हैं। दूसरा कारण आम आदमी की क्रय शक्ति का ह्रास है। सरकार बड़ी कम्पनियों द्वारा ऑटोमेटिक मशीनों से उत्पादन को बढ़ावा दे रही है। आम उपभोक्ता के हाथ में पैसा नहीं है कि वह बाजार से माल खरीद सके। तीसरा कारण भ्रष्टाचार में कमी है। यूपीए सरकार के समय में काला धन प्रचुर मात्रा में फैला हुआ था। यह काला धन प्रापर्टी में लग रहा था। प्रॉपर्टी बेचने वालों को बड़ा पैसा मिल रहा था, जैसे प्रॉपर्टी खरीदने वाले द्वारा बाजार में एसयूवी खरीदी जा रही थी। इससे बाजार में मांग बन रही थी। मोदी सरकार के द्वारा भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करने से यह पैसा सरकारी खजाने में टिका हुआ है। महंगाई को नियंत्रित करने के लिये इस रकम को तिजोरी में बन्द कर दिया गया है।
खर्च मुख्यत: सरकारी कर्मचारियों को बढ़े टीए आदि देने में हो रहा है। ये कर्मी सोना खरीद रहे हैं अथवा अपनी पूंजी को विदेश भेज रहे हैं। इसलिये घरेलू अर्थव्यवस्था में मांग उत्पन्न नहीं हो रही है। इस परिस्थिति में मेक इन इंडिया तो फेल होगा ही, साथ-साथ यह प्रोग्राम पूरी अर्थव्यवस्था को गर्त में ले जायेगा।
मोदी सरकार को अपनी इकोनामिक स्ट्रेटजी में मौलिक परिवर्तन करना चाहिये। देश के आम आदमी की क्रय शक्ति बढ़ानी चाहिये। सरकार को चाहिये कि देश में रोजगार बढ़ाने का कार्यक्रम हाथ में ले। जैसे ऑटोमेटिक सुलजर लूम को बढ़ावा देने के स्थान पर सभी पावरलूम पर भारी टैक्स लगा दे। तब हथकरघा चल निकलेगा। तमाम लोग कपड़ा बुनने का काम करेंगे। उनके हाथ में पैसा आयेगा। वे बाजार से माल खरीदेंगे और अर्थव्यवस्था चल निकलेगी।
साथ-साथ निवेश के सभी प्रस्तावों की रोजगार आडिट करानी चाहिये। सुलजर लूम चलाने में 200 लोगों के रोजगार सृजन के साथ यह भी देखना चाहिये कि कितने पॉवरलूम बन्द हो जायेंगे। निवेश के उन्हीं प्रस्तावों को स्वीकृति देनी चाहिये, जिनका रोजगार पर अप्रत्यक्ष निगेटिव असर न पड़े। दूसरे, बुलेट ट्रेन के स्थान पर झुग्गियों में सड़क, नाली और बिजली, पानी की व्यवस्था करनी चाहिये। इससे झुग्गियों में बिस्कुट और लिफाफे बनाने वालों को धन्घा करने में सहूलियत होगी। उनका माल बाजार में बिकेगा और उनके हाथ में आयी क्रय शक्ति से जमीनी स्तर पर मांग में वृद्धि होगी।