काशी में कचौड़ी-जलेबी का क्रेज है कायम

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सौरभ पांडे
वाराणसी। शहर बनारस का स्वादिष्ट कलेवा खर कचौड़ी और तर जलेबी, आपाधापी के इस दौर में भी मजबूती से अपनी जगह बनाए हुए है। फर्क सिर्फ इतना आया है कि पहले यह कलेवा झपोलियों में भरकर घर आया करता था। जल्दी भागो के इस दौर में यह नाश्ता भी अब फास्ट फूड से टक्कर लेने लगा है। चार कचौडिय़ों के साथ जलेबी फटाफट मुंह में डाली और चल पड़े अपने काम पर। हालांकि स्पर्धा की होड़ में बनारस के इस पुराने व्यंजन के साथ अब इडली व डोसा भी टक्कर लेने लगे हैं। बावजूद इसके अपने अनूठे स्वाद के दम पर जलेबी-कचौड़ी की बादशाहत कायम है।
यह बात अलग है कि स्वास्थ्य के प्रति सर्तकता बढ़ जाने के कारण कुछ लोग अब नाश्ते की फेहरिस्त में ओट्स और दलिया को प्रमुखता देने लगे हैं। टोस्ट और आमलेट भी जोर आजमाइश में है लेकिन बनारस की जीवन शैली में शामिल हो चुके जलेबी कचौड़ी को अब उसकी जगह से हटाना संभव नहीं है।
आज भी बनारस का आदमी बगल की दुकान पर अल सुबह भूने रहे मसाला की सुगंध से ही जागता है और नित्य काम से निबटने के बाद सीधे कचौड़ी.जलेबी की दुकान पर भागता है। जाड़ा, गर्मी या हो बरसात जतनवर के विश्वनाथ साव भोर में जब कचौड़ी के साथ चलने वाली सब्जी की बघार देते हैं तो पास.पड़ोस के बाशिंदों की नथुने फड़क उठते हैं। इसके बाद तो सारा आलस्य काफूर हो जाता है और लोग कचौड़ी.जलेबी के कतार में लग जाते हैं।
मौसम कोई भी होए विश्वनाथ साव के अलावा चेतगंज में शिवनाथ सावए कचहरी में झुल्लन साव, दशाश्वमेध में मंगल साव की दुकानों पर लगने वाली भीड़ बनारस के इस कलेवे की लोकप्रियता बयां करती है। वैसे तो बनारस में चलन कचौड़ी की नफरी का है मगर कचौड़ी गली और अन्य कई जगहों पर कचौड़ी किलो की भाव भी बिकती है।
सब्जी और मसाले महंगे होने के बावजूद अभी शहर में सरसों की तेल की झांग से लटर.पटर सब्जी का स्तर यहां हलवाई बंधुओं ने बना रखा है। हालांकि महंगाई का असर पड़ा है। चार.पांच साल पहले तक 10 लोग रुपये की नोट देकर कचौड़ी व जलेबी का नाश्ता कर कर लेते थे।