यूपी को मिले दो मंत्री: शिव प्रताप और सत्य पाल

लखनऊ। चार बार विधायक, तीन बार प्रदेश के कैबिनेट मंत्री रहे शिवप्रताप शुक्ल ने अपनी जिंदगी के 14 साल राजनीतिक वनवास में गुजार दिये हैं। लेकिन आज उन्हें राज्यमंत्री बनाया गया। उन्होंने राज्यमंत्री के रूप में शपथ ली। 2002 का चुनाव हारने के बाद से 2016 में राज्यसभा सदस्य बनने तक पार्टी और प्रदेश के राजनीतिक समीकरणों के चलते उनके सितारे गर्दिश में रहे लेकिन इस दौरान एक पल के लिए भी अपना धैर्य नहीं खोया। अब केन्द्रीय मंत्रीमंडल में उनकी ताजपोशी को धैर्य का इनाम माना जा रहा है।
साल-2002, शिवप्रताप शुक्ल के राजनीतिक कॅरियर का सबसे खराब दौर लेकर आया था। उसके पहले वह कल्याण सिंह, कल्याण-मायावती और राजनाथ सिंह की सरकारों में तीन बार कैबिनेट मंत्री रह चुके थे। सदर सांसद और वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कुछ मुद्दों पर मतभेद के चलते शिवप्रताप को 2002 के चुनाव में जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा।
योगी समर्थित उम्मीदवार डा.राधा मोहन दास अग्रवाल ने उन्हें हरा दिया। पर हार के गम को उन्होंने कभी भी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया।मृदुभाषी और मिलनसार शिवप्रताप के रिश्ते धीरे-धीरे योगी आदित्यनाथ से भी पहले जैसे प्रगाढ़ हो गये। यही नहीं पिछले साल जब राज्यसभा सदस्य के रूप में नामांकन की बारी आई तो डा. अग्रवाल ही उनके प्रस्तावक बने। जीत के बाद मंदिर में योगी आदित्यनाथ ने उन्हें गले लगा लिया। धैर्य की इसी कुंजी से शिवप्रताप शुक्ल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दिल और कैबिनेट में भी जगह बनाने में कामयाब रहे।गोरखपुर से 1989 में कांग्रेस के सुनील शाही को हराकर पहली बार विधानसभा में पहुंचे। 1989, 1991, 1993 और 1996 में लगातार गोरखपुर से विधायक चुने गये। तीन बार कैबिनेट मंत्री बने।
राजनीतिक कॅरियर: 1970 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से राजनैतिक कॅरियर की शुरुआत हुई। 1981 में भाजयुमो के क्षेत्रीय मंत्री बने। इमरजेंसी में मीसा के तहत गिरफ्तार हुये। करीब 19 महीने जेल में रहे। 2012 में भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष बने।