दशमी में करें शमी की पूजा मिलेगा लाभ

 

फीचर डेस्क। विजय दशमी इस बार यह 30 सितंबर को मनाई जाएगी। दशमी तिथि 29 सितंबर की रात्रि 9.22 बजे से लग रही है, जो 30 सितंबर की रात्रि 11.01 बजे तक रहेगी।
ज्योतिषाचार्य पं. संजय पांडे के अनुसार महानवमी व्रत 29 सितंबर को होगा। व्रत का पारण दशमी पर शुक्रवार की रात 9.22 बजे के बाद किया जा सकता है। जबकि उदया मानने वाले 30 सितंबर की सुबह पारण करेंगे। नवरात्र होम आदि शुक्रवार रात 9.22 से पूर्व नवमी में ही कर लेना चाहिए। नवमी में ही चंडा देवी का पूजन- बलि आदि करना श्रेयस्कर है। जबकि 30 को दुर्गा प्रतिमाएं विसर्जित की जाएंगी। विजय दशमी आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी को श्रवण नक्षत्र का संयोग होने पर मनाई जाती है। इस बार श्रवण नक्षत्र 30 सितंबर की शाम 5.03 बजे लगेगा। पहले इस दिन राज्यवृद्धि और जय की कामना वाले राजा विजय काल में प्रस्थान करते थे। आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी में शाम को विजय तारा उदय होने के समय विजय काल रहता है। इस बार विजय दशमी का विजय मुहूर्त दिन में एक बजकर 58 मिनट पर आ रहा है, जो दो बजकर 24 मिनट तक रहेगा। इस मुहूर्त में जो भी कार्य किया जाए उसमें विजयश्री अवश्य प्राप्त होती है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने पंपापुर के जंगल की समस्त वानरी सेना संग आश्विन शुक्ल दशमी की श्रवण नक्षत्र वाली रात्रि प्रस्थान कर लंका नगरी पर चढ़ाई की थी। जिसमें रावण का नाश व भगवान श्रीराम की विजय हुई। इस दिन शमी पूजन का भी अत्यधिक महत्व शास्त्रों में वर्णित है।
शमी समयते पापम्, शमी शत्रु विनाशनी। अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियवादिनी। इसका अर्थ है कि हे शमी तू पापों का नाश और शत्रुओं को नष्ट करने वाले हो। तूने अर्जुन के धनुष को धारण किया और रामचंद्र को प्रिय है। शमी वृक्ष का महत्व त्रेता सहित द्वापर युग में रहा है। निर्वासित पांडवों ने राजा विराट की नगरी में वेश बदल कर जाने से पहले अपने शस्त्रों को शमी वृक्ष में छिपा दिया था। जिस समय शस्त्रों की रक्षा करने के लिए उत्तर कुमार ने अर्जुन को साथ लिया, तब अर्जुन ने उसी शमी वृक्ष से अपना धनुष उठाया था। देवताओं की तरह शमी वृक्ष ने पांडवों के शस्त्रों की रक्षा की थी। श्रीरामचंद्र जी के प्रस्थान के समय भी शमी वृक्ष ने उनसे विजयश्री मिलने की बात कही थी। इस कारण विजय दशमी को शमी वृक्ष के पूजन का महत्व है। तिथि विशेष पर अपराजिता पूजन करने से व्यक्ति हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। इसी दिन नीलकंठ के दर्शन का महत्व है, क्योंकि नीलकंठ को साक्षात भगवान शिव माना जाता है। दर्शन से पापों से मुक्ति के साथ ही चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति होती है।