गुजरात चुनाव: कांग्रेस की युवाओं पर फोकस की रणनीति

 

 

विशेष संवाददाता, अहमदाबाद। कांग्रेस ने गुजरात में शहरी सीटों पर जीत के लिए ऐक्शन प्लान बनाया है। शहरों में पार्टी की खास मौजूदगी नहीं है। इस स्ट्रैटिजी के तहत कॉलेजों और प्रफेशनल इंस्टिट्यूट्स में छात्रों और युवा वोटरों को ध्यान में रखते हुए कैंपेन चलाए जाएंगे। पार्टी 87 शहरी और अद्र्धशहरी विधानसभा क्षेत्रों में वॉर्ड लेवल पर 100 बैठकें करेगी और बूथों का माइक्रो मैनेजमेंट करेगी। स्ट्रैटिजी तैयार करने से पहले कांग्रेस के अंदर चर्चा हुई। इससे यह बात निकली कि गुजरात चुनाव में जीत के लिए पार्टी को 67 शहरी और 20 अद्र्धशहरी विधानसभा सीटों पर ध्यान देना होगा। अभी 46 शहरी सीटों में कांग्रेस के पास सिर्फ 4 हैं, जबकि 42 पर बीजेपी का कब्जा है। अहमदाबाद, सूरत, राजकोट, गांधीनगर, वड़ोदरा और भावनगर जैसे शहरी इलाके बीजेपी के पास हैं। उसने 2012 विधानसभा चुनावों में सूरत की 16 में से 15, अहमदाबाद की 17 में से 15, राजकोट की 4 में से 3, गांधीनगर की दोनों सीटों, वड़ोदरा की सभी 5 और भावनगर की दोनों सीटों पर जीत हासिल की थी।

कांग्रेस इस प्लान के तहत युवा वोटों को अपने पाले में करना चाहती है। उसने इसके लिए अलग-अलग कैंपेन तैयार किए हैं। शिक्षा का निजीकरण, महिला छात्रों के बीच स्कूल-कॉलेज छोडऩे की उच्च दर, महंगे प्रोफेशनल कोर्स और बेरोजगारी में बढ़ोतरी जैसी कुछ थीम्स पर आधारित कैंपेन के जरिये स्टूडेंट्स को पोलिंग बूथ पर लाने की कोशिश की जाएगी।कांग्रेस के एक सीनियर नेता ने बताया, हमने जो कैंपेन मटीरियल तैयार किया है, उसे कॉलेजों और प्रफेशनल इंस्टिट्यूट्स में बांटा जाएगा। गुजरात मॉडल की हकीकत को सामने लाया जाएगा। महिलाओं के ड्रॉप आउट यानी कॉलेज या स्कूल में पढ़ाई छोडऩे के मामले में 21 राज्यों में गुजरात का स्थान 20वां है। हम इस बात को सामने लाएंगे कि बीजेपी महिला विरोधी है। हाल में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी अपने गुजरात दौरे में कहा था कि आरएसएस महिलाओं को अहमियत नहीं देता।कांग्रेस पार्टी पहली बार अहमदाबाद, सूरत, वड़ोदरा और राजकोट में खासतौर पर युवाओं और स्टूडेंट वोटरों के लिए वॉर्ड लेवल पर बैठक करेगी। कांग्रेस नेता ने कहा, ’18 से 30 साल के युवाओं को हम टारगेट करेंगे। कैंपेन में फोकस शहरी सेंटरों पर होगा। हम बताएंगे कि किस तरह से कॉलेजों में 75 फीसदी कोर्स का निजीकरण कर दिया गया है। सभी नए कोर्स सिर्फ खुद से फंडिंग के जरिये उपलब्ध हैं। इससे पढ़ाई महंगी हो गई है। इतना ही नहीं, पढ़ाई पर भारी-भरकम रकम खर्च करने के बाद भी युवा रोजगार के लायक नहीं हैं।’