दलाईलामा बोले: पुस्तकालयों से आयेगी विश्व में शांति

सारनाथ। शांति की कामना से दुनिया भर में मंदिरों-विहारों का निर्माण किया जा रहा है। मैं कहता हूं कि इसकी जगह पुस्तकालयों की स्थापना होनी चाहिए। विश्व में शांति केवल शिक्षा से संभव है। भारतीय मनीषियों ने हजारों वर्षों से मानव मन के रूपांतरण की दिशा में कार्य किया है। आज संपूर्ण विश्व को इसी भारतीय ज्ञान-विज्ञान की आवश्यकता है। यह कहना है तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा का। वे शनिवार को सारनाथ स्थित तिब्बती उच्च शिक्षा संस्थान में भारतीय दार्शनिक प्रस्थानों एवं आधुनिक विज्ञान में मन की अवधारणा विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।
परम पावन ने कहा कि बीती सदी में दुनिया भर के वैज्ञानिकों का शोध वाह्य जगत की खोज पर केंद्रित था। हाल के कुछ वर्षों में पाश्चात्य देशों के वैज्ञानिकों ने भी मनुष्य की आंतरिक प्रवृत्तियों पर शोध को प्रमुखता देनी शुरू की है। भारतीय ज्ञान विज्ञान में सदा से इसी चिंतन को महत्व दिया है। उन्होंने कहा कि युद्ध, लड़ाई, झगड़ा, ये सभी शब्द कहीं न कहीं से हिंसा के परिचायक हैं। इन शब्दों की जड़ में क्रोध और घृणा का वास है। हमें अपने मन-मस्तिष्क में प्रेम और करुणा की स्थापना करनी होगी तभी संसार में शांति की स्थापना संभव है। जब तक हमारा अंतर्मन शुद्ध और शांत नहीं होगा तब तक हम बाहरी जगत में शांति की स्थापना और अनुभव से वंचित रह जाएंगे। हमनें अपनी बुद्धि और अपने ज्ञान का सही दिशा में उपयोग नहीं किया। ग्लोबल वार्मिंग भी इसी का परिणाम है। हमारी नकारात्मक सोच ने संपूर्ण ब्रह्मांड को अव्यवस्थित किया है। हम दुनिया के किसी भी हिस्से में रहते हों लेकिन मानवता के नाते हम एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। दुनिया के किसी भी हिस्से में कोई दुखी है तो हमें उसके लिए प्रार्थना करनी चाहिए।

दुनिया के विभिन्न देशों से आए वैज्ञानिकों और संतों ने भी इस गूढ़ विषय पर अपना-अपना पक्ष रखा। सम्मेलन में विषय प्रवर्तन करते हुए संस्थान के कुलपति प्रो. गेशे नवांग समतेन ने कहा कि यह सम्मेलन अनूठा है। यह पहला अवसर है जब भारतीय ज्ञान परंपरा की सांख्य, वेदांत, न्याय, वैशेषिक, बौद्ध और जैन परंपराओं के विद्वानों और साधकों के बीच एक मंच पर संवाद हो रहा है। आधुनिक विज्ञान और भारतीय ज्ञान परंपरा में मन की अलग-अलग अवधारणाओं पर वृहद मंथन किया जा रहा है।