यूपी में बीजेपी का नया दांव: 17 पिछड़ों को एससी का दर्जा

लखनऊ। यूपी की भाजपा सरकार 17 अतिपिछड़ी जातियों को एससी में शामिल करने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजने पर विचार कर रही है। केन्द्र सरकार को इन जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का फैसला लेना है। भाजपा सरकार के इस दांव के पीछे पार्टी हाईकमान के निर्देश पर माना जा रहा है।
भाजपा नेता अनिल राजभर ने प्रदेश सरकार से इन जातियों को एएसी में शामिल करने की मांग की है। मुख्यमंत्री ने बजट सत्र के दौरान विधानसभा में अति पिछड़ी जातियों के विकास पर जोर देने का दावा किया था। गौरतलब है कि सपा इसका पुरजोर समर्थन करती रही है, जबकि बसपा इसके खिलाफ है।
सत्रह जातियों निषाद, बिन्द, मल्लाह,केवट, कश्यप, भर, धीवर, बाथम, मछुआरा, प्रजापति,राजभर, कहार, कुम्हार, धीमर, मांझी, तुरहा तथा गौड़ को दलित जातियों में शामिल करने की मांग पुरानी है। सपा इसें समय समय पर हवा देती रही है। 2006 में तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार ने इन जातियों को अनुसूचित जाति घोषित कर प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश दे दिये। लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। सपा सरकार ने दिसम्बर 2016 में इन्हे अनुसूचित जाति में शामिल करने के प्रस्ताव को प्रदेश कैबिनेट की मंजूर करते हुए केंद्र सरकार को संस्तुति भेजी थी। उप्र में अनुसूचित जाति जनजाति में 70 से अधिक जातियां है। जिन्हे 21 प्रतिशत आरक्षण मिलता है।
राष्ट्रीय निषाद संघ व नेशनल एसोसिएशन ऑफ फिशरमेन के राष्ट्रीय सचिव चौधरी लौटन राम निषाद ने कहा है कि 12.91 प्रतिशत निषाद मछुआ समुदाय की मल्लाह, केवट, बिन्द, मांझी, तुरहा, गोडीया, रैकवार, धीवर, कश्यप सहित अत्यन्त पिछड़ी राजभर, चौहान, काछी, कोयरी, माली, नाई, बारी, बढई, लोहार, तेली, किसान आदि की आबादी उप्र में 33.34 प्रतिशत होने के बावजूद भी इन्हें अभी तक समुचित सम्मान नहीं मिला।
अति पिछड़ी जातियों के एसोसिएशन के नेता डा. राम सुमिरन विश्वकर्मा ने कहा कि आजादी के पहले गवर्नमेन्ट ऑफ इण्डिया एक्ट 1919 के अनुसार सभी हिन्दू शूद्र जातियों को शिक्षा व नौकरियों में ब्रिटिश सरकार द्वारा आरक्षण दिया गया था जो 1921 तक मिलता रहा, लेकिन गवर्नमेन्ट ऑफ इण्डिया एक्ट 1935 के बाद सछूत हिन्दू पिछड़ी जातियों का आरक्षण खत्म हो गया और इस एक्ट के तहत अछूत शुद्र जातियों को शिक्षा, नौकरी व राजनीति में जनसंख्यानुपात में आरक्षण दिया गया।
सामाजिक व शैक्षणिक रूप से ओबीसी का अध्ययन करने के लिए काका कालेलकर आयोग (1953-55) व मण्डल कमीशन (1978-80) बना लेकिन इनकी सिफारिशों को लागू नहीं किया गया। मण्डल कमीशन के तहत शिक्षा व नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था में अति पिछड़ों के लिए अलग व्यवस्था देने का सुझाव दिया गया था।