खुद को साबित करने की लड़ाई लड़ रहे हैं राजभर

लखनऊ। बेबाक बोल से चर्चाओं में बने रहने वाले सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ऐसे नेता हैं जिन्होंने टैंपो चालक से उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री तक का सफर तय किया है। संघर्ष ऐसा कि बगैर किसी संसाधन के अपनी राजनीतिक पार्टी खड़ी की। करीब डेढ़ दशक के संघर्ष के बूते राजभर अब प्रदेश में अति पिछड़ों के नेता के रूप में तेजी से पहचान बनाने की कोशिशों में जुटे हैं। पूर्वांचल की दर्जन भर सीटों पर अति पिछड़ा वर्ग के वोट को प्रभावित करने का माद्दा रखते हैं।
ओम प्रकाश राजभर इस आम चुनाव में प्रदेश में चर्चा के केंद्र में हैं। भाजपा द्वारा अब तक समझौते में एक भी सीट नहीं दिए जाने से गम के साथ ही गुस्से में भी हैं। भाजपा इन्हें लोकसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी खड़े करने का मौका देगी या नहीं इस पर अभी कुछ भी राय कायम नहीं की जा सकती है। अब इनके अगले कदम पर भाजपा के साथ ही विपक्ष के नेताओं की नजरें भी लगी हैं। राजभर ने 27 अक्तूबर 2002 को सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का गठन किया। गठन के साथ ही पीले झंडे के साथ इन्होंने पूरे पूर्वांचल में सभाएं शुरू की। लगातार सभी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में पार्टी की तरफ से प्रत्याशी खड़े करते रहे। 2012 विधानसभा और 2014 लोकसभा चुनाव लोकसभा में इन्होंने मुख्तार अंसारी की पार्टी से समझौता कर पूर्वांचल की कई सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए थे। राजभर तथा अति पिछड़ी जातियों में इनकी पैठ को देख ही 2017 विधानसभा में भाजपा ने इनके साथ समझौता किया। आठ सीटें मिलीं जिनमें से उनके साथ ही उनकी पार्टी से चार विधायक चुने गए।ओम प्रकाश प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग की 27 फीसदी आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटने का आंदोलन चलाए हुए हैं। खुद को अति पिछड़ा वर्ग का नेता साबित करने में जुटे हैं। इसके लिए इन्होंने प्रदेश के सभी जिलों में रैलियां और सभाएं की। लगातार अति पिछड़ों के साथ बैठक भी करते हैं। इनके बार-बार कहने पर प्रदेश सरकार ने इसके लिए सामाजिक न्याय समिति बनाई थी। रिपोर्ट प्रदेश सरकार के पास पहुंच चुकी है। इस आरक्षण को तीन हिस्से में बांटने की सिफारिश की गई है। सरकार ने इस रिपोर्ट को लागू किया तो ति पिछड़ी और सर्वाधिक पिछड़ी जातियों को ओबीसी आरक्षण में अलग से आरक्षण मिलने लगेगा।