जीडीए लिपिक की तनाव में मौत

श्यामल मुखर्जी,गाजियाबाद। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के प्रशासन अनुभाग में कार्यरत कर्मचारी परमानंद शर्मा की स्थानीय अस्पताल में मृत्यु हो गई है। जीडीए स्टाफ में चल रही चर्चा के मुताबिक लिपिक परमानंद शर्मा कपूरी पुरम में स्थित अपने मकान को जीडीए द्वारा बेचे जाने के लिए नीलामी में लगाए जाने से पिछले कई दिनों से मानसिक रूप से तनाव में गुजर रहा था । सूत्रों के अनुसार मानसिक तनाव के चलते परमानंद शर्मा को शरीर पर फालिज का अटैक भी हो गया था लेकिन अचानक स्वास्थ्य बिगडऩे पर परिवार के लोगों ने उसे स्थानीय हॉस्पिटल में इलाज के लिए एडमिट कराया था परंतु आज सुबह तनाव के कारण लिपिक की मौत हो गई। जीडीए कर्मचारी की मौत की खबर मिलते ही कपूरी पुरम स्टाफ मकानों में निवास कर रहे जीडीए कर्मचारियों में रोष उत्पन्न हो गया। वहां के निवासियों का कहना है कि तत्कालीन उपाध्यक्ष संतोष यादव द्वारा इन मकानों को जीडीए कर्मचारियों को किराए पर आवंटित किया गया था मगर वर्तमान में तैनात अधिकारियों द्वारा कर्मचारियों को किराए पर आवंटित 100 से अधिक मकानों को नीलामी में बेचे जाने के लिए रख दिया गया जिसकी नीलामी19 दिसंबर और 26 दिसंबर को की जानी थी । कर्मचारियों को आवंटित इन मकानों को नीलामी में लगाए जाने से वहां रहने वाले कर्मचारी पिछले कई दिनों से आक्रोश में थे और उन्होंने अपनी पीड़ा को उच्च अधिकारियों के समक्ष रखा था मगर इस मामले में अधिकारियों द्वारा कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया गया जिसको लेकर वहां रहने वाले स्टाफ कर्मचारी उन्हें आवंटित मकानों के छीने जाने के डर से तनाव में आ गए थे। कपूरी पुरम में निवास कर रहे कर्मचारियों का आरोप है कि प्राधिकरण में इन दिनों दीपक तले अंधेरा वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। जहां एक और प्राधिकरण लोगों को घर की छत मुहैया कराने का दावा करता है वही दूसरी ओर जीडीए अब अपने ही कर्मचारियों की छत छीने जाने की मुहिम में लगा हुआ है। दरअसल गाजियाबाद विकास प्राधिकरण में एक नई प्रथा को जन्म दिया हुआ है । यहां सहायक अभियंता स्तर के कर्मचारी को संपत्ति प्रभारी का प्रभार दे दिया गया है । अब सहायक अभियंता ठहरे टेक्निकल आदमी उन्हें प्रशासनिक कार्य का क्या ज्ञान । बस यही धूल में ल_ चल रहा है अपने नंबर बढ़ाने के लिए उपाध्यक्ष महोदय को नई नई स्कीम बताते रहते हैं। एक तरफ तो प्राधिकरण कार्यालय मधुबन बापूधाम में शिफ्ट किए जाने का फैसला/लोकार्पण हो गया है दूसरी तरफ उच्च अधिकारी अपने कार्यालयों का रिनोवेशन कराने में बेतहाशा पैसा खर्च कर रहे हैं। इसी नंबर बनाने की होड़ में प्राधिकरण के फंड का एवं कर्मचारी हितों का नाश हो रहा है जिसका कर्मचारी विरोध कर रहे हैं मगर उच्च अधिकारियों पर इसका कोई असर नहीं है । यह बिल्कुल ऐसा ही उदाहरण है कि रोम जल रहा था और नीरो बंशी बजा रहा था।