मेरी हिमाचल यात्रा भाग 3

अमृतांशु मिश्र। काजा में हम लोग रात की थकान मिटाने के बाद करीब 8 बजे सुबह सोकर उठे। मेरे साथी गणों का प्लान था कि काजा से हम लोग पिन वैली चलें मगर मेरा मन पहाड़ और ऊबड़ खाबड़ रास्तों से ऊबने लगा था इसलिए मैं पिन वैली नहीं गया मगर मेरे साथी जन चले। तब तक हमलोग होटल से नहा धोकर हिमालयन कैफे में नाशते के लिए गये। काजा में यही रेस्ट्रा सबसे अच्छा व बड़ा है। यहां हमेशा बाइकरों की भारी भीड़ रहती है क्योंकि मनाली जाने और कुंजुम पास की चढ़ाई करने से पहले यहीं सबकुछ मिलता है। बाइकर भी यहां ईंधन भरवाने के लिए रुकते हैं। काजा में सुबह के समय मौसम तो साफ था और धूप भी काफी तेज थी जोकि आंखों में चुभती है। मगर इसके बाद भी हवा में ऐसी ठंड थी कि ज्यादा देर बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था। हिमालयन कैफे में हमलोगों ने आलू का पराठा और चाय मंगवाई। यहां एक पराठा 100 रुपये में है। खैर हम लोगों ने नाश्ता किया और थोड़ा घूमकर आने के बाद होटल से चेकआउट करने के लिए सामान पैक करना शुरू कर दिया। बता दूं कि काजा स्पीति का प्रमुख केन्द्र है। सामान पैक करने के बाद हमलोग होटल से चेकआउट करके बाहर आ गये और अपनी कार में सामान रख दिया। तब तक हमारे साथी भी पिन वैली से घूमकर आ गये। हम लोग दोपहर में अपने दूसरे पड़ाव लोसर के लिए निकल पड़े। काजा से लोसर का रास्ता कुछ देर तक मन को बड़ा सुकून देता है मगर कच्चा रास्ता शुरू होते ही असली रोमांच भी शुरू हो जाता है। पहाड़ के कच्चे टेढ़े रास्ते और अगल बगल स्पीति नदी और बर्फ के पहाड़ मन को बहुत लुभाते हैं मगर जब यह पता चलता है कि हम करीब 14 हजार फीट की ऊंचाई पर हैं और गाड़ी से बाहर नजर पड़ते ही जान सूख जाती है। वैसे एक बात तो मैं जरूर कहूंगा कि यह इलाका कमजोर दिल वालों के लिए नहीं है। खासकर उनके लिए जिनको ऊंचाई आदि से डर लगता हो। लोसर के रास्ते में कई दर्शनीय स्थल मिले कुछ पहाड़ों की और नदियों की हम सबने फोटो ली। फोटोशूट के बाद अपने पड़ाव की ओर फिर चल दिए मगर मन उन्हीं पहाड़ों के बीच अटका हुआ था। ऐसा लग रहा था कि कितना ज्यादा से ज्यादा इन नजारों को हम अपनी आंखों में कैद कर लें। मगर वक्त की कमी और लम्बे सफर में यह संभव नहीं है। बता दूं कि काजा से लोसर करीब 60 किमी है मगर ऊंचाई पर होने के अलावा पथरीले और डरावने रास्ते शरीर को पूरी तक थका देते हैं। काजा हो या स्पीति घाटी यहां घूमने का मौसम मई से शुरू होता है जोकि अगस्त तक चलता है। फिर यहां बर्फबारी शुरू हो जाती है जिसके बाद रास्ते बंद हो जाते हैं। करीब 6 से 7 घंटे की यात्रा के बाद हम शाम के समय लोसर पहुंच गये। लोसर में वैसे होटल तो कम ही हैं मगर होम स्टे जरूर हैं। यहां हम सिंगा लिंग होम स्टे में रुके जहां के मालिक तांजिन आनंद ने आदरपूर्वक ठहराया। आनंद ने बताया कि आज उनके घर में शादी है इसलिए पड़ोस में स्थित ढाबे पर खाना मिलेगा। खैर हम लोग ढाबे पर दाल-रोटी और आलू की सब्जी खाकर कमरे में आकर सो गये। रात को हमारे साथी गणों का प्लान बना कि चन्द्रताल जाना है मगर मौसम ने साथ नहीं दिया और वहंा का प्लान कैंसल करना पड़ा।

क्रमश: