मेरी हिमाचल यात्रा भाग 5

अमृतांशु मिश्र। विलासपुर के पंचवटी होटल से सुबह 7 हमलोग चंडीगढ़ के लिए रवाना हो गये। करीब 4 घंटे की यात्रा के बाद एक ढाबे पर रुककर हमलोग नाशता किए। यहां एक ढाबा है जोकि अपनी चटनी के लिए जाना जाता है। आलू के पराठे के साथ इनकी हरी चटनी काफी स्वादिष्टï है। इस तरफ से गुजरने वाले सभी लोगों को यहां का पता है। हरी चटनी वाला ढाबा नाम से ज्यादा मशहूर है। नाशता करने के बाद दोबारा यात्रा शुरू कर दी गयी। दोपहर में करीब 1 बजे के लगभग हमलोग चंडीगढ़ पहुंच गये। यहां पर प्लान बना कि कुछ सामान आदि खरीदना है। खैर साथीगण और मैं भी इस अत्यंत बड़े मॉल में प्रवेश कर गये। चंडीगढ़ का यह मॉल भव्य है। यहां खरीदारी करने के बाद हमलोग फिर हरिद्वार का रास्ता पकड़ लिए। रास्ते में रुककर एक ढाबे पर कुछ हल्का फुल्का खाया गया। फिर से हमलोग गाड़ी में सवार होकर सहारनपुर होते हुए हरिद्वार की सीमा में दाखिल हो गये। यहां पहुंचते-यहां पहुंचते करीब शाम के 7 बज चुके थे। सभी लोग काफी थक गये इसलिए जल्दी से खाना खाकर हमलोग सो गये। जहां से हमलोगों ने यात्रा शुरू की थी फिर हम अपने स्थान पर सकुशल पहुंच गये इसके लिए महादेव को नमन किया गया क्योंकि जिन रास्तों पर हमलोग निकले थे वह कोई आसान नहीं था। इस पूरी यात्रा में हमारे साथियों का पूरा सहयोग रहा क्योंकि अकेले ऐसी यात्रा पर जाना संभव नहीं था। फिलहाल इस हिमाचल यात्रा में काफी कुछ सीखने, देखने को मिला। विपरीत हालातों में भी किस प्रकार से जीवन की लड़ाई लड़ी जा सकती है। करीब 10 दिनों के हिमाचल भ्रमण के दौरान लगभग 3 हजार किलोमीटर का सफर कार से तय किया गया। जिसमें भरपूर रोमांच की कोई चीज नहीं बची। नदी, पहाड़, जंगल, खराब सडक़ें और भी बहुत कुछ। हिमाचल यात्रा के दौरान पहाड़ों के बारे में बहुत से जानकारियां भी मिलीं जो शायद किताबों में नहीं मिलतीं हैं। र्दुगम पहाड़ों के बीच वहां के निवासियों का रहन-सहन, भोजन और सांस्कृतिक गतिविधियां काफी कुछ सिखाती हैं। हिमाचल की स्पीति घाटी को सुनसान माना जाता है क्योंकि यहां पर दूर-दूर तक केवल पहाड़ और नदी ही देखने को मिलती है। किसी इंसान से भेंट करना काफी मुश्किल है। आते-जाते सैलानी इक्का दुक्का ही मिलते हैं। मैंने इस यात्रा से यही सीख ली कि यदि कभी ऐसी जगहों पर जाना हो तो बिना तैयारी नहीं जाना चाहिए। क्योंकि यहां अपनी मदद स्वयं अपने आप को ही करनी है। जहां तक धार्मिक गतिविधियों की बात है तो यहां दलाई लामा ही सर्वोच्च हैं। इन्हीं की फोटो घरों और बाजारों में देखने को मिलेगी। बौद्ध धर्म का यहां खासा प्रभाव है। मुझे एक बात सबसे अच्छी लगी कि इन धार्मिक स्थलों पर कोई सामान बेचता नहीं मिलेगा, किसी प्रकार का प्रसाद नहीं चढ़ेगा। कोई भेदभाव नहीं है सभी समान हैं।
किसी धर्म को आगे बढ़ाने में इसका काफी महत्व है। खैर यात्रा समाप्त हुई। अंत भला तो सब भला। अगली यात्रा का वृतांत जल्द ही फिर आपके सामने प्रस्तुत करूंगा, तब तक के लिए शब्बा खैर।