लोकायुक्त नियुक्ति का विवाद मीडिया की देन: जस्टिस रवीन्द्र

ravindrasingh
संवाददाता,
इलाहाबाद। यूपी में लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर सरकार और राजभवन के बीच लगातार चल रही खींचतान की खबरों को सिरे से नकारते हुए हाईकोर्ट के जस्टिस रविंद्र सिंह ने कहा है कि लोकायुक्त का पद एक संवैधानिक पद है और इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। एक औपचारिक वार्ता में उन्होंने कहा कि यूपी लोकायुक्त और उप लोकायुक्त एक्टए 1975 के प्रावधानों के तहत लोकायुक्त कि नियुक्ति की जाती है और सरकार इस दिशा में कार्य कर रही है। अपनी नियुक्ति को लेकर चल रहे विवादों को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि विवाद तो केवल मीडिया कि देन है। मुझे तो यह भी नहीं मालूम कि सरकार क्या कर रही है और किनके नाम है।
बातचीत के दौरान यह पूछे जाने पर कि क्या हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने उनके नाम पर सरकार को आपत्ति जताई है। इस पर उन्होंने कहा कि यह एक गोपनीय प्रक्रिया होती है और इसके बारे में उन्हें मालूम नहीं है। लोकायुक्त कि नियुक्ति के लिए अपनाई जाने वाली कानूनी प्रक्रिया के बारे में जस्टिस सिंह ने कहा कि यूपी लोकायुक्त और उपलोकयुक्त एक्टए 1975 में दिए गए प्रावधानों के मुताबिकए यूपी सरकार नेता विपक्षी दल के साथ मीटिंग कर हाईकोर्ट के रिटायर हुए जजो में से उनके नामों पर एक.एक कर विचार करती है। विचार के बाद जिस किसी नाम पर आपस में सहमति बने उस नाम को चीफ जस्टिस कि भी सहमति के लिए भेजा जाता है।उन्होंने कहा कि लोकायुक्त का पद एक संवैधानिक पद है और सरकार कानून के दायरे में रहकर ही अपने कर्तव्यों का पालन कर किसी को भी लोकायुक्त नियुक्त करेगी। इस पर मीडिया अथवा किसी अन्य को अकारण विवाद पैदा करना उचित नहीं माना जा सकता। दूसरी ओर कानून के जानकारों का कहना है कि लोकायुक्त और उपलोकयुक्त एक्टए 1975 में दिए गए प्रावधानों के मुताबिकए लोकायुक्त का अधिकार बहुत ही सीमित है। लोकायुक्त को किसी के भी खिलाफ आदेश पारित कर कार्रवाई करने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसे में शिकायत किसी मंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार की हो अथवा किसी अधिकारी के खिलाफ। लोकायुक्त केवल उसकी निस्पक्ष जांच कराकर अपनी संस्तुति रिपोर्ट शासन को भेज सकता है। एक्ट के अंतर्गत लोकायुक्त को कार्रवाई खुद करने का कोई अधिकार नहीं है। सरकार लोकायुक्त कि संस्तुति रिपोर्ट पर कार्रवाई करे अथवा न करे यह उसका विवेक है।