बीजेपी का फंडा: एकै साधे सब सधे

विशेष संवाददाता, लखनऊ। योगी सरकार ने मंत्रिमंडल विस्तार से एक साथ कई मोर्चों पर फतह की कोशिश की है। खासतौर पर पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सहयोगी रहे सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के अलग होने से संभावित नुकसान की भरपाई करने की कोशिश भी विस्तार में है। राजभर के सहयोगी दलों के नेताओं के सामने अब प्रजापति, बिंद, बारी, पाल बिरादरी को सहेजे रखने की चुनौती होगी। ग्यारह दलों के भागीदारी संकल्प मोर्चा को लेकर आगे बढ़ रहे सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर के गठबंधन में जाति आधारित दल अधिक हैं। प्रेमचंद्र प्रजापति की भागीदारी संकल्प पार्टी (पी), राम सागर बिंद की भारत माता पार्टी, बाबू राम पाल की राष्ट्र उदय पार्टी, रामकरन कश्यप की भारतीय वंचित समाज पार्टी, सतीश बंजारा की भारतीय सुरक्षा पार्टी, राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी, रामनरेश बारी की जनहित समाज पार्टी के साथ ही बाबू सिंह कुशवाहा, असदुद्दीन ओवैसी जैसे बड़े नेताओं के दल भी शामिल हैं। यह मोर्चा अति पिछड़ी जातियों राजभर के अलावा प्रजापति, बिंद, बारी, पाल, कश्यप, बंजारा, अर्कवंशी जैसी जातियों के बीच तेजी से पैठ बनाने में जुटा हुआ है। प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा चुनाव से चंद माह पूर्व किए गए मंत्रिमंडल विस्तार में प्रजापति, बिंद, गौड़, खटीक को शामिल कर भाजपा ने राजभर के मोर्चा की मार को बेदम करने का काम किया है। अब भाजपा के मंत्रियों की टीम में बिंद, गुर्जर, गड़रिया, निषाद, चौहान, सैनी, लोध जैसी पिछड़ी जातियों का भी प्रतिनिधित्व है जो भागीदारी संकल्प मोर्चा में शामिल जातीय दलों के काट का काम करेगा। 2022 विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल में वोट की बड़ी ताकत वाली तीन जातियों की गोलबंदी बड़ा मायने रखेगी। इनमें से दो जातियां कुर्मी और निषाद (मझवारा) जाति की राजनीति करने वाले दल व इनके नेता भाजपा के साथ गठबंधन में हैं। तीसरी राजभर बिरादरी जो कि पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की सहयोगी थी इस बार भाजपा से दूर है। पूर्वांचल में राजभरों की ताकत सभी दल जानते हैं। जिसे देखते हुए भाजपा ने कई राजभर नेताओं को पार्टी में आगे बढ़ाया है, सपा भी स्थापित राजभर नेताओं को जोड़ रही है। पूर्वांचल से अवध तक 90 सीटों पर राजभर बिरादरी की अच्छी संख्या है। इन सीटों पर राजभर मतदाताओं की तादद 25 से लेकर 90 हजार तक है। पूरे प्रदेश में राजभर बिरादरी की कुल संख्या 4.5 फीसदी है जबकि पूर्वांचल के तमाम जिलों में इस बिरादरी की संख्या 18 फीसदी तक है।