गायत्री प्रजापति: अर्श से फर्श तक का सफर

आशुतोष मिश्र, अमेठी। सपा शासनकाल में खनन और परिवहन विभाग के मंत्री रहे गायत्री प्रसाद प्रजापति का राजनीतिक करियर एक ही पारी के बाद खतरे में पड़ गया। आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के बाद उनके समर्थकों में भारी निराशा दिखी। समाजवादी पार्टी तो गिरफ्तारी के समय से ही उनसे दूरी बनाए हुए है। गायत्री कभी सपा के कद्दावर नेताओं में शुमार किए जाते रहे हैं। अखिलेश यादव की सरकार में वह अकेले ऐसे मंत्री रहे, जिन्हें इतनी जल्दी तरक्की मिली थी। साल 2013 में वह सिंचाई राज्यमंत्री बने तो अगले ही साल 2014 में कैबिनेट मंत्री के रूप में प्रोन्नत होकर भूतत्व एवं खनिकर्म जैसा अहम विभाग पा गए। इस सियासी पारी पर झंझावात आने के बाद मंत्री पद से छुट्टी हो गई तो परिवहन मंत्री के रूप में वापसी करके उन्होंने अपने विरोधियों को चित कर दिया था। इस पूरे घटनाक्रम के बाद गायत्री अचानक राजनीति के चतुर खिलाड़ी माने जाने लगे थे। राजनीतिक गलियारों में उनका रसूख इतना बढ़ गया था कि वह खुद को प्रजापति समाज के प्रदेश के नेता के तौर पर स्थापित करने में जुट गए थे। उनके ईद-गिर्द खनन विभाग से उपकृत समर्थकों की भीड़ हमेशा दिखती थी। गायत्री साल 2012 में पहली बार सपा के टिकट पर अमेठी से विधायक चुने गए थे। उन्होंने कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे डॉ. संजय सिंह की पत्नी अमिता सिंह को हराया था। हालांकि महज पांच साल में वह राजनीति के अखाड़े से ही बाहर हो गए। दुष्कर्म के मामले में गिरफ्तारी के बाद जेल में रहते हुए भी वह वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनाव और फिर वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में अपनी अहमियत बनाए रखने में तो सफल रहे थे। इलाज के लिए केजीएमयू में भर्ती रहते हुए वह राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय दिखते थे। हालांकि सीबीआई, विजिलेंस और ईडी जैसी जांच एजेंसियों की पूछताछ का सामना भी करते रहे।