दूसरे चरण में लगेगा पता किसमें कितना है दम

चुनाव डेस्क। यूपी में दूसरे चरण का चुनाव दलीय प्रयोगों की एक नई प्रयोगशाला बनने जा रहा है। भाजपा ने सामान्य सीट पर दलित उतार कर नया सामाजिक समीकरण बनाने का प्रयोग किया है। सपा को माय समीकरण के साथ रालोद के हैंडपंप से आस है। बसपा का मुस्लिमों में सेंधमारी कर सपाई समीकरण को भेदने का प्रयास है। वहीं कांग्रेस के हाथ को बरेलवी धर्मगुरु के साथ से कुछ नया होने की उम्मीद है। इन प्रयोगों की परीक्षा 14 फरवरी को होगी, मगर कौन सा ज्यादा सफल रहा, यह रिपोर्ट 10 मार्च को आएगी। पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा को 2017 में इन 55 में से 38 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। सपा-कांग्रेस तब गठबंधन में थे, जिनके हिस्से 17 सीटें आई थीं। जिसमें सपा को 15 और कांग्रेस को 2 सीटें मिली थीं। अब इसे 2019 के लोकसभा चुनाव के लिहाज से देखें तो 11 सांसद इस इलाके से चुनकर जाते हैं। बीते लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा और राष्ट्रीय लोकदल गठजोड़ में थे यानि तब दलित, मुस्लिम और जाट का सामाजिक समीकरण बनाने का प्रयास हुआ था। इन 11 में से 7 लोकसभा सीटें इसी गठबंधन के हिस्से आई थीं और चार भाजपा को मिली थीं। मगर इस बार बसपा गठबंधन में नहीं है। इस बार का चुनाव पहले से कई मानों में अलग है। पश्चिमी यूपी में पहले चरण के चुनाव को देखें तो ज्यादातर सीटों पर भाजपा के मुकाबिल सपा-रालोद गठबंधन दिखाई दिया। इस गठबंधन के मुख्य रूप से जाट-मुस्लिम-यादव समीकरण के हिसाब से भाजपा ने जाट-दलित और गैर यादव ओबीसी का ताना-बाना बुना है। यहां दीगर बात है कि भाजपा ने रिजर्व नौ में से सात सीटों पर जाटव समाज से और सहारनपुर की सामान्य सीट पर भी इसी समाज का प्रत्याशी दिया है। भाजपा के सहयोगी अपना दल के हिस्से आई स्वार सीट को छोड़ दें तो पार्टी ने कोई मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारा है।