रायबरेली विस सीट: विरासत बचाने में लगीं अदिति सिंह

रायबरेली। कांग्रेस का बढ़ रही यूपी की रायबरेली सदर सीट पर सपा, भाजपा और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है। यह विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है। दिवंगत कांग्रेस नेता अखिलेश सिंह यहां से पांच बार विधायक रहे। अखिलेश की बेटी अदिति सिंह इस बार भाजपा की उम्मीदवार हैं, जो कि कांग्रेस की विधायक थीं। अदिति अपने पिता की मृत्यु के बाद पहला चुनाव लड़ रही हैं। वह खुद को ‘पिताहीन बेटी’ बताते हुए अपने पिता की विरासत का दावा करने की कोशिश में हैं। मनीष सिंह चौहान कांग्रेस की विरासत को बचाने की कोशिश करेंगे। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रतिनिधित्व का रायबरेली संसदीय क्षेत्र पार्टी के लिए राज्य की एकमात्र लोकसभा सीट है। कांग्रेस यहां से 10 बार विधानसभा चुनाव और जनता दल दो बार जीत चुकी है। भाजपा और सपा कभी यहां से नहीं जीती है। अखिलेश सिंह कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पर रायबरेली सदर से तीन बार जीते। 2007 में निर्दलीय और 2012 में पीस पार्टी के उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की। वह भले ही कांग्रेस से दूर चले गए, लेकिन कभी भाजपा में शामिल नहीं हुए। हालांकि, उनकी बेटी पिछले साल कांग्रेस विधायक के रूप में चुने जाने के बाद भाजपा में शामिल हो गई थीं। यूएस में पढ़ी-लिखी अदिति सिंह को 2017 में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने चुनावी मैदान में उतारा था। कांग्रेस ने सपा के साथ गठबंधन में रिकॉर्ड 1,28,319 वोटों से सीट जीती थी। अदिति के खिलाफ कांग्रेस के चुनाव लडऩे वाले चौहान की भी राजनीतिक रसूख है। उनके चाचा आरपी सिंह ने एक बार अखिलेश सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा था। दूसरी ओर सपा ने आरपी यादव को मैदान में उतारा है। ब्राह्मणों, कायस्थों और मुसलमानों के प्रभुत्व वाले निर्वाचन क्षेत्र के साथ में यादवों और ओबीसी के बाद ब्राह्मण और मुस्लिम वोट भी निर्णायक होंगे। बीजेपी और कांग्रेस ब्राह्मण वोटों के लिए होड़ कर रहे हैं, जबकि मुसलमानों का एक वर्ग कांग्रेस को वोट दे सकता है, जिससे सपा को नुकसान हो सकता है, जो मुस्लिम-यादव समीकरण पर निर्भर है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह सपा और भाजपा के बीच की लड़ाई है, जिसका कांग्रेस को नुकसान हो सकता है।