खतरनाक हुआ रोडवेज की सबसे हाईटेक बस सेवा वॉल्वो का सफर

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लखनऊ। यूपीएसआरटीसी की हाईटेक वॉल्वो बसों का सफर यात्रियों के लिए अब सुरक्षित नहीं रह गया है। रेलवे की मारामारी से बचने व जिस सुरक्षित व आरामदायक सफर के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम ने सात वर्ष पहले हाईटेक यात्री सुविधाओं से लैस वॉल्वो बसों का संचालन शुरू किया था, अभी निगम प्रबंधन की लापरवाही व रोडवेज मुसाफिरों की सुरक्षा के ऊपर आय-व्यय के गु.ाा-ग.िात को प्राथमिकता देने की वजह से सूबे की यह सबसे अत्याधुनिक बस सेवा सुरक्षित सफर मुहैया कराने से कोसों दूर होती जा रही है। तभी तो किसी प्रकार की माथापच्ची से बचने के चक्कर में ही रोडवेज प्रबंधन ने अपनी वॉल्वो जैसी हाईटेक बस सेवा में ड्राइवर तो कंपनी का लगा रखा है जबकि किराया लेने के लिए निगम के ही कंडक्टर की तैनाती कर रखी है।
ऐसे ड्राइवरों की बेपरवाही की बानगी बीते एक सप्ताह के दौरान कानपुर क्षेत्र में दुर्घटनाग्रस्त हुई दो वॉल्वो बसों को देखने पर मिली। ये बसें लखनऊ के चारबाग टर्मिनस बस स्टेशन से ही दिल्ली को रवाना की गयी थीं। दुर्घटना में कई यात्रियों की असामयिक मृत्यु हो गयी जबकि कई गंभीर रूप से घायल हो गए। वहीं रोडवेज प्रबंधन वॉल्वो बसों के संचालन व्यवस्था की स त मॉनीटरिंग करने के बजाए महज वॉल्वो बस कंपनी के ऊपर १०-१० लाख रुपये का जुर्माना ठोंक कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेता है। यहां पर गौर करने वाली बात यह भी है कि जब प्रदेश की राजधानी से संचालित होने वाली वॉल्वो बसों की मॉनीटरिंग में ऐसी ढिलाई बरती जा रही है तो अन्य डिपो से चलने वाली बसों का क्या हाल होता होगा।

ड्राइवर कंपनी का तो कंडक्टर यूपीएसआरटीसी का…
वर्तमान में प्रदेश की राजधानी लखनऊ व गाजियाबाद डिपो से कुल 40 वॉल्वो बसों का संचालन किया जा रहा है। इसमें से चारबाग व कैसरबाग बस स्टेशनों से कुल 27 वॉल्वो व शेष 13 वॉल्वो बसों का आवागमन गाजियाबाद डिपो से किया जा रहा है। प्रदेश में वॉल्वो बसों की शुरूआत 2008 में 20 बसों से की गयी जो आज 40 के आंकड़े तक पहुंच गयी है। अधिकारियों का कहना है कि आगामी जुलाई के आखिरी दिनों तक 30 वॉल्वो बसें बेड़े में बढ़ायी जाएंगी। वॉल्वो बसें पूरी तरह से अनुबंधित हैं और इसके संचालन में बतौर ड्राइवर की तैनाती तो बस मालिक या संचालनकर्ता द्वारा ही की जाती है जबकि कंडक्टर के लिये यूपीएसआरटीसी अपने कर्मियों की तैनाती करता है। यानि वॉल्वो बसों के स्टेयरिंग की पूरी जि मेदारी बस स्वामी द्वारा तैनात किए गए ड्राइवर के हाथों में होती है, वहीं यात्रियों से महज किराया वसूलने के लिये यूपीएसआरटीसी का कंडक्टर ऑन डï्यूटी रहता है। विभागीय सूत्रों की मानें तो वॉल्वो जैसी हाईटेक बसों के जो ड्राइवर होते हैं, परिवहन निगम प्रबंधन द्वारा न तो उनकी मानसिक और न ही उनका किसी प्रकार का शारीरिक परीक्ष.ा किया जाता है। महज खानापूरी के लिये निगम प्रबंधन के अधिकारी इन ड्राइवरों के लाइसेंसों व कागजात आदि का परीक्ष.ा कर लेते हैं। वहीं इस मुद्दे पर परिवहन निगम मु यालय के मु य प्रधान प्रबंधक (संचालन) एचएस गाबा की मानें तो वॉल्वो बसों के ड्राइवरों का उच्च तकनीकी प्रशिक्ष.ा इनके बंगलुरू कै प में किया जाता है जहां से परीक्ष.ा पास करने के बाद ही इनको वॉल्वो बस चलाने का सर्टिफिकेट प्रदान किया जाता है। इसी की चेकिंग कर निगम प्रबंधन ऐसे ड्राइवरों को वॉल्वो चलाने की जि मेदारी सौंप देता है।
कंट्रैक्ट महत्वपूर्ण कि यात्रियों की जान…
वहीं जब सीजेएम संचालन से यह कहा गया कि सुरक्षित वॉल्वो सफर के मद्देनजर क्यों नहीं ड्राइवर की सीट पर वॉल्वो कंपनी के बजाए निगम प्रबंधन का ही कर्मी तैनात कर दिया जाए तो इसके जवाब में उनका यही कहना रहा कि इस व्यवस्था से तो परिवहन निगम व वॉल्वो कंपनी के बीच हुए कंट्रैक्ट (करार) का प्रारूप ही बिगड़ जाएगा। कहीं वॉल्वो ड्राइवरों की पेमेंट फंसेगी तो कहीं कुछ और। वहीं निगम सूत्रों की मानें तो यदि वॉल्वो बसों में निगम के चालक को लगा दिया गया तो कहीं पर गाड़ी के लडऩे-भिडऩे पर सारी जि मेदारी निगम ड्राइवर के ऊपर थोप दी जायेगी और नतीजतन न चाहते हुए भी इसकी भरपायी निगम के खजाने से करनी पड़ेगी। ऐसे में जब ड्राइवर कंपनी का होगा तो ऐसा कुछ नहीं होगा और निगम का परिचालक केवल यात्री किराया वसूलने से मतलब रखेगा।
वीटीएस प्रणाली का कोई औचित्य नहीं…
परिवहन निगम मु यालय ने बसों के संचालन की ऑन रोड मॉनीटरिंग करने के लिए वॉल्वो से लेकर अपने कई श्रेणियों की बसों में वीटीएस (वेहिकिल टै्रकिंग सिस्टम)

यानी वाहन परीक्षण प्रणाली लगा रखा है
ताकि बस से लेकर चालक-परिचालक के हर एक गतिविधि पर नजर रखा जा सके। वीटीएस प्रणाली की कंट्रोलिंग निगम मु यालय से की जाती है। लेकिन यूपी रोडवेज की सबसे अत्याधुनिक सेवाओं से लैस वॉल्वो के इस प्रकार से आकस्मिक रूप से दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद अब इसका भी कोई खास औचित्य नहीं दिख रहा। दरअसल विगत दिनों कानपुर-दिल्ली हाईवे पर जो दो वॉल्वो बसें विभिन्न कारणों से दुर्घटनाग्रस्त हुई हैं, उसके प्रमुख कारणों में प्रथम दृष्टïया तेज र तार की बात सामने आयी है। जबकि वीटीएस सिस्टम का यही काम ही है कि कहीं पर बस की निर्धारित गति अत्यधिक होती है या फिर कोई तकनीकी खराबी आती है तो तुरंत ही मु यालय पर लगे संकेतक प्रणाली में इसकी सूचना मिलने लगती है और समय रहते इसे ठीक करने का अविलंब प्रयास किया जाता है।
समय सीमा भी वॉल्वो के सुरक्षित सफर में बाधा
वॉल्वो बसों के सुरक्षित सफर में सबसे बड़ी जो बाधा आती दिखी वह है एक से लेकर दूसरे गंतव्य तक पहुंचने की इसकी तय समय सीमा। दरअसल वॉल्वो का नाम सुनकर ही किसी भी यात्री के मन-मस्तिष्क में यह बात घर कर जाती है कि चूंकि किराया ज्यादा दे रहे हैं, ऐसे में कम समय में अपने गंतव्य तक पहुंच जाएंगे। यही दबाव कहीं न कहीं वॉल्वो कंपनी के साथ-साथ निगम प्रबंधन के ऊपर होता है, ऐसे में ओवर स्पीडिंग हो जाती है और दुर्घटना होने की प्रबल संभावना बन जाती है। इसी पहलू को ध्यान में रखते हुए निगम मु यालय ने अब वॉल्वो बसों की पूर्व नियत गति 85 किमी प्रति घंटा की र तार को घटाकर 75 किमी प्रति घंटा करने के दिशानिर्देश जारी कर दिए हैं।